राष्ट्रीय महाधिवेशन - २००९

अपने तीन सालों के काम के बाद आदिवासी हो समाज महासभा की केन्द्रिये समिति ने राष्ट्रीय महादिवेशन करने का कठिन निर्णय लिया। महासभा के रूप में हो समाज की गतिविधि १९१४ से दर्ज की गई है। और इस तरह महासभा ने गठन के ९५ वर्षों बाद महाधिवेशन का राष्ट्रीय स्वरुप हो' समाज के पास लाया गया। आदिवासी हो समाज का गौरवशाली एवं संघर्षपूर्ण इतिहासिक पृष्ठभूमि के बावजूद हो' समाज पारंपरिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों के समयानुकूल रख रखाव एवं एकरूपता के आभाव में सामाजिक एवं संगठनात्मक विघठन के मद्देनजर हो' समाज को पुन: एक सूत्र में पिरोने की कोशिश इस राष्ट्रीय महाधिवेशन में की गई। झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल एवं देश के अन्य प्रदेशों में बसे हुए हो' समुदाय के समर्पित प्रतिनिधि, भाषा संस्कृति एवं शिक्षा के प्रति जागरूक युवा, समाजसेवी, एवं बुद्दिजिविओं ने महाधिवेशन की शोभा बड़ाई। राष्ट्रीय महाधिवेशन - २००९ के प्रतिनिधि सभा ने धार्मिक एकरूपता के लिए एक समय में पर्व त्यौहार मनाने, धर्मग्रन्थ बनाने एवं धर्मगुरुओं को बनाने पर सर्वसहमति से प्रस्ताव पारित किया गया। साथ ही पूजा उपासना के कार्यक्रमों में ज्यादा से ज्यादा संख्या में भाग लेने को प्रोत्साहित करने की प्रेरणा भी। महाधिवेशन के पूर्व समाज के असंतुष्ट समूह भी बने, जिनका सामाजिक उठान से कोई लेना देना नही था, परन्तु स्वार्थ की महत्वाकांक्षा को दैनिक समाचार पत्रों के माध्यम से देने से इसीलिए भी गुरेज नही किया क्योंकि उनका सामाजिक कल्याण एवं उत्थान मकसद नही था, वरन दबाव की राजनीती कर महासभा को अपने कब्जे में लेना था। किसी व्यक्ति विशेष से नाराजगी के लिए समाज को ही बार-बार बदनाम करने से भी वे लोग पीच्चे नही हटे। हो' समाज ही छवि को धूमिल करने का प्रयाश बार बार होता रहा और ख़ुद को समाज से भी ऊपर दिखने का प्रयाश देखा गया। समाज की बातों को महासभा के पटल में रखने के बजाये पेपर में इसीलिए दिया जाता रहा की नाम हो। कुछ सामाजिक गद्दारों के इस प्रयाश ने महासभा को और बेहतर आयोजन करने की प्रेरणा दी। जिसका स्वरुप इस तरह था की असोसिअशन मैदान चैबासा में अब तक का सबसे बड़ा बभ्य पंडाल २५०० स्क्वायर फ़ुट में बनाया गया। और तक़रीबन हजार की संख्या में प्रतिनिधि सभा ने इसकी शोभा बड़ाई। इसकी भाभ्यता से दुश्मन सोच रखने वाले समूह ने भी हार स्वीकार कर लिया और इस राष्ट्रीय महाधिवेशन का हिस्सा बन हो' समाज को एक इकाई के रूप में संगठित करने में अपनी भूमिका खोजते नजर आए। महाधिवेशन ने युवा नेतृत्व को स्वीकारते हुए एक युवा अध्यक्ष को महासभा की कमान दी। और यह उम्मीद की गई की समाज सेवा के लिए विचार एवं महासभा की विचारधारा के आधार पर कार्यक्रमों को समाज के सामने नवचयनित अध्यक्ष सक्षम होंगे और सबों का सहयोग उन्हें मिलेगा तथा केन्द्रीय समिति के विस्तार की जिम्मेदारी उन्हें दी गई।

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