कोल्हान का कानूनी इतिहास

बंगाल रेगुलेशन १३ सन १८३३ आदिवासियों का संविधान था, जिसमें सामान्य क्षेत्र की कानूनी व्यवस्थाओं को कोल्हान एवं पोराहाट क्षेत्रों में समाप्त कर ट्राइबल सेल्फ गवर्नमेंट सिस्टम यानि स्वशासन व्यवस्था को मान्यता दिया गया। इसी के तहत सामाजिक न्याय की व्यवस्था को कानूनी मान्यता देते हुए विलकिंसन रूल को १८३७ से लागू किया गया। इसका क्षेत्राधिकार रामगढ़ से क्योंझर-मयुरभंज तथा बंगाल से रांची तक ६२ हजार वर्ग मील में फैला था। इस क्षेत्र को अनुसूचित जिला अधिनियम १८७४ के तहत पहली अनुसूची में रखते हुए विधि वहिर क्षेत्र घोषित किया गया। इस तरह कोल्हान क्षेत्र को सीधे केंद्र यानि ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में रखा गया। इस क्षेत्र को भारत अधिनियम १९१९ एवं भारत अधिनियम १९३५ के तहत विधि वहिर क्षेत्र के रूप में मान्यता बरकरार रखते हुए दोहरी शासन व्यवस्था को ख़ारिज किया गया। यानि भारत देश के अन्दर एक समय में सिर्फ एक ही व्यवस्था को मान्यता मिलेगा। भारत आजादी अधिनियम १९४७ देश को आजाद करने की शर्त थी, जिसके धारा ७(ग) में स्पष्ट किया गया की रुदिजन्य विधियों को यूँ ही बरकरार रखा जायेगा तभी भारत आजाद होगा। जिसपर हस्ताक्षर के बाद ही देश आजाद हुआ। इस तरह से हमारे रुदिजन्य विधियों को भारत के संविधान में अनुच्छेद १३(३) में स्थान मिला, जो मौलिक अधिकार हैं। अनुसूचित जिला अधिनियम १८७४ के तहत अधिसूचित क्षेत्रों को भारत के संविधान में अनुच्छेद २४४(१) यानि पांचवी अनुशुची में स्थान दिया गया। एवं इसके शासन प्रशासन की व्यवस्था अपवादों एवं उपन्तारानों के अधीन रहते हुए करने का प्रावधान किया गया.

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