राजनीती एवं हो समाज

आजादी के 65 वर्ष बीत गए। आज भी हो समाज राजनीती रूप से गरीब है। नेताओं ने कोल्हान को कहीं का नही छोड़ा. ताजा हालातों के मद्देनजर नेताओं के भ्रष्टाचार में लिप्तता अत्यन्त ही शर्मनाक है। झारखण्ड के नेताओं का बयान देखने से स्पष्ट हो जाता है की आदिवासी नेता कितने इमानदार होते हैं। लालू के चारा घोटाला के बाद तो शर्म आनी चाहिए थी मगर भ्रष्टाचार में इस कद्र डुबे हैं की उन्हें यह भी अपने नाम कमाने जैसा ही लग रहा है। झारखण्ड के लोगों को सबक सीखना चाहिए की देखो किस तरह भरष्टाचार में लिप्त रहा जाता है और दंभ से कहा जाता है की देखो हमने भ्रष्टाचार की नीव बनाने में कोई कसर नही छोडी है और आओ सभी उस गंगा में हाथ धोएं। दुनिया ने अपने रिपोर्ट में हालिया दिनों में यह स्पष्ट कर दिया है की पाकिस्तान रहने के लिए सबसे खतरनाक जगह है। अब हम झारखंडियों को यह कहने या सुनने में बुरा नही लगना चाहिए की झारखण्ड सबसे भ्रष्ट राज्यों में से एक है। और दुनिया से लोगों को यदि भ्रष्टाचार का आनंद लेना है तो झारखण्ड का रुख कर सकते हैं। उनका स्वागत करना चाहिए और भ्रष्टाचार का पाठ पढ़ा देना चाहिए। पैसा यदि ज्यादा हो तो राज्य में लगाने के लिए आमंत्रित तो करना ही चाहिए और किस तरह हम झारखण्ड के लोग डकार जाते हैं और दूसरे दिन निकाल भी देते हैं यह दिखाना चाहिए। फ़िर अपना काम निकल जाने के बाद पहचानने से साफ इंकार करते हुए नए इकरारनामा के लिए पैसा की मांग निहायत ही जायज भ्रष्टाचार है। झारखण्ड की जनता भूखी है नंगी है। पलायन से सांस्कृतिक एवं जनसँख्या की कमी के कारण आज परिसीमन की तलवार लटक रही है, आदिवासी जनसंगठन मुद्दों के लिए जान देंगे जमीन नहीं देंगे के नारों को याद रख समय समय पर चिल्लाते रहती है और चूँकि यही काम शायद उन लोगों के लिए छोड़ी गयी है। बाकि सभी मुद्दे यथा विकास, विनाश, भ्रष्टाचार आदि राजनितिक हितैसियों ने अपने लिए सुरक्षित रख लिया है। आज हमें दिखा रहे हैं की किस तरह जनता के हितों का विनाश कर अपना विकास भ्रष्टाचार के बल पर किया जाता है।
इस पर आदिवासी समाज को गहन चिंतन मनन करने की आवश्यकता है। क्या हमने जिस काम के लिए जन प्रतिनिधियों को चुना है वे उस काम में ठीक कर रहे हैं या नही ? उनके कामों का विश्लेषण आज की तारीख में इसीलिए भी आवश्यक हो गया है क्योंकि सभी मुख्यमंत्री आदिवासी होने के बावजूद भी झारखण्ड विकास के मार्ग पर आगे जाने के बनिस्पत इस दौड़ में कई साल पीछे चला गया है। इसके लिए कौन विश्लेषण करेगा ? क्या आदिवासी समाज की यह नियति है, दुर्दशा है की इसे मानना ही होगा। तो फ़िर इस भारत देश एवं इसके संविधान को बनाने वाले लोग जिस मौलिक आधिकार को संविधान में स्थान देते है। वह महज किताब की वस्तु मात्र रह गया है। सावधान आदिवासिओं अब वह वक्त दूर नही जब संबिधान की मौलिकता में भ्रष्टाचार की बातें लिखी जायेगी । भ्रष्ट होना और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना हमारा मूळ कर्तव्यों में से एक होगा। इमानदार लोगों के लिए यह खतरे की घंटी है। उन पर भारतीय दंड विधान की धाराएँ लगायी जायेगी , आरोप तय किए जायेंगे और कोर्ट पर तारिख पर तारिख मुकरेर की जायेगी और अंत में उन लोगों को जेल की सलाखों के पीछे ऐसे संगीन जुर्म करने के लिए भेजा जाएगा। जहाँ वे चक्की पिसेंगे, कुर्सी बनायेंगे , बगान लगायेंगे , दाढ़ी में इमानदार रूपी भ्रष्टाचार को उगते महसूस करेंगे। फ़िर भी हम झारखंडी जनता चुप रहेंगे क्योंकि यही काम हमारे लिए छोड़ा गया है अगला चुनाओ आएगा, वोट माँगा जाएगा, मुद्दा वाही पुराना होगा, हमारी पार्टी , तुम्हारी पार्टी, इसकी पार्टी, उसकी पार्टी , हम यह करेंगे , हम वह करेंगे हमारी पार्टी ऐसी है, पलना पार्टी वैसी है, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप और चुनाओ के पूर्व संध्या तक हंडिया और दारू रूपी डंडिया सबके होटों को चूम रहा होगा। इस तरह सभी महत्वपूर्ण मुद्दों से दूर आदिवासी समाज हंडिया और दारू के नशे में अपने पैरों ताले जमीन को तलाशता रहता और तब तक चुनाओं का परिणाम आ जाता है जिसका आदिवासी समाज यह कहकर स्वागत करता है की चलो इस बार इसे ही कमाने दो.

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