हंडिया आदिवासियों में सिन्हवोंगा, गोरम गैन्शिरी, देशौली, पौण्डी, जयेरा, गोवाँ वोंगा, एवं हाम हो दूम हो, को अर्पण किया जाता है. यही आदिवासी हो लोगों के भगवान हैं। सिन्हवोंगा ने जीवन की उत्पत्ति के लिए पाँच बुद्दिजीवियों गोरम गैन्शिरी, देशौली, पौण्डी, जयेरा, और गोवाँ वोंगा को चिंतन के लिए ब्रह्माण्ड में भेजा। इन्होने ७ रेजा और कुली को इस पृथ्वी पर जीवन की उत्पति के लिए काम करने का आदेश दिया। यही लोग रुई, सुमी, मुन्गुडू, बुदू, गुर, सुकरा, और सुनी थे। इनमें से सुनी ने आदमी की उत्पति में सबसे ज्यादा ध्यान दिया। वह एक महिला शक्ति थी। इन सात लोगों में सुमी और सुनी महिला शक्तियां थी। बाकि पुरुष शक्तियां थी। यही आज रवि, सोम, मंगल, बुध, बृहस्पत, शुक्र, और शनि कहे जा रहे हैं। सर्वप्रथम लुकु बुदा और लुकुमी बुदी की उत्पति "उपन जपन" विधि सी हुई। श्रृष्टि में श्रीजन को आगे बढ़ने के लिए हंडिया को सिंग्वोंगा ने लुकु बुदा और लुकुमी बुदी के पास पहुँचाया. हंडिया को अर्पण के बाद स्वयें प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता था। साथ ही कड़ी मेहनत करने में भगवान का प्रसाद को ही शक्ति वर्धक के रूप में हमारे पूर्वज इस्तमाल करते थे।
पहले श्रम दान कर काम करने का प्रचलन था। जैसे घर का पुवाल या खपरा लोग सामूहिक सहयोग से बनाते थे और थकने पर उतर कर गोल से बैठ कर हंडिया सेवन करते थे। इस तरह एक जगह बैठने से वे एक दूसरे की जरूरतों को समझते थे की किसे ज्यादा मिर्च पसंद है तो किसे मुलगा आ। इस तरह हंडिया हमारी शक्ति एवं भक्ति का श्रोत था। इसमें पहले १०७ तरह के जड़ी बूटियों का इस्तमाल होता था इसीलिए इसका सेवन करने से शक्ति और भक्ति के अलावे कई तरह के रोग आदि भी ठीक हो जाते थे। क्योंकि जड़ी बूटियों में कई तरह की ताकत होती है और वह हमारे शरीर में हंडिया के मार्फ़त आ जाती है। चूँकि हंडिया में ४ से ८ प्रतिशत तक अल्कोहल मात्रा होती है इसीलिए इसके सेवन से नशा का अहसास होता है। और शायद इसी गुण ने हंडिया को गलत उपयोग के लिए लोगों द्वारा प्रेरित किया गया। ऋग्वेद में सोमरस का व्याख्या है। ऋग्वेद कहता है की हाथ की दस अँगुलियों से अनाज के पके दानों को जड़ी बूटियों के साथ मर्दन किया जाता है। मर्दन में अंगुलियाँ ऊपर की ओर बार बार उठती है और उसे मिटटी के बर्तन में रखा जाता है। ग्रह आदि हटाने के लिए क्षार(हंगर) का प्रयोग होता है। ३ दिन बाद सफ़ेद गोड़ों में सवार होकर देवता आते हैं। और सोमरस का सेवन करते हैं। ये तो ब्राह्मणों ने इस तरह व्याख्या किया है लेकिन क्या कोई भी ब्रह्मण सोमरस उपरोक्त विधि से बना सकता है? बिलकुल नहीं। तब तो सोचने वाली बात है की ऋग्वेद आखिर किसका है।
उपरोक्त विधि से तैयार पदार्थ ही आज हम पूजा अर्पण के लिए जरुरी चीज इली (विशेष राशी) कहते हैं। अर्पण के बाद प्रसाद के रूप में हम सभी को हंडिया एवं इली का सेवन जरुर करना चाहिए।
