1 - बंगाल रेगुलेशन 13 सन 1833 की धारा 5 के अनुसार विलकिंसन'स रुल बना। इस रूल्स के द्वारा सामाजिक रीति रिवाज, जो कानून की तरह मान्य हैं, जिसको सर्व साधारण कानून कहा जाता है, मान्यता दी गयी। कोल्हान में सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार दीवानी मामलों का विचार तीन या पाँच पंच द्वारा होता है। इसी पंच की राय के अनुसार सिंहभूम जिला के कोल्हान अधीक्षक, उपायुक्त तथा आयुक्त रांची के न्यायालयों में न्याय होता है। इसीलिए सिविल प्रोसीजर कोड कोल्हान में लागू नहीं है। क्योंकि संविधान के आर्टिकल 13 के अनुसार सामाजिक रीति-रिवाज, जो कानून के रूप में लागू है, उसमें हस्तक्षेप करने का प्रतिबन्ध है, इसीलिए विधान सभा तथा संसद विलकिंसन रुल में हस्तक्षेप नहीं कर रही है।
2 - बंगाल रेगुलेशन 13 सन 1833 के अनुसार गवेर्नर को कौंसिल के आदेशानुसार जो अधिकार प्राप्त हुआ, उसी के अनुसार कोल्हान के आदिवासियों के मानकी मुंडाओं के साथ अपने एजेंट के माध्यम से सुलहनामा किया। इन्ही सरदारों को सन 1838 को हुकूकनमा दिया गया। डॉ.के.के.दत्ता,प्रधान अध्यापक पटना विश्व विद्यालय के अनुसार "हो" भारत की वह महान जाति है जो कभी पराजय नहीं जानती। हुकूकनमा में मानकी एवं मुंडाओं के अधिकार एवं कर्तव्यों के बार लिखा हुआ है। इनको कड़ी हिदायत दी गयी है की वे बराबर हुकूकनमा के अनुसार कार्य करें, अन्यथा हुकूकनमा उनसे वापस ले ली जाएगी और अन्य लोगों को दी जाएगी। इसीलिए मानकी मुंडा का पद तभी तक वंश परम्परागत है, जब तक उनमें योग्यता है, तथा हुकूकनमा के अनुसार कार्य करते हैं। जहाँ तक पुलिस अधिकार का प्रश्न है, मानकी को पुलिस दरोगा का, मुंडा को हवालदार का, तथा डाकुआ को सिपाही का अधिकार है। मानकी मुंडा लोगों को मालगुजारी अदय करने, परती जमीनों की बंदोबस्ती करने, सड़क किनारे सर्वसाधारण स्थानों तथा ग्रामीण वनों की देख भाल करने का कार्यभार दिया गया है। इनके अलावे स्कूल भवन, ग्रामीण रास्ता, नाहर आदि को प्रजाओं द्वारा थोडा बहुत श्रम दान के माध्यम से मरम्मत कराने का भी अधिकार है। इस प्रकार इनको पुलिस, रेवेन्यु, तथा न्याय तीनों अधिकार दिए गए हैं। मानकी मुंडा चुनाव पद्धति से नहीं बल्कि सामाजिक रीति रिवाज को जानने वालों के बीच से चयन द्वारा होता है. इसीलिए विलकिंसन रुल 20 के अनुसार अदालत मानकी मुंडा लोगों को ही सरकारी पंच के रूप में दीवानी मामलों के पंच विचार के वास्ते चुनती है।
2 - बंगाल रेगुलेशन 13 सन 1833 के अनुसार गवेर्नर को कौंसिल के आदेशानुसार जो अधिकार प्राप्त हुआ, उसी के अनुसार कोल्हान के आदिवासियों के मानकी मुंडाओं के साथ अपने एजेंट के माध्यम से सुलहनामा किया। इन्ही सरदारों को सन 1838 को हुकूकनमा दिया गया। डॉ.के.के.दत्ता,प्रधान अध्यापक पटना विश्व विद्यालय के अनुसार "हो" भारत की वह महान जाति है जो कभी पराजय नहीं जानती। हुकूकनमा में मानकी एवं मुंडाओं के अधिकार एवं कर्तव्यों के बार लिखा हुआ है। इनको कड़ी हिदायत दी गयी है की वे बराबर हुकूकनमा के अनुसार कार्य करें, अन्यथा हुकूकनमा उनसे वापस ले ली जाएगी और अन्य लोगों को दी जाएगी। इसीलिए मानकी मुंडा का पद तभी तक वंश परम्परागत है, जब तक उनमें योग्यता है, तथा हुकूकनमा के अनुसार कार्य करते हैं। जहाँ तक पुलिस अधिकार का प्रश्न है, मानकी को पुलिस दरोगा का, मुंडा को हवालदार का, तथा डाकुआ को सिपाही का अधिकार है। मानकी मुंडा लोगों को मालगुजारी अदय करने, परती जमीनों की बंदोबस्ती करने, सड़क किनारे सर्वसाधारण स्थानों तथा ग्रामीण वनों की देख भाल करने का कार्यभार दिया गया है। इनके अलावे स्कूल भवन, ग्रामीण रास्ता, नाहर आदि को प्रजाओं द्वारा थोडा बहुत श्रम दान के माध्यम से मरम्मत कराने का भी अधिकार है। इस प्रकार इनको पुलिस, रेवेन्यु, तथा न्याय तीनों अधिकार दिए गए हैं। मानकी मुंडा चुनाव पद्धति से नहीं बल्कि सामाजिक रीति रिवाज को जानने वालों के बीच से चयन द्वारा होता है. इसीलिए विलकिंसन रुल 20 के अनुसार अदालत मानकी मुंडा लोगों को ही सरकारी पंच के रूप में दीवानी मामलों के पंच विचार के वास्ते चुनती है।
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