पांचवी अनुसूची एक चिंतन

संविधान की पांचवी अनुसूची के प्रावधानों को पिछले 67 वर्षों में कभी अमल में नहीं लाया गया। यह एक गंभीर मामला है। पांचवी अनुसूची क्षेत्र में आदिवासियों के बीच नियंत्रण एवं प्रशासन के लिए पेसा कानून 1996 की धारा 4(0) के तहत स्वायतशासी परिषद् का नियमावली राज्य सरकार को बनाना था, जो विधि सम्मत था लेकिन अभी तक नहीं बनाकर आदिवासियों को ठगा गया। आदिवासियों के कल्याण एवं उन्नति के लिए संविधान का अनुच्छेद 275 (1) के तहत केंद्रीय कोष की व्यवस्था है पर आज सामान्य क्षेत्र का कानून लागू कर आदिवासियों को असीमित कोष से वंचित किया जा रहा है। आदिवासी इलाकों के शांति एवं सुशासन के लिए अपवादों एवं उपन्तारणों के अधीन रहते हुए हातु दुनुब(ग्राम सभा) के आधार पर संसद से भी ऊपर की व्यवस्था देनी थी पर ऐसा नहीं किया गया। पुलिस कानून, कोर्ट व्यवस्था, प्रखंड व्यवस्था आदि अनुसूचित क्षेत्रों के लिए नहीं है पर आज इसी व्यवस्था का बोलबाला है। हो(आदिवासी) भाषा बोलने वाला साधारण आदिवासी पर पुलिस केस दर्ज कर देती है, वह हिंदी नहीं जनता है। इस कारण पुलिस अपनी बात कहती है और आदिवासी की बात न तो पुलिस समझती है और न ही उसके पक्ष में खड़ा वकील समझता है। नतीजा आदिवासी को बिना जुर्म के ही हवालात ही हवा खानी पड़ती है। आदिवासी बोल रहा होता है की मैं अपने भेड़ बकरियों को चारा रहा था और पुलिस एवं अन्य गैर आदिवासी उसे अपने जुर्म कुबूलने की बात लगती है। और जेल भेज दिया जाता है। इस व्यवस्था में कहाँ शांति है, कहाँ सुशासन है? यहाँ तो अशांति और कुशासन है। जबकि संविधान आदिवासियों के बीच शांति और सुशासन देने की बात कहती है। यानि यह व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्र के लिए नहीं है। फिर भी आज हम इसी व्यवस्था से शासित हैं, क्योंकि बुद्दिजीवी, समाजसेवी, और पढ़े लिखे लोग इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं। गाँव में अनपढ़ लेकिन समझदार आदिवासी रहते हैं, वे सब समझ रहे होते हैं, लेकिन गैर आदिवासियों के बीच अपनी बात नहीं समझा सकते। कितनी विडंवना है की यह हमारा देश भारत है और आदिवासी राज्य झारखण्ड है। जहाँ आदिवासियों की भावना समझने वाला पता नहीं कोई है भी या नहीं। उदहारण के तौर पर कोल्हान में विलकिंसन रुल आधारित मानकी मुंडा व्यवस्था के अस्तित्व पर गंभीर परिणाम होने वाले हैं। मानकी मुंडाओं को सिर्फ भत्ता दे देने से यह व्यवस्था नहीं बच सकती वरण इसे सुचारू रूप से चलने के लिए पेसा कानून 1996 के धारा 4 (0) के तहत स्वायतशासी परिषद् का नियमावली बनाना था और मानकी एवं मुंडाओं को हुकुक्नमा की शक्तियों को उपयोग करने के लिए विलकिंसन रुल को शक्ति से लागु करना था किन्तु झारखण्ड सरकार ने ऐसा नहीं किया। मानकी मुंडा व्यवस्था यदि समाप्त होता है तो आदिवासी हो समाज की इस सामाजिक, पारंपरिक, एवं लोकतान्त्रिक व्यवस्था भी इतिहास के किताबों में मिलेगी और वह भी गैर आदिवासी ही लिखेगा और कल हमारे बच्चे शोध के विषय में जब इस विषय को चुनेंगे तो शर्म से या गर्व से हम लाल जरुर होंगे।

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