कोल्हान के युवाओं की चुनौतियां विषय पर चिंतन मनन करने से पूर्व यह विचार करना आवश्यक है की युवा कौन है ? इसकी परिधि इतनी व्यापक है की किसे युवा कहा जाय किसे नही यह विराट प्रश्न खड़ा हो जाता है। इसे परिभाषित करना आसान नही। यह आसीम उर्जा है। यह प्रकृति प्रदत है। 'हो' आदिवासिओं की चिंतन परम्परा में प्रकृति सदैव ही केन्द्रविंदु रहा है। हमारी जीवन शैली , चिंतन, और धर्म में प्राकृतिक तत्वों की प्रधानता है। ऐसे में इस शब्द के अर्थ को तलाशने के लिए प्रकृति की ओर मुड़ना ओचित्यापूर्ण होगा। कोल्हान के युवा कहने मात्र से मानस पाटल पर हरे भरे पेड़, लहलहाते खेत , पहाड़, पत्थर, झरने , नदी , पशु पक्षी, जिव जंतुओं , की तस्वीर उभरने लगती है। प्रकृति के सनिद्य में रह कर उसे आत्मसात करने वाली हर जीवंत वस्तु जो उर्जा से भरपूर है। युवा कही जा सकती है। सुबह सुबह टिफिन लिए आजीविका के लिए निकली युवतियां, कुदाल गैंता पकडे श्रमिक , हल चलाते किसान , स्कूल कॉलेज में अध्ययनरत विद्यार्थी , फाइल पकडे नौकरी शुदा बाबु, ऑफिसर, व्यवसाई सभी युवा है। इनकी व्यापकता को शब्दों की परिधि में बंधना सम्भव नही है। सबकी अपनी सोच, चिंतन, और लक्ष्य है। किसी का लक्ष्य दो वक्त की रोटी है तो किसी के लिए सम्मान अर्जन है। कोई व्यक्तिवादी है तो किसी के चिंतन में समूचे समाज का उत्थान निहित है। उर्जा की कमीं नही है। इतनी उर्जा को यदि एकीकृत दिशा और लक्ष्य मिल जाय तो पुरे राष्ट्र का कायाकल्प हो जाएगा। फ़िर कोल्हान तो एक छोटा सा भौगोलिक सांस्कृतिक और सामाजिक अस्तित्व है, जिसने हर बाह्य व्यक्ति का स्वागत बाहें पसार कर किया है।
कोल्हान का भोगोलिक विस्तार वर्तमान सराइकेला, पूर्वी सिंघ्भुम, पश्चिमी सिंहभूम, जिला में है। उत्तर में रांची जिला , पश्चिम में सिमडेगा , दक्षिण में उड़ीसा और पूर्व में पश्चिम बंगाल है। हो बहुल उस क्षेत्र की ६० प्रतिशत जनसँख्या युवा है। रत्नगर्वा होने के बावजूद कोल्हान की स्थिति वैश्विक और राष्ट्रिय परिपेक्ष्य में अत्यन्त पिछड़ी है। कोल्हान का युवा वर्ग वैश्वीकरण, भौतिकवाद, अन्धानुकरण, प्रतिस्प्रदा और विसंस्कृतिकरण सूचनाक्रांति के इस युग में लक्ष्य को लेकर पेशोपेश की स्थिति में है। उनमें स्पष्ट चिंतन का आभाव है, समस्याओं और चुनौतियों को चिन्हित करने के लिए नितांत आवश्यक दृष्टि की कमी है। उनके समक्ष एक नही, कई चुनोतियाँ है। कोल्हान की राजनितिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक व्यवस्था निरंतर पत्नोंमुख है। इस गर्त से निकलने की महती जिम्मेवारी युवा कन्धों पर है। हममें राजनितिक दृष्टि का आभाव है। आज सामाजिक व्यवस्था नष्टप्राय है, संस्कृति , भाषा, कला, लुप्तप्राय है। निज संस्कृति भाषा, कला, के प्रति प्रेम जागृत करना है। लचर आर्थिक व्यवस्था के कारण दो वक्त की रोटी मुहाल नही है। ऐसे परिदृश्य में कोल्हान के युवा विस्थापन पलायन, भूख , बेरोजगारी, अशिक्षा , उग्रवाद , का दंश झेलने को विवश हैं तो अचरज की बात नही। इसके लिए जिम्मेवार कौन है ? आइये इसका उत्तर ढूँढने के लिए इतिहास पर दृष्टिपात करें।
