विलकिंसन'स ने हमको, हमारी संस्कृति को जानने समझने के बाद इस तरह के विद्रोह को समाप्त करने की रणनीति पर काम किया। तब उन्होंने वोंगा बुरु, दुपुब दिशुम दोस्तुर, एवं राजनितिक व्यवस्था मानकी मुंडा में से मानकी मुंडा को ललचाया। उन्होंने मानकी- मुंडा को इस बात के लिए राजी किया की लगान तो आप ही बसुलेंगे तथा आपका पद आपके वंश में ही रहेगा। इस बात से मानकी-मुंडा लालच में आ गए और असुरा गाँव के जमादार मानकी के साथ इन्ही कुछ विन्दुओं पर एकरारनामा हो गया। उस समय उन्होंने देखा की आदिवासी अपने पारंपरिक व्यवस्था के कट्टर समर्थक थे, उनको किसी तरह की परेशानी पसंद नहीं था, शांति से जीवन यापन पर आधारित आदिवासियों की जीवन शैली थी। आशांति की स्थिति में विद्रोह उनकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती थी। उन्होंने देखा की कोर्ट कचहरी के कारण भी हो' लोगों के बीच काफी अशांति थी। तब कोल विद्रोह के पश्चात् अंग्रेजों ने अपने चार्टेड अधिनियम में व्यापक फेरबदल कर आदिवासियों के लिए बंगाल रेगुलेशन १३ सन १८३३ बनाया और २ दिसम्बर १८३३ को इसे स्वीकृत कर दिया गया। यह पूर्णत: स्वशासन व्यवस्था को स्वीकार करने वाली कागज थी। यही कोल्हान का पहला संविधान था। इसमें सिविल एवं क्रिमिनल मामलों के सभी अदालतों को जो आदिवासी क्षेत्रों में चल रहे थे को रद्द कर दिया गया और खुले आसमान के नीचे पंचायतों (हतु दुनुबों) को स्वीकृति दे दी गई। इसी व्येवास्था को आगे बढ़ाते हुए १८३७ में विलकिंसन'स रुल जारी किया गया, जो एक तरह का दस्तूर व्यवस्था को ही नियम बनाकर लागु किया गया। मानकी एवं मुंडाओं को पट्टा देकर सम्मानित किया गया और इस तरीके से हो' आदिवासियों के अशांति को हमेशा-हमेशा के लिए शांत कर दिया गया। जिस क्षेत्र में विलकिंसन'स रूल था उन्हें सिडुल डिस्ट्रिक्ट एक्ट १८७४ के तहत पहले अनुसूची में रखा गया। भारत देश के आजाद होने पर विलकिंसन'स रूल जैसे नियमों को बरक़रार रखते हुए संविधान के अनुच्छेद १३(३) में जगह रुढी वादी प्रथाओं के रूप में स्थान दिया गया। इस तरह मानकी-मुंडा व्यवस्था एक संविधानिक संस्था हो गई। इन क्षेत्रों के नियंत्रण एवं प्रशासन के लिए पांचवी अनुसूची को अनुच्छेद २४४(१) के तहत रखा गया। इसके लिए आदिवासियों को अनुच्छेद ३४२ के अंतर्गत आदिवासी होने के गुणों को पालन करना होगा। उन्ही के लिए अनुच्छेद २४४(१) बनाया गया। इसे ही पांचवी अनुसूची कहा जाता है।
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