कोल्हान यानि कोल होन अर्थात कोल का वंशज। आदि संस्कृति एवं अध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित सामाजिक रीति-रिवाज के दैविक सिदान्त के अनुसार "कोल" सृष्टि के शूद मूल रूप को कहते हैं, जो देवताओं (प्रकृति के उपासक) का देव होता है। सत्य और ईमान की रुपरेखा है, रिशिओं का अध्यात्मिक स्वांस है, यह प्रकृति का विशाल अमृतवा शक्ति है, पवित्र आत्मा है। इस पृथ्वी पर पहले मानव स्वरुप को कोल कहा गया।
कोल्हान अपने सामाजिक न्याय की बेहद विकेंद्रीकृत लोकतान्त्रिक, सामाजिक एवं पारंपारिक कार्यशैली के लिए विश्व प्रसिद है। किन्तु विगत कुछ वर्षों में खास कर झारखण्ड अलग राज्य बनने के बाद भ्रष्ट सरकारों के कुकर्मों से विश्व भर के पूंजीपतियों को प्रशिद चिरिया माइंस के अलावे सारंडा के ७०० पहाड़ियों के निचे दबे अकूत खनिज सम्पदा ने ध्यान आकृष्ट कराया है। इस बीच मानवविज्ञानियों,इतिहासकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संस्थाओं को जल, जंगल एवं जमीन की लड़ाई में ही व्यस्त रहना पड़ा। यहाँ के आदिवासियों के समज्शास्त्रिये परिभाषा "आदि संस्कृति एवं अध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित सामाजिक रीती-रिवाज के दैविक सिदान्त" के तहत अधिनियमित विनियमों को इरादतन नजरंदाज किया गया, और अपनी सांस्कृतिक विरासतों के अनुकूल विकास के मौकों को भ्रष्टाचार लील कर गई। आज कोल्हान के सामने विश्थापन, सामाजिक कानून (विलकिंसन रुल) का अतिक्रमण, भाषा, लिपि, साहित्य, कला, संस्कृति, अर्थ व्यवस्था, पलायन, बेरोजगारी, संवेदन विहीन प्रशासन, परिसीमन(गलत जनगणना) आदि की ज्वलंत समस्याएं मुह बाएं कड़ी है। आदिवासियों के जल, जंगल एवं जमीन के अधिकार की लड़ाई को विकास विरोधी के रूप में प्रचारित किया गया, जबकि कोल्हान एवं सम्पूर्ण झारखण्ड आदिवासियों के लिए बनाया गया। संविधान में प्रदत आदिवासी अधिकारों को पिछले ६३ सालों में सिर्फ नाकारा गया और आज आदिवासी हासिये पर हैं। इन्हीं भावनाओं के कारण "कोल्हान पांचवी अनुसूची (अनुसूचित जनजाति रुदिजन्य विधि) अनुपालन समिति, चाईबासा" का गठन समसामयिक संविधानिक प्रावधानों को लागु करने के लिए श्री मधु सुदन मरला की अध्यक्षता में किया गया. हमारा प्रयास जो भी प्रावधान आदिवासियों के लिए संविधान में, विभिन्न कानूनों में यथा विलकिंसन रुल, सी.एन.टी.एक्ट १९०८, समता जजमेंट आदि में दिए गए हैं, उनका अक्षरश: पालन होना चाहिए। इस निमित जन आन्दोलन तैयार करना एवं अपने हक़ और अधिकारों को छीन कर ले लेना है। गैर आदिवासियों को कोई भी समस्या लगती है तो आवाज देने मात्र से उनकी बात सुन ली जाती है, और काम भी कर दिया जाता है, किन्तु वहीँ जब बात आदिवासियों के हक़ और अधिकार की बात होती है तो लगभग अनुसुना कर किया दिया जाता है। जवाब आपको तलासना है आखिर क्यों? अभी हाल ही में सी.एन.टी.एक्ट १९०८ को लागु करने सम्बन्धी सरकारी आदेश से पूंजीपतियों को नुकसान हो रहा था, कमोवेश १५-२० लोगों ने मिलकर रांची में क्या प्रदर्शन कर दिया की सरकार ने आदेश को विशेष प्रावधान के तहत वापस ले लिया। किन्तु सैकड़ों वर्षों से आदिवासी अपने हक़ और अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं, किन्तु फिर भी आज जल, जंगल और जमीन पूंजीपतियों को किस प्रावधान के तहत बेच दी जा रही है? आइये संविधानिक रूप से संगठित होने के लिए आगे आयें और अपने पूर्वजों के बलिदान को सार्थक करने के लिए हाथ से हाथ मिलकर अपनी संगठित एकता को दिखाते हुए दिकुओं को खदेड़ना है। यही इस समिति का मूल उद्देश्य है.
