विभिन्न कानूनी प्रावधानों के अलोक में आदिवासी क्षेत्रों के लिए पंचायतों पर उपबंध(अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम १९९६ यानि पेसा एक्ट १९९६ बनाया गया। इस कानून में इतिहासिक एवं सामाजिक पहलुओं को आत्मसात करने की कोशिश हुई और स्पष्ट किया गया की राज्य विधान सभाएं आदिवासी क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्थाएं बनाते समय छठी अनुसूची के पैटर्न का अनुपालन करते हुए स्वायतशासी परिषद् (कोल्हान कौंसिल) के गठन हेतु नियमावली बनाएगी जो आदिवासियों के १-रुदिजन्य विधि, २- सामाजिक और धार्मिक पद्धतियों, ३-सामुदायिक संपदाओं की परम्परागत प्रबंध पद्तियों, ४- जनसाधारण की परम्पराओं और रुदियों, ५- उनकी सांस्कृतिक पहचान तथा ६-सामुदायिक संपदाओं और विवाद निपटन के रूदिक ढंग का संरक्षण और परिरक्षण करने में सक्षम हो। इस तरह से कानून की धाराओं के साथ-साथ परंपरागत कानून के तहत लोगों की आस्थाओं को भी ध्यान में रखने की बात कही गई है। पेसा कानून १९९६ आज के परिदृश्य में आदिवासियों का संविधान है, और इससे असंगत (विपरीत) कोई कानून असंविधानिक होगा।
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