कोल्हान के २० सामाजित संघठनो ने अंतराष्ट्रिये दिवस के उपलक्ष्य में पिल्लई हॉल चाईबासा में आदिवासी एकता का परिचय दिया। हॉल से तीन गुना ज्यादा लोग उपस्थित हुए और अगली दफा किसी बड़े मैदान से कम में नहीं काम होगा। आबुआ दिशुम आबुआ राज, नगरपालिका का विस्तारीकरण बांध करो, आदिवासी विरोधी ऍम.ओ.यू.रद्द करो, अंतराष्ट्रिये आदिवासी दिवस जिंदाबाद, आदिवासी एकता जिंदाबाद, आदि नारों से पूरा चाईबासा शहर गूँज रहा था। ऐसा लग रहा था मानो आदिवासियों को ६ दशक से ठगे जाते रहने के कारण दिल में काफी दर्द हो रहा है, और सब कुछ बोलना चाह रहे हों। इन ६ दसकों में गरीबी,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार ही आदिवासियों के नसीब में मिलने के कारण पूरा आदिवासी समुदाय आहात एवं आक्रोशित नजर आ रही थी। पहली बार इस उपलक्ष्य में बच्चे बूढ़े और जवान तथा नौकरिसुदा आदिवासियों ने अपने को आयोजन का हिस्सा बनाया। पिल्लई हॉल चाईबासा से रैली निकाली गई और पोस्ट ऑफिस चौक, कोर्ट परिसर, डी.सी.ऑफिस, जैन मार्केट होते हुए वापस पिल्लई हॉल लौटी। पिल्लई हॉल में सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं विभिन्न वक्तावों ने अपने विचार रखे। हो, मुंडा, संथाल एवं उरांव समुदाय की भागीदारी रही। वक्तावों ने स्पष्ट शब्दों में कहा ही हम अनुसूचित जनजाति नहीं वरन आदिवासी हैं। संविधान में अनुसूचित जनजाति के जगह पर आदिवासी शब्द का इस्तमाल हो की वकालत की गयी। अंतराष्ट्रिये आदिवासी दिवस की महता, नगरपालिका का अवैध विस्तार, आदिवासियों की संविधानिक सुरक्षा, विस्थापन, धर्म कोड सरना, अंतराष्ट्रिये आदिवासी दिवस एवं महिलाएं, आदि विषयों में क्रमश: चंद्रभूषण देओगम, डी.एन.चम्पिया, मुकेश बिरुआ, रमेश जेरई, सुरेश चन्द्र हंसदा, कस्तूरी बोइपाई, आदि ने अपने विचारों ने आदिवासी समूह को आंदोलित किया। जिला प्रशासन, राज्य सरकारें एवं भारत सरकार आदिवासी विरोधी है और हम सभी आदिवासियों को मिलकर इसका कड़ा विरोध करने के लिए तैयार होना है। अपने जल, जंगल, और जमीन के अधिकारों के लेकर रहना है, यही इस आयोजन में बार-बार आवाज गूंज रही थी। १० बजे से आई जनता शाम चार बजे तक हॉल से हटने का नाम नहीं ले रही थी। यह एक तरह का वैचारिक क्रांति का आगाज महसूश होता है। यह आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है।
इस आयोजन को सफल बनाने में सबसे ज्यादा आदिवासी हो समाज महासभा ने मेहनत किया ऐसा उनके दौरों से पता चलता है। महासभा ने दौरे के लिए तीन समूहों को जिम्मेदारी दी १- मधुसुधन मरला के नेतृत्व में,२- रमेश सिघ कुंटिया के नेतृत्व में तथा ३-मुकेश बिरुआ के नेतृत्व में। इन समूहों ने चाईबासा से सटे १० कि.मी.राडियास में पचासों गाँव का भ्रमण किया। जिसका परिणाम पिल्लई हॉल में देखने को मिला। इसके अलावे महिला समूह, जोहार, युवा जुमुर आदि ने भी अपनी-अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाया। आने वाले कल में आदिवासी अपने अधिकारों को लेकर रहेंगे और इसके लिए खास रणनीति पर काम किया जायेगा ऐसा निर्णय भी लिया गया।
इस आयोजन को सफल बनाने में सबसे ज्यादा आदिवासी हो समाज महासभा ने मेहनत किया ऐसा उनके दौरों से पता चलता है। महासभा ने दौरे के लिए तीन समूहों को जिम्मेदारी दी १- मधुसुधन मरला के नेतृत्व में,२- रमेश सिघ कुंटिया के नेतृत्व में तथा ३-मुकेश बिरुआ के नेतृत्व में। इन समूहों ने चाईबासा से सटे १० कि.मी.राडियास में पचासों गाँव का भ्रमण किया। जिसका परिणाम पिल्लई हॉल में देखने को मिला। इसके अलावे महिला समूह, जोहार, युवा जुमुर आदि ने भी अपनी-अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाया। आने वाले कल में आदिवासी अपने अधिकारों को लेकर रहेंगे और इसके लिए खास रणनीति पर काम किया जायेगा ऐसा निर्णय भी लिया गया।
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