हासा भाषा और दोमेसैल सब राजनितिक ढकोसला

हासा भाषा , विस्थापन, domesile , आरक्षण ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जिन पर राजनीती हमेशा से होते आया है। और इसी पर राजनीती रोटी सेकने का प्रयास आज भी बदस्तूर जारी है। उपरोक्त सभी मुद्दे आदिवासी समुदाए के लिए आवश्यक लगते हैं। और सोचा जाता है ज्यादा से ज्यादा फीसदी हिस्सा मिल जाय या दिलाने के लिए वादा कई राजनितिक पार्टियों का एजेंडा होता है। उपरोक्त मुद्दों पर अलग मांग की वकालत करने वाले राजनितिक स्वार्थ के लोग शायद संविधान और आदिवासिओं के जमीन एबं प्राकृतिक संसाधनों पर उनके अविनिमय आधिकारों से रूबरू नही रखते। झारखण्ड का बड़ा हिस्सा आदिवासिओं का है। ब्रिटिश शासनकाल में आदिवासी इलाकों को जमींदारी प्रथा एबं दास प्रथा से बचाए रखने के लिए कई विनियम बनाये गए थे। जिसे विधि वहिर्क्षेत्र घोषित किया गया था। उसी तरह आज भी वह व्यवस्ता कायम है, और झारखण्ड का आदिवासी इलाका पंचिवी अनुसूची के अंतर्गत विधि वहिक्षेत्र में ही आता है। यहाँ की पुरी व्यवस्था शेष भारत की भांति नहीं किया जा सकता। यंहा की व्यवास्ता के लिए ही संविधान में शान्ति और सुशासन के लिए अपवादों और उपन्तारानों के अधीन कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका शक्तियों का विस्तार किया गया है। बात साफ है इनका मूल उद्देश्य हासा भाषा, विस्थापन दोमेसिले आदि के लिए यह लागु होती है, ऐसे में इसी अनुछेद में आदिवासिओं के लिए विधि वहिर्क्षेत्र होने के नाते व्यवस्ता उपलब्ध करने का प्रावधान स्पस्ट किया गया है। प्रावधान के उपलब्ध रहने के बावजूद यदि हम आदिवासिओं को उसका लाभ नही मिल रहा है तो इसके लिए राजनितिक प्रतिनिधि दोषी हैं पुरी राजनीती दोषी है। और अलग से उपरोक्त विन्दुओं पर आदिवासी होने के लिए वकालत कर मिले आधिकारों से आदिवासिओं को दूर करने की साजिश रची जा रही है। आदिवासी भोले भाले होते हैं अच्छा बोलने वालों से स्वाभाविक रूप से आसानी से ठगे जाते रहे हैं। और अपने प्रकृति में ज्यादा बदलओव नही होने के कारन आज भी उसी तरह आदिवासी इस्तेमाल हो रहे हैं। बुदिजिवी और समाजसेवी भी ऐसे मुद्दों में अपने को असहाय महसूस कर रहे हैं। बात साफ है अपने गौरवशाली इतिहास के आईने में आज भी हम एक कायरता की श्रेणी में ही आ पाते हैं। निहायत ही निजी स्वार्थों के कारण पुरा आदिवासी समुदाय आज हासिये पर चला गया है, अब एक क्रन्तिकारी परिवर्तन ही आदिवासी समुदाय को बचा सकता है। और इसके लिए युवाओं को आगे आने की सख्त आवश्यकता है, और इस परिवर्तन का हिस्सा बन इतिहास के पन्नों में अपने आप को लिपिबद्ध करने का यह स्वर्णिम अवसर भी है। आइये इस परिवर्तन के हम सहभागी बने शान्ति और सुशासन की व्यवस्ता को सर्वोपरि बनायें......

Comments

2010 Blogger said…
Hi Mukesh,

You hit the nail on the head......

Just a small query....if we keep on dividing our ADIVASI samaj...will we ever get any positive results....as I see every ADIVASI faces similar problem....any idea how to beat these divisive polticians....

Regards

Sameer Bhagat
बहुत सटीक लिखा है हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
Mukesh Birua said…
Again i am insisting that we r in fifth schdule area. and my adovcacy is that we are hearing abt devlopement since last 60 yrs. what happend ? now it is the time to rethink our vision to be fulfilled. And from my point of view main ideaology of fifth scheduled is to give us peace and good governace with certain exception and modification. why we are blaming politicians? b'coz they are just using us as vote bank then after vote celeberations no one came to our house and remaining is history. that's why social worker attitude towards social engineering is most important for the time being.
let us strive to get is.