उपरोक्त सभी समस्याओं के पीछे कई कारक हैं। ये समस्याएं एक दूसरे से पृथक प्रतीत होते हुए भी इस तरह संबद्द हैं की इन्हें पृथक करना सम्भव नही है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए इनकी प्रकृति और जड़ को समझना होगा। १७६४ इसवी में बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों की विजय के साथ ही साथ बंगाल और उड़ीसा के रास्ते अंग्रेजों का प्रवेश झारखण्ड में हुआ। उनके साथ बाहरी शोषणकारी लोग भी आए। आदिवासिओं ने उन्हें दिकु के रूप में परिभाषित किया। इसके साथ प्रारम्भ हुआ शोषण की प्रक्रिया जो आज तक जारी है। यह दुर्भाग्य की बात है की खनिज और प्राकृतिक संसाधनों से युक्त इस क्षेत्र में जहाँ बाह्य लोगों का निरंतर आगमन जारी है वहीं इस क्षेत्र के लोगों का निरंतर पलायन विस्थापन हो रहा है। जितना विरोधाभास इस तथ्य में है उतना ही बाह्य लोगों और कोल्हानवासियों के चरित्र में भी। दोनों का परस्पर सम्बन्ध समानता पर आधारित न होकर शोषक शोषित का रहा है। हो लोग प्रकृति के उपासक थे। प्रकृति ही उनका धर्म संस्कृति मित्र गार्जियन सब कुछ था। बाह्य लोग प्रकृति के दुश्मन और दोहन थे। उनका लक्ष्य वृक्ष्य कट कर कल कारखानों की स्थापना करना था। लोगों को विस्थापित करने वाली बड़ी परियोजनाओं का निर्माण करना था। इसका आदिवासिओं के हित से दूर का भी वास्ता न था। इससे यहाँ की राजनितिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक व्यवस्था प्रभावित हुई। शोषण को वृहद्कारी बनाने के लिए मूळ व्यवस्था को नष्ट करना जरूरी था। इससे स्वाभाविक विकास वाधित हुआ। सामाजिक और सामूहिकता पर आधारित यहाँ के जीवन में नवीन तत्वों का प्रवेश हुआ।
इससे जो हलचल पैदा हुआ वह विद्रोहों के रूप में सामने आया। परिणामस्वरूप सी एन टी एक्ट, विलकिंसन रूल्स आदि बने। कालांतर में मानकी मुंडा के क्षेत्राधिकार पर प्रशासन का दखल हुआ। इसने दोहरी व्यवस्ता को जनम दिया। इससे उलझने बढ़ी और मानकी मुंडा, प्रशासन के समक्ष बौने हो गए। इसने राजनितिक क्षेत्र को भी प्रभावित किया। स्वतंत्र प्राप्ति के बाद लोकतंत्र बहाल हुआ। बाह्य लोगों ने आदिवासिओं को पैसा देकर चुनाओं में खड़ा किया। इससे चुनाओं में उन लोगों का प्रभाव बढ़ा। निष्पक्ष चुनाओ अब सम्भव नही था। भोले भाले आदिवासी दारू मुर्गा और पैसों से प्रभावित हो कर प्रतिनिधि चुनने लगे। जन प्रतिनिधि की वफादारी जनता के प्रति न होकर बाह्य पूंजीपति के प्रति होती रही। जनहित हाशिये पर चला गया। अब जन प्रतिनिधि भी शोषण में भागीदार हो गया। विधायिका पर नियंत्रण हो जाने से निति निर्माण पर बाह्य लोगों का नियंतरण स्थापित हुआ। अब वह अपने हित में शोषण कारी नीतियों का निर्माण करने लगे। कोल्हान के युवाओं के समक्ष राजनितिक चेतना का निर्माण एक बढ़ी चुनौती है । cntd...
