कोल्हान के युवा कोल्हान की चुनौतियाँ -3

आज युवा वर्ग अशिक्षा भूख बेरोजगारी से त्रस्त है। इसी कारण पलायन भी हो रहे हैं। छात्र समुदाय अतिशय पर्व त्योहारों के आयोजन से त्रस्त है। पर्व त्योहारों के आयोजन में एकरूपता का आभाव है। इसका प्रभाव युवा वर्ग पर पर रहा है। स्कूल की पढाई लचर है, वे स्वाध्याय के अवसरों से भी वंचित हैं। बिजली के आभाव में डिबरी में पढने को विवश है। किरोसिन की कालाबाजारी से त्रस्त हैं। ट्यूशन के पैसे नही है। कंप्यूटर दूर की चीज है। खाने के लिए बासी भोजन है, पढने के लिए अच्छी किताबें नही है। अच्छी किताब अच्छी लाइब्रेरी का आभाव है। ऐसे में उनसे सरकारी नौकरी की उम्मीद नही की जा सकती। भूख व बेरोजगारी से लचर वे गुजरात जैसे संपन राज्यों की ओर पलायन करते है। अशिक्षित लोग ईंट भट्टों और शहरों की ओर पलायन करते हैं। इसी भूख और बेरोजगारी ने उग्रवाद समस्या को जन्म दिया। गरीब और बेरोजगार युवा उग्रवाद की राह पर जा रहे हैं। आय का आसमान वितरण कोल्हान में देखने को मिलता है। वाणिज्य व्यवसाय और विभिन्न संसाधनों में लगे बाहरी लोग संपन हैं। रत्न्गार्वा और प्राकृतिक संसाधनों से संपन होते हुए भी यहाँ के लोग गरीब हैं। हर गावों में वृक्ष, जमीन, पर्वत, जंगल, तालाब, नदी, पशुधन, पत्थर है। इन संसाधनों का सही उपयोग नही हो पा रहा है। लोग परंपरागत तरीकों से ही कृषि कार्य कर रहे हैं। पूंजी, प्रशिक्षण क्रय विक्रय में विचौलिये मुनाफा कमा रहे हैं। हमारी निर्भरता मुख्यता कृषि और नौकरी पर है। नवीन शिक्षा नीति की ही देन है की युवा सिर्फ़ सरकारी नौकरी के पीछे भागता है। कृषि कार्य, वाणिज्य व्यवसाय को सम्मान की दृष्टि से नही देखा जाता है। अन्य श्रोतों में कैरियर निर्माण के लिए पूंजी, प्रशिक्षण, तकनीकी सहायता और सामाजिक समर्थन की आवश्यकता है। आज के युवा शोषण के स्वरुप को समझ पाने में आसमर्थ हैं। दबने और शोषित होने की प्रवृति उनमें साफ दृष्टिगोचर होती है। फैक्ट्रियां कल कारखानें और बड़े डैमों की वजह से लोग बड़े पैमाने पर विस्थापित हुए हैं। इन सभी जगहों पर बाहरी लोग कार्यरत है। स्थानीय लोग मजदूर बनने मात्र तक सीमित हैं। बुनियादी ढांचे के आभाव में स्वरोजगार के अवसर भी विकसित नही हो पा रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों के प्रति मित्रता पूर्ण दृष्टिकोण विकसित करना होगा। अगर हम ऐसा कर पाए तो कोई भूखों नही मरेगा। हमारे पूर्वज कृषि कार्य के साथ साथ मुर्गी पालन, बत्थक पालन, भेड़ बकरी पालन भी करते थे। तो हम क्यों नही कर सकते ? वर्तमान शिक्षा पद्दति ने हमें नाकारा बना दिया है। इस शिक्षा की बदौलत हमारे युवक न सरकारी नौकरी प्राप्त करते हैं और न ही कृषि कार्य के काबिल रह पाते हैं। हमें अपने जड़ों की ओर लौटना होगा। अपनी सांस्कृतिक आर्थिक विरासत को सँभालते हुए पूर्वजों के बताये रास्ते पर चलना होगा। तभी हम इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते सकते हैं। निस्कर्स्तः यह कहा जा सकता है की कोल्हान के युवा वर्ग को न केवल भूख, बेरोजगारी, आशिक्षा जैसे व्यक्तिगत समस्याओं से जूझना है। बल्कि उनके कंधे पर राजनितिक, सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक परिदृश्य को बदलने की महती जिम्मेदारी भी है। उन्हें विस्थापन, पलायन, विसंस्कृतिकरण जैसी चुनौतियों से सामूहिक रूप से लड़ना है। इन विभिन्न मोर्चों पर डटे रहने के साथ समाज से भी जुड़े रहना है। वैश्विक परिदृश्य में कोल्हान के हो समाज की पृथक सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक पहचान कायम करनी है। लक्ष्य एक हो तो यह नामुमकिन नही है। देखना यह है की इन चुनौतियों का सामना किस तरह कर पाते हैं। संकट की इस घडी में एक हो पाते हैं की नही ? उन पर पारिवारिक ही नही सामाजिक जिम्मेवारी भी है। उन पर समाज का ऋण है। इस अमूल्य सांस्कृतिक विरासत के लिए उन्हें समाज का आभारी होना चाहिए। अब समय आ गया है की कोल्हान के युवा एकीकृत होकर चुनौतियों का सामना करें।

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