हो समाज में ब्रत और उपवास

आदिवासी हो समाज में लिटा गोर्गोनिड (आदिवासी कैलेंडर) के अनुसार १७ मार्च से आगामी अप्रैल २०११ तक २१ दिनों का विशेष कटब तुरुब (ब्रत एवं उपवास) कर ध्यान करने का दिन माना जाता है। इसमें हो समुदाय के लोग साल में एक बार इसी दरम्यान ब्रत और उपवास रखकर कुबुदी को समाप्त एवं सुबुदी हासिल करने के लिए सिंग्वोंगा, गोरम गैशिरी, देशावली, पौण्डी, जयरा, एवं गोवां वोंगा के नाम से ध्यान करते हैं और शक्ति हासिल करते हैं। ध्यान करने के लिए यथाशक्ति २१ दिनों तक हो समुदाय में ११-५७ बजे रात से १-२७ बजे अपरहण तक ब्रत एवं उपवास रख कर उसे लुपुंग, रोला, एवं मेरेल का सेवन कर तोड़ते हैं और देवी-देवताओं को भी इसी का भोग लगाते हैं। आजकल इसी जगह पर गुड, चना, एवं तबेन का भोग लगाया जा सकता है। यदि २१ दिन का ब्रत एवं उपवास नहीं हो पा रहा हो तो ७ दिन का ब्रत एवं उपवास भी हर हो समुदाय के लोगों को करना चाहिए। आज इन्ही अनुष्ठानों को भूलने के कारण लोग सिंग्वोंगा, गोरम गैशिरी, पौण्डी, जयरा, एवं गोवां वोंगा आदि आदिवासी देवी-देवताओं को भूल रहे हैं और यही कारण है की आज हो समुदाय अपने धर्म एवं संकृति को भूल रहे हैं। इस ब्रत एवं उपवास को विधि पुर्बक पूरा करने से व्यक्ति को वोंगा बुरु से विशेष शक्ति हासिल होती है और इसी दरम्यान हमारे वोंगा-बुरु हमें हर तरह की समस्याओं का निदान सपनों में या साक्षात् प्रकृति में दिखाते हैं। आज हम इस तरह के अपने अनुष्ठानों को भूल कर हिन्दू, मुसलमान या इसाई धर्म के अनुष्ठानों में गुमराह हो गए हैं और अपनी संस्कृति एवं धर्म को जाने अनजाने में हम अपुर्निये क्षति पंहुचा रहे हैं। इन चीजों को जान कर समझ कर अपनाने से ही हो समाज अपनी पहचान को वापस बचा पायेगा जिसकी जिम्मेदारी हम सबकी है और गर्व से हमें आदिवासी 'हो' कहलाना चाहिए।
दास राम बरदा
धर्म सचिव
आदिवासी हो समाज महासभा

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