कोल्हान का भोगोलिक विस्तार वर्तमान सराइकेला, पूर्वी सिंघ्भुम, पश्चिमी सिंहभूम, जिला में है। उत्तर में रांची जिला , पश्चिम में सिमडेगा , दक्षिण में उड़ीसा और पूर्व में पश्चिम बंगाल है। हो बहुल उस क्षेत्र की ६० प्रतिशत जनसँख्या युवा है। रत्नगर्वा होने के बावजूद कोल्हान की स्थिति वैश्विक और राष्ट्रिय परिपेक्ष्य में अत्यन्त पिछड़ी है। कोल्हान का युवा वर्ग वैश्वीकरण, भौतिकवाद, अन्धानुकरण, प्रतिस्प्रदा और विसंस्कृतिकरण सूचनाक्रांति के इस युग में लक्ष्य को लेकर पेशोपेश की स्थिति में है। उनमें स्पष्ट चिंतन का आभाव है, समस्याओं और चुनौतियों को चिन्हित करने के लिए नितांत आवश्यक दृष्टि की कमी है। उनके समक्ष एक नही, कई चुनोतियाँ है। कोल्हान की राजनितिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक व्यवस्था निरंतर पत्नोंमुख है। इस गर्त से निकलने की महती जिम्मेवारी युवा कन्धों पर है। हममें राजनितिक दृष्टि का आभाव है। आज सामाजिक व्यवस्था नष्टप्राय है, संस्कृति , भाषा, कला, लुप्तप्राय है। निज संस्कृति भाषा, कला, के प्रति प्रेम जागृत करना है। लचर आर्थिक व्यवस्था के कारण दो वक्त की रोटी मुहाल नही है। ऐसे परिदृश्य में कोल्हान के युवा विस्थापन पलायन, भूख , बेरोजगारी, अशिक्षा , उग्रवाद , का दंश झेलने को विवश हैं तो अचरज की बात नही। इसके लिए जिम्मेवार कौन है ? आइये इसका उत्तर ढूँढने के लिए इतिहास पर दृष्टिपात करें।
उपरोक्त सभी समस्याओं के पीछे कई कारक हैं। ये समस्याएं एक दूसरे से पृथक प्रतीत होते हुए भी इस तरह संबद्द हैं की इन्हें पृथक करना सम्भव नही है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए इनकी प्रकृति और जड़ को समझना होगा। १७६४ इसवी में बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों की विजय के साथ ही साथ बंगाल और उड़ीसा के रास्ते अंग्रेजों का प्रवेश झारखण्ड में हुआ। उनके साथ बाहरी शोषणकारी लोग भी आए। आदिवासिओं ने उन्हें दिकु के रूप में परिभाषित किया। इसके साथ प्रारम्भ हुआ शोषण की प्रक्रिया जो आज तक जारी है। यह दुर्भाग्य की बात है की खनिज और प्राकृतिक संसाधनों से युक्त इस क्षेत्र में जहाँ बाह्य लोगों का निरंतर आगमन जारी है वहीं इस क्षेत्र के लोगों का निरंतर पलायन विस्थापन हो रहा है। जितना विरोधाभास इस तथ्य में है उतना ही बाह्य लोगों और कोल्हानवासियों के चरित्र में भी। दोनों का परस्पर सम्बन्ध समानता पर आधारित न होकर शोषक शोषित का रहा है। हो लोग प्रकृति के उपासक थे। प्रकृति ही उनका धर्म संस्कृति मित्र गार्जियन सब कुछ था। बाह्य लोग प्रकृति के दुश्मन और दोहन थे। उनका लक्ष्य वृक्ष्य कट कर कल कारखानों की स्थापना करना था। लोगों को विस्थापित करने वाली बड़ी परियोजनाओं का निर्माण करना था। इसका आदिवासिओं के हित से दूर का भी वास्ता न था। इससे यहाँ की राजनितिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक व्यवस्था प्रभावित हुई। शोषण को वृहद्कारी बनाने के लिए मूळ व्यवस्था को नष्ट करना जरूरी था। इससे स्वाभाविक विकास वाधित हुआ। सामाजिक और सामूहिकता पर आधारित यहाँ के जीवन में नवीन तत्वों का प्रवेश हुआ।
इससे जो हलचल पैदा हुआ वह विद्रोहों के रूप में सामने आया। परिणामस्वरूप सी एन टी एक्ट, विलकिंसन रूल्स आदि बने। कालांतर में मानकी मुंडा के क्षेत्राधिकार पर प्रशासन का दखल हुआ। इसने दोहरी व्यवस्ता को जनम दिया। इससे उलझने बढ़ी और मानकी मुंडा, प्रशासन के समक्ष बौने हो गए। इसने राजनितिक क्षेत्र को भी प्रभावित किया। स्वतंत्र प्राप्ति के बाद लोकतंत्र बहाल हुआ। बाह्य लोगों ने आदिवासिओं को पैसा देकर चुनाओं में खड़ा किया। इससे चुनाओं में उन लोगों का प्रभाव बढ़ा। निष्पक्ष चुनाओ अब सम्भव नही था। भोले भाले आदिवासी दारू मुर्गा और पैसों से प्रभावित हो कर प्रतिनिधि चुनने लगे। जन प्रतिनिधि की वफादारी जनता के प्रति न होकर बाह्य पूंजीपति के प्रति होती रही। जनहित हाशिये पर चला गया। अब जन प्रतिनिधि भी शोषण में भागीदार हो गया। विधायिका पर नियंत्रण हो जाने से निति निर्माण पर बाह्य लोगों का नियंतरण स्थापित हुआ। अब वह अपने हित में शोषण कारी नीतियों का निर्माण करने लगे। कोल्हान के युवाओं के समक्ष राजनितिक चेतना का निर्माण एक बढ़ी चुनौती है । cntd...
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