संविधानिक दृष्टि में कोल्हान के आदिवासियों के हितों की रक्षा पर समालोचना-२

३- संविधान के आर्टिकल 40 के अनुसार बिहार ग्राम पंचायत राज्य कानून पास हुआ था जो कोल्हान और पोड़ाहाट को छोड़कर बिहार में लागू होना चाहिए था। इसी तरह बर्तमान में पेसा कानून 1996 की धारा 4 (o ) के तहत यहाँ पर स्वायतशासी परिषद् बनाना था, पर झारखण्ड पंचायती राज अधिनियम के तहत पुन: पंचायत चुनाव करा दिया गया जो बिलकुल गलत है। क्योंकि यहाँ पर पहले से ही मानकी मुंडा प्रशासन चल रहा है। अगर सामान्य क्षेत्र का पंचायत व्यवस्था लागू ही करना था तो पहले मानकी मुंडा प्रशासन को हटा देना चाहिए था पर वैसा नहीं किया। क्योंकि वैसा करने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है। ग्राम स्तर के प्रशासन में मुखिया आदि चुनाव सिद्दांत पर आये और सरकार सिर्फ ग्राम पंचायत प्रशासन की ओर ही विशेष ध्यान दे रही है। मानकी मुंडा प्रशासन की अवहेलना कर रही है और इसे मार भी नहीं दिया पर पंगु बना कर रख दिया। बर्तमान ग्राम पंचायत प्रशासन और मानकी मुंडा प्रशासन दोनों सामानांतर रूप में कोल्हान और पोड़ाहाट में चल रहे हैं। दूसरी ओर सन 1948 के बाद सामान्य पुलिस प्रशासन की लिए कई थाना खुल जाने से कोल्हान पोड़ाहाट में तीन प्रकार के पुलिस प्रशासन चल पड़े। बिहार भूमि सुधर कानून द्वारा हल्का कर्मचारी, अंचल अधिकारी, अंचल निरीक्षक, भूमि सुधर उपसमाहर्ता आदि पदाधिकारी आये। इनके पीछे सरकार करोड़ों रूपए खर्च कर रही है। इनके आने से मानकी मुंडा के अधिकार और कर्तव्यों के साथ रेवेन्यु कार्य में टकराव हुआ। मानकी मुंडा लोगों को मालगुजारी का 30 प्रतिशत ही मेहनताना के रूप में मिलता है। सरकार का इतने थोड़े खर्च पर ही पुलिस, रेवेन्यु, तथा न्याय इन तीनो का काम ग्राम स्तर पर चल जाता था। इस प्रकार कोल्हान पोड़ाहाट के ग्राम प्रशासन में पूर्ण गड़बड़ी पैदा हो गयी। सरकार ने विकास के लिए ग्राम पंचायत का सहारा ले रही है जिससे अभी तक कोई भी योजनायें सफल नहीं हुई है।
कोल्हान पोड़ाहाट के लोगों में सार्वजानिक चीजों के लिए श्रमदान देने की भावना थी, वह भी समाप्त हो गयी जो बहुत ही बड़ा गुण था। मानकी मुंडा प्रशासन राजनितिक बुराइयों से परे है, स्थाई है। ग्राम पंचायत प्रशासन राजनितिक है, तथा बुराइयों से युक्त है। अस्थाई है। इसकी नीति रांची में निर्धारित होती है, जिस कारण स्थानीय समस्याओं की सही जानकारी नहीं हो पाती। ग्राम स्तर के प्रशासन का जिस तरह खिचड़ी बना दिया गया है उससे प्रगति में बाधा तो हो ही रही है और हो सकता है मुख्य रूप से यहाँ के आदिवासियों के विनाश का कारण भी हो जाय।

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