हो समाज में पूजा की पदति

हो' समाज के पूजा में कटब-तुरुब के साथ शुरुआत होता है। जिसका मतलब यह हुआ की सच्चे मन से पूजा करने के लिए उपवास करना आवश्यक है और जिसमें दतुअन भी नही करना है, पूजा के बाद दतुअन करना है। तथा वैसे दिन अपने पत्निओं के साथ भी नही सोना है। पहले को कटब कहते हैं तो दूसरे को तुरुब। इन दोनों शर्तों को पुरा करना ही कटब-तुरुब के साथ किया गया पूजा कहा जाता है। तत्पश्चात पूजा के दौरान उत्तर दिशा की ओर मुह किया जाता है। इसके पीछे यह तर्क है की प्रकृति में उत्तर ध्रुब ज्यादा शक्तिशाली है और हम उसी को आधार मान कर पूजा करते हैं। हम ज्यादा शक्तिशाली (धनात्मक) से शक्ति लेकर गोआरी' करते हैं। फ़िर शक्ति लेकर अपने कामों को कर सकने की विनती करते हैं। हमारे धारणाओं के मुताबिक धनात्मक (उत्तर ध्रुब) एवं ऋणात्मक(दक्षिणी ध्रुब) यानि नर और नारी ही सिंग्वोंगा की उपस्थिति को दर्शाता है। पूजा के दौरान हरा फाढ़ वाला धोती पहना जाता है। इसका मतलब यह हुआ की प्रकृति को सुरक्षा कवच के रूप में अंगीकार करते हैं। धोती पहनते समय धोती का बायाँ किनारा को कमर में कसा जाता है। इसका मतलब यह होता है की मानव शरीर में धनात्मक शक्ति दाहिने तरफ़ होता है, और ऋणात्मक शक्ति बायीं तरफ़। नारी स्वरुप को इज्जत से ढँक कर सम्मान देते हैं। दाहिने भाग को खुला रखा जाता है। इस पदति से पूजा करने से प्रकृति स्वरुप में सिंग्वोंगा हमारी विनती को सुनते हैं। और हमारे अन्दर शक्ति का संचार करते हैं जिससे कोई बीमारी या बुरी आत्मा दूर हो जाती है और हमारा जीवन सुखमय हो जाता है। यही हो' समाज के अनुसार तंत्र' कहा जाता है। हो' समाज अपने विशिस्ट यन्त्र, मंत्र एवं तंत्र के कारण पूर्णतया प्राकृतिक पदति है और प्रकृति को ज्यादा शक्ति प्रदान करने वाला धर्म है।

Comments