नक्सलवाद, आतंकवाद और भरष्टाचार एक ऐसी बला है जिससे सम्पूर्ण मानवजाति चिंतित है। मानव के अलग-अलग सम्प्रदायों एवं धर्मों के मानने वालों का एक संगठन है, विश्व। परन्तु यही धर्म और संप्रदाय आज विभिन् अलगाववादी संगठनों का मुख्य मुद्दा बन गया है। आतंकवाद एवं उग्रवाद की जड़ें समाज-समाज में फैल गई हैं। देश के सीमानों में प्रजातंत्र की रुपरेखा में कार्यपद्धति अपनाई जाती है, जिसका अगुआ राजनेता करते हैं। आज के युग में भ्रष्टाचार उनके कमाई का अच्छा साधन हो गया है, जिस कारण देश का पुरा तंत्र बेलगाम हो गया है। मौजूदा स्थिति में देखें तो हम पाएंगे विभिन् धर्म एवं सम्प्रदायों के लोगों की स्थिति कमोवेश एक सामान है, क्योंकि लोग राम को मानते हैं, परन्तु राम की नही, रामायण को मानते हैं पर रामायण की नही, ईषा को मानते हैं पर ईषा की नहीं, बाइबल को मानते हैं, पर बाइबल की नही, अल्लाह को मानते हैं, पर अल्लाह की नही, कुरान को मानते हैं, पर कुरान की नही, सिंग्वोंगा को मानते हैं, पर सिंग्वोंगा की नही, सरना को मानते हैं, पर सरना की नहीं सुनते। बात साफ है लोगों द्वारा धर्म और संप्रदाय को राजनितिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, यहाँ राजनीती का मतलब राज्य के लिए नीति बनाने से नही है, परन्तु झूठ से है, ठगी से है, अज्ञानता से है, अल्पज्ञान से है। आज राजनीती इसी का पर्याय बन गया है।
हमारी मौलिक आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान इतिहास ही चीज बन गई है। यही कारण है की आज हमारे पास समस्याएं भी आधुनिक हो गए हैं, आतंकवाद, उग्रवाद, भ्रष्टाचार आदि। ये सभी समस्याएं राजनीती की उपज हैं, या कहें राजनीती के पुत्र हैं, जिसे राजनितिक आकाएं भ्रष्टाचार रूपी पानी से हमेशा सींचते रहे हैं, और आज यह अपनी जड़ें इतनी फैला चुके हैं, की इसे यदि उखाड़ा जाए तो स्वाभाविक तौर पर पुरे देश के तंत्र को हिला कर रख देगा। परन्तु, यह तभी सम्भव होगा जब देश के लोग, समाज के लोग जागरूक होंगे, समझदार होगें, एक दूसरे के भावनाओं को नही भडकायेंगे, एकजुट होने के प्रयासों को समर्थन देंगे। चाहे कुछ भी हो जाए, परन्तु इस परिवर्तनशील समय की शायद यही मांग है, कुछ की बात नही है, पुरे क्रान्तिकारी परिवर्तन ही देश को बचा पायेगा। अन्येथा ब्रेकिंग न्यूज़ के सिवा हम कुछ नही देख पाएंगे। बात साफ है, यहाँ भी लोग राजनीती को मानते हैं, पर राजनीती की बात नही मानते।
देश का, समाज का युवा वर्ग सही ज्ञान एवं संस्कार के आभाव में आवश्यक भावी रणनीति का हिस्सा नही हो पा रहा है। माता पिता आवश्यक रोटी, कपड़ा, और मकान की कमी को पाटने में इतना व्यस्त है की वे अपने बच्चे के संस्कार, शिक्षा आदि के लिए समय नही निकल पाते। तब देश का युवा वर्ग पूर्णतः सरकारी तंत्र के शिक्षा, संस्कार, कार्यपालिका, विधायिका, एवं न्यायपालिका के भरोसे छोड़ दिया जाता है, और यह उम्मीद की जाती है, की बच्चा बड़ा होकर नाम कमाएगा, पैसा कमाएगा। इसी मझधार वाली स्थिति में, धार्मिक, राजनितिक संगठनें अपने संख्या के विस्तार के रास्ते में इन्हें राहों पर देख लेता है और वही सीख देता है, जिससे उसका निहित स्वार्थ पूरा हो। फ़िर यहाँ वही कहानी दुहरायी जाती है। युवा वर्ग शिक्षा को मानते हैं पर शिक्षा की बात नही मानते, संस्कार को मानते हैं, पर संस्कार की नही, राजनीती को मानते हैं, पर राज की नीति की नही, कानून को सब मानते हैं, पर कानून की नही। नतीजा निकलता है शार्टकट में आदमी बनने के चक्कर में, कभी आतंकवाद तो कभी उग्रवाद तो कभी भ्रष्टाचार की साय में अपनी जिंदगी तरास्ते युवा वर्ग देश और समाज के खिलाफ खड़ा मिलता है। फ़िर उसके बाद चालू होता है ब्रेकिंग न्यूज़ का दौर, कैसे हुआ, कब हुआ, क्यों हुआ, कौन मास्टर माईंड है, कौन चेला है, कौन दहीना हाथ है, कौन बायाँ हाथ है, किसने जिम्मेवारी ली, किसने क्यों नही ली आदि-आदि। ऐसी-ऐसी जानकारी, की लगता है आने वाले समय में अच्छे पढ़े लिखे लोग शायद इन चीजों को अपने पाठ्यक्रम में लेंगे और इस पर मैनेजमेंट कर लाखों करोड़ों का पैकेज ले रहे होंगे। तब हम कहेंगे यही दुनिया का रिवाज है, और बार-बार पूछेंगे जिम्मेवार कौन ?
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