सांकृतिक जीवन भी इस प्रभाव से अछूता न रहा। बाहरी लोगों की संस्कृति ने हमारे संस्कृति को प्रभावित किया। हमारी संस्कृति में प्राकृतिक तत्वों का समावेश था। उनकी संस्कृति चमक दमक और ग्लैमर से लैस थी। हमारे देवी देवता प्रकृति से सम्बंधित थे। हमारे बाध्य यंत्र रुतु बनाम दमा दुमंग प्रकृति प्रदत थे। उनमे सौंदर्य सादगी, सरलता और चंचलता थी। पर्व त्योहारों एवं शादी व्याह जैसे विशिष्ट अवसरों में गाए जाने वाले गीत थे। लोक कथाएँ , चुटकुले मुहावरे थे। परंपरागत चिकित्सा पद्धति थी। प्रकृति प्रधान धर्म सरना धर्म था। उनकी चमक दमक में कला संस्कृति की सादगी लुप्त हो गई। अब हमारे युवा छोऊ-नृत्य होली, दीपावली, दशहरा सरस्वती पूजा मना रहे है। पंडित और ब्रह्मण द्वारा शादियाँ हो रही है। दिली सकाम की जगह रंग विरंगे कार्ड ने ले लिया । ओंग ॐ द्वारा विस्थापित हो गया। युवक युवतियां जींस पहने अंग्रेजी शराब के नशे में धुत हिन्दी फिल्मी गीतों और नागपुरी धुनों पर थिरक रहे है। परम्परागत चिकित्सा पद्धति की जगह डॉक्टर आ गए। पारंपरिक लोक कथाओं की जगह गैर साहित्य आ गए। गैर साहित्य से हमारे समाज संस्कृति का क्या वास्ता ? साहित्य समाज का दर्पण है। गैर साहित्य में हमारे सामाजिक जीवन की झलक धूँदाना सम्भव नही। पारंपरिक खेलों का स्थान क्रिकेट और फुटबाल ने ले लिया। युवाओं के समक्ष सांस्कृतिक विरासत को सँभालने की चुनौती है। हमारी भाषा संस्कृति, कला, परम्परा आज खतरे में है। हम हिन्दी अंग्रेजी की ऑर आकृष्ट है। जोहार कहने के बजाय हम पैर छू रहे हैं। देशौली के जगह मंदिरों में पूजा कर रहे है। युवा अपनी गौरवमई कला संस्कृति से अनविघ्य है। इसका दोषी कौन है ? सभी को चिंतन करना होगा। सिर्फ़ युवाओं पर दोष मरना ग़लत होगा। उन्हें तो हम लोगों ने भौतिकवादी प्रतिस्प्रदा में वगैर तैयार किए ही उतार दिया है। आर्थिक क्षेत्र में बाहरी लोगों के साथ पूंजीवाद और भौतिकवाद का प्रवेश हुआ। इसका एक उद्धरण शादी के लिए तय मानदंड है। पूर्व में लड़की की शादी तय करते वक्त कृषि कार्य और लड़के के चरित्र पर विचार किया जाता था। कृषि और चरित्र अब गौण हो गई हैं। लड़के का नौकरीशुदा होना अनिवार्य माना जाने लगा। पूंजी हमारी जीवन शैली में विल्कुल नवीन तत्त्व था। इससे सामंजस्य बिठाना कठिन था। पूंजी का अर्जन का एकमात्र श्रोत सरकारी नौकरी था। आदिवासी वाणिज्य व्यवसाय के तौर तरीकों से अनजान थे। बाहरी लोग मानसिक तौर पर उन्नत एवं चल-बल से संपन थे। उन्होंने न सिर्फ़ वाणिज्य व्यवसाय पर एकाधिकार कर लिया बल्कि सरकारी नौकरियां भी हड़प ली। नवीन शिक्षा नीति बुद्दिजीवी पैदा करने में स्मार्ट नही थी। इस शिक्षा निति में कृषि औद्योगिक, तकनिकी प्रशिक्षण का आभाव था। इसने सिर्फ़ क्लर्क पैदा किए। बाह्य लोगों ने विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका पर एकाधिकार स्थापित कर लिया। विधायिका से शोशानकारी नीति का निर्माण किया। कार्यपालिका ने इसे कार्यान्वित किया और आदिवासिओं को न्यायपालिका से न्याय नही मिला। यहाँ की भाषा, संस्कृति, परम्परा ने अनविघ्य होने के कारण उनकी सहानुभूति आदिवासिओं के प्रति बिल्कुल नही थी। न्याय प्रक्रिया में हिन्दी अंग्रेजी जैसी नई भाषाओँ के प्रयोग तथा गवाहों के क्रय विक्रय ने न्याय प्रक्रिया को खर्चीला बना दिया। यह आदिवासिओं की पहुँच से बहार हो गई। इस तरह बाहरी लोगों के प्रवेश ने हमारी सामाजिक राजनितिक आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्र को प्रभावित कर इसे पत्नोंमुख बना दिया.
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