पांचवी अनुसूची कहता है की संविधान में कोई बात के होते हुए भी इस क्षेत्र के आदिवासियों के नियंत्रण एवं प्रशासन, शांति एवं सुशासन तथा कल्याण एवं उन्नति के लिए अपवादों एवं उपान्त्रणों के अधीन रहते हुए कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका शक्ति का विस्तार किया जाता है।
अर्थात यहाँ शांति एवं सुशासन देना है। यह आदिवासियों का अधिकार है। इसके लिए नियंत्रण एवं प्रशासन की सामान्य भारत से अलग व्यवस्था दी जाएगी। इस हेतु अपवादों एवं उपान्त्रनों के अधीन रहते हुए कार्यपालिका, विधायिका, एवं न्यायपालिका शक्ति का इस्तेमाल किया जायेगा।
पांचवी अनुसूची क्षेत्र सिर्फ आदिवासी एवं उसके सहयोगी समाजों के लिए अधिसूचित है। अत: इस क्षेत्र में सिर्फ और सिर्फ आदिवासी ही रह सकता है, व्यापार कर सकता है, वोट दे सकता है, चुनाव लड़ सकता है, नौकरी कर सकता है। गैर आदिवासियों को यह सब अधिकार पांचवी अनुसूची में नहीं दिया गया है। इस प्रकार हमारे इलाके में सभी नौकरियों पर सौ फीसदी आदिवासियों का अधिकार बनता है। और हाँ यदि हम बाहरी लोगों को कुछ आरक्षण देना चाहें तो दिया जा सकता है। यह व्यवस्था हमारे संविधान की मूल भावना है, किन्तु आजादी के इतने साल बाद भी इसे किसी राज्य सरकारों ने लागु करने की हिम्मत नहीं की। हम आदिवासियों का पूरा अधिकार पांचवी अनुसूची में निहित है और सुरक्षित है। उदहारण स्वरुप CNT एक्ट की धारा ४६ हमें उपायुक्त से अनुमति के बाद अपनी जमीन बेचने का अधिकार देता है, जिसके तहत आज कोल्हान की जमीन की खरीद बिक्री हो रही है और बहती गंगा में गैर आदिवासी भी हमारी जमीन अवैध तरीके से ले रहे हैं, कब्जे कर रहे हैं। किन्तु यहीं हम पांचवी अनुसूची से अनुच्छेद २४४(१) के पारा ५(२) देखें तो उसमें स्पष्ट किया हुआ है की आदिवासियों की जमीन किसी भी सूरत में गैर-आदिवासियों को हस्तांतरण नहीं किया जा सकता, चाहे वह लीज़ के रूप में हो, या खरीद बिक्री के रूप में। अब सोचने वाली बात है की हमें सी०एन टी एक्ट के बदलाव पर हो हल्ला ज्यादा सुनाई देता है, किन्तु संविधान के अकाट्य कवच पांचवी अनुसूची पर हम सब मौन क्यों हैं? इसे सिर्फ लागु करा देने मात्र से हमारे बहुत सारे सपने सच हो सकते हैं, चाहे वह माइनिंग की बात हो, या नौकरी की बात, सब पर हम आदिवासियों का अधिकार संविधान हमें दे रहा है। किन्तु हम लेने के लिए गलत कार्यालय में आविदन दे रहे हैं।
अब बात उठती है की यदि १५ अगुस्त १९४७ को देश आजाद हुआ तो इसे हम पहली आजादी की संज्ञा देते हैं। २६ नवम्बर 1949 को देश में संविधान लागु हुआ इसे दूसरी आजादी की संज्ञा दी जा सकती है। संविधान में लिखी बातों को लागु करने की लड़ाई अब तीसरी आजादी की लड़ाई है। इसीलिए हम इसे तीसरी आजादी की लड़ाई कह रहे हैं। क्या यह सही मायने में तीसरी आजादी की लड़ाई होगी????
अर्थात यहाँ शांति एवं सुशासन देना है। यह आदिवासियों का अधिकार है। इसके लिए नियंत्रण एवं प्रशासन की सामान्य भारत से अलग व्यवस्था दी जाएगी। इस हेतु अपवादों एवं उपान्त्रनों के अधीन रहते हुए कार्यपालिका, विधायिका, एवं न्यायपालिका शक्ति का इस्तेमाल किया जायेगा।
पांचवी अनुसूची क्षेत्र सिर्फ आदिवासी एवं उसके सहयोगी समाजों के लिए अधिसूचित है। अत: इस क्षेत्र में सिर्फ और सिर्फ आदिवासी ही रह सकता है, व्यापार कर सकता है, वोट दे सकता है, चुनाव लड़ सकता है, नौकरी कर सकता है। गैर आदिवासियों को यह सब अधिकार पांचवी अनुसूची में नहीं दिया गया है। इस प्रकार हमारे इलाके में सभी नौकरियों पर सौ फीसदी आदिवासियों का अधिकार बनता है। और हाँ यदि हम बाहरी लोगों को कुछ आरक्षण देना चाहें तो दिया जा सकता है। यह व्यवस्था हमारे संविधान की मूल भावना है, किन्तु आजादी के इतने साल बाद भी इसे किसी राज्य सरकारों ने लागु करने की हिम्मत नहीं की। हम आदिवासियों का पूरा अधिकार पांचवी अनुसूची में निहित है और सुरक्षित है। उदहारण स्वरुप CNT एक्ट की धारा ४६ हमें उपायुक्त से अनुमति के बाद अपनी जमीन बेचने का अधिकार देता है, जिसके तहत आज कोल्हान की जमीन की खरीद बिक्री हो रही है और बहती गंगा में गैर आदिवासी भी हमारी जमीन अवैध तरीके से ले रहे हैं, कब्जे कर रहे हैं। किन्तु यहीं हम पांचवी अनुसूची से अनुच्छेद २४४(१) के पारा ५(२) देखें तो उसमें स्पष्ट किया हुआ है की आदिवासियों की जमीन किसी भी सूरत में गैर-आदिवासियों को हस्तांतरण नहीं किया जा सकता, चाहे वह लीज़ के रूप में हो, या खरीद बिक्री के रूप में। अब सोचने वाली बात है की हमें सी०एन टी एक्ट के बदलाव पर हो हल्ला ज्यादा सुनाई देता है, किन्तु संविधान के अकाट्य कवच पांचवी अनुसूची पर हम सब मौन क्यों हैं? इसे सिर्फ लागु करा देने मात्र से हमारे बहुत सारे सपने सच हो सकते हैं, चाहे वह माइनिंग की बात हो, या नौकरी की बात, सब पर हम आदिवासियों का अधिकार संविधान हमें दे रहा है। किन्तु हम लेने के लिए गलत कार्यालय में आविदन दे रहे हैं।
अब बात उठती है की यदि १५ अगुस्त १९४७ को देश आजाद हुआ तो इसे हम पहली आजादी की संज्ञा देते हैं। २६ नवम्बर 1949 को देश में संविधान लागु हुआ इसे दूसरी आजादी की संज्ञा दी जा सकती है। संविधान में लिखी बातों को लागु करने की लड़ाई अब तीसरी आजादी की लड़ाई है। इसीलिए हम इसे तीसरी आजादी की लड़ाई कह रहे हैं। क्या यह सही मायने में तीसरी आजादी की लड़ाई होगी????
Comments