भारत का संविधान का अनुच्छेद २७५(१) अनुसूचित जनजातियों के कल्याण की अभिवृद्धि करने या उस राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन स्तर को उस राज्य के शेष क्षेत्रों के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के लिए बनाया गया है। इसके तहत संचित निधि को अंग्रेजी शासन व्यवस्था के समय से ही कोल्हान इम्प्रोव्मेंट फंड एवं कोल्हान मार्केटिंग फंड के नाम से जारी किया जाता था। इसी मद से कोल्हान के सारे विकास के कार्य संपन्न कराय जाते थे। कोल्हान के विकास के लिए इसी मद से १००० करोड़ रूपए तक सालाना मंगाए जा सकते हैं, जिससे प्रत्येक गाँव में १ करोड़ रूपए तक सालाना पहुँच सकते हैं। जबकि राज्य को पंचायत व्यवस्था हेतु ५०० करोड़ मिलने का प्रावधान है, जिससे प्रत्येक गाँव में मुश्किल से २ लाख रूपए पहुंचेंगे। अब हमें ही तय करना है की हमें १ करोड़ रूपए चाहिए या २ लाख। ध्यान देंगे तो आप पाएंगे की पंचायत व्यवस्था का यह पैसा तो अब भी हमारे गाँव में पहुँच रहा है। पंचायत प्रभारी, पंचायत सेवक, अंचल, एवं प्रखंड उसी व्यवस्था के तो अंग-प्रत्यंग हैं। अभी जो मिल रहा है वही बाद में भी मिलेगा, बस फर्क यही होगा की मुखिया और प्रमुख आदि पदों के मार्फत गाँव में आया पैसा लिफाफों में बंद होकर वापस मंत्री, नेता, नौकरशाह के पास चला जायेगा। हमारी गाढ़ी कमी को ये लोग गबन कर अपना पेट बड़ा करेंगे। यह व्यवस्था स्वीकार्य है या नहीं यह आपको तय करनी है।
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