कोल्हान अपने सामाजिक न्याय की बेहद विकेंद्रीकृत लोकतान्त्रिक, सामाजिक एवं पारंपारिक कार्यशैली के लिए विश्व प्रसिद है। किन्तु विगत कुछ वर्षों में खास कर झारखण्ड अलग राज्य बनने के बाद भ्रष्ट सरकारों के कुकर्मों से विश्व भर के पूंजीपतियों को प्रशिद चिरिया माइंस के अलावे सारंडा के ७०० पहाड़ियों के निचे दबे अकूत खनिज सम्पदा ने ध्यान आकृष्ट कराया है। इस बीच मानवविज्ञानियों,इतिहासकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संस्थाओं को जल, जंगल एवं जमीन की लड़ाई में ही व्यस्त रहना पड़ा। यहाँ के आदिवासियों के समज्शास्त्रिये परिभाषा "आदि संस्कृति एवं अध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित सामाजिक रीती-रिवाज के दैविक सिदान्त" के तहत अधिनियमित विनियमों को इरादतन नजरंदाज किया गया, और अपनी सांस्कृतिक विरासतों के अनुकूल विकास के मौकों को भ्रष्टाचार लील कर गई। आज कोल्हान के सामने विश्थापन, सामाजिक कानून (विलकिंसन रुल) का अतिक्रमण, भाषा, लिपि, साहित्य, कला, संस्कृति, अर्थ व्यवस्था, पलायन, बेरोजगारी, संवेदन विहीन प्रशासन, परिसीमन(गलत जनगणना) आदि की ज्वलंत समस्याएं मुह बाएं कड़ी है। आदिवासियों के जल, जंगल एवं जमीन के अधिकार की लड़ाई को विकास विरोधी के रूप में प्रचारित किया गया, जबकि कोल्हान एवं सम्पूर्ण झारखण्ड आदिवासियों के लिए बनाया गया। संविधान में प्रदत आदिवासी अधिकारों को पिछले ६३ सालों में सिर्फ नाकारा गया और आज आदिवासी हासिये पर हैं। इन्हीं भावनाओं के कारण "कोल्हान पांचवी अनुसूची (अनुसूचित जनजाति रुदिजन्य विधि) अनुपालन समिति, चाईबासा" का गठन समसामयिक संविधानिक प्रावधानों को लागु करने के लिए श्री मधु सुदन मरला की अध्यक्षता में किया गया. हमारा प्रयास जो भी प्रावधान आदिवासियों के लिए संविधान में, विभिन्न कानूनों में यथा विलकिंसन रुल, सी.एन.टी.एक्ट १९०८, समता जजमेंट आदि में दिए गए हैं, उनका अक्षरश: पालन होना चाहिए। इस निमित जन आन्दोलन तैयार करना एवं अपने हक़ और अधिकारों को छीन कर ले लेना है। गैर आदिवासियों को कोई भी समस्या लगती है तो आवाज देने मात्र से उनकी बात सुन ली जाती है, और काम भी कर दिया जाता है, किन्तु वहीँ जब बात आदिवासियों के हक़ और अधिकार की बात होती है तो लगभग अनुसुना कर किया दिया जाता है। जवाब आपको तलासना है आखिर क्यों? अभी हाल ही में सी.एन.टी.एक्ट १९०८ को लागु करने सम्बन्धी सरकारी आदेश से पूंजीपतियों को नुकसान हो रहा था, कमोवेश १५-२० लोगों ने मिलकर रांची में क्या प्रदर्शन कर दिया की सरकार ने आदेश को विशेष प्रावधान के तहत वापस ले लिया। किन्तु सैकड़ों वर्षों से आदिवासी अपने हक़ और अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं, किन्तु फिर भी आज जल, जंगल और जमीन पूंजीपतियों को किस प्रावधान के तहत बेच दी जा रही है? आइये संविधानिक रूप से संगठित होने के लिए आगे आयें और अपने पूर्वजों के बलिदान को सार्थक करने के लिए हाथ से हाथ मिलकर अपनी संगठित एकता को दिखाते हुए दिकुओं को खदेड़ना है। यही इस समिति का मूल उद्देश्य है.
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