आधुनिक युग के आगमन पर तथाकथित स्वार्थी लोगों ने हंडिया को अपनी गलत बात को मनवाने, या लोगों को ठगने के लिए इस्तमाल किया। यहीं से पवित्र पूज्य चीज हंडिया को अदिंग से निकल कर हाट बाजारों में जगह मिला। इसका गलत इस्तमाल में हमारे नेता यथा बागुन सुम्ब्रुई आदि ने तो कोल्हान में चुनाव के दौरान हंडिया बनाने के लिए चावल का वितरण कर समाज को घोर अंधकार में धकेलने का काम किया। किन्तु समाज ने कभी इसके बुरे और अच्छे पहलुओं पर चिंतन नही किया और अपनी खास पहचान को आज हंसी का पात्र बना दिया। यही समय है की हम युवा हो समाज की इन कुरीतियों पर कोई ठोस पहल करें और समाज को अंधकार में जाने से रोकें। ताकि हमारी पहचान और अस्तित्व बनी रहे। किसी चिड़िया घर के पशु बनने से हमारा प्रयास ही बचा सकता है।
पहले श्रम दान कर काम करने का प्रचलन था। जैसे घर का पुवाल या खपरा लोग सामूहिक सहयोग से बनाते थे और थकने पर उतर कर गोल से बैठ कर हंडिया सेवन करते थे। इस तरह एक जगह बैठने से वे एक दूसरे की जरूरतों को समझते थे की किसे ज्यादा मिर्च पसंद है तो किसे मुलगा आ। इस तरह हंडिया हमारी शक्ति एवं भक्ति का श्रोत था। इसमें पहले १०७ तरह के जड़ी बूटियों का इस्तमाल होता था इसीलिए इसका सेवन करने से शक्ति और भक्ति के अलावे कई तरह के रोग आदि भी ठीक हो जाते थे। क्योंकि जड़ी बूटियों में कई तरह की ताकत होती है और वह हमारे शरीर में हंडिया के मार्फ़त आ जाती है। चूँकि हंडिया में ४ से ८ प्रतिशत तक अल्कोहल मात्रा होती है इसीलिए इसके सेवन से नशा का अहसास होता है। और शायद इसी गुण ने हंडिया को गलत उपयोग के लिए लोगों द्वारा प्रेरित किया गया। ऋग्वेद में सोमरस का व्याख्या है। ऋग्वेद कहता है की हाथ की दस अँगुलियों से अनाज के पके दानों को जड़ी बूटियों के साथ मर्दन किया जाता है। मर्दन में अंगुलियाँ ऊपर की ओर बार बार उठती है और उसे मिटटी के बर्तन में रखा जाता है। ग्रह आदि हटाने के लिए क्षार(हंगर) का प्रयोग होता है। ३ दिन बाद सफ़ेद गोड़ों में सवार होकर देवता आते हैं। और सोमरस का सेवन करते हैं। ये तो ब्राह्मणों ने इस तरह व्याख्या किया है लेकिन क्या कोई भी ब्रह्मण सोमरस उपरोक्त विधि से बना सकता है? बिलकुल नहीं। तब तो सोचने वाली बात है की ऋग्वेद आखिर किसका है।
उपरोक्त विधि से तैयार पदार्थ ही आज हम पूजा अर्पण के लिए जरुरी चीज इली (विशेष राशी) कहते हैं। अर्पण के बाद प्रसाद के रूप में हम सभी को हंडिया एवं इली का सेवन जरुर करना चाहिए।
आधुनिक युग के आगमन पर तथाकथित स्वार्थी लोगों ने हंडिया को अपनी गलत बात को मनवाने, या लोगों को ठगने के लिए इस्तमाल किया। यहीं से पवित्र पूज्य चीज हंडिया को अदिंग से निकल कर हाट बाजारों में जगह मिला। इसका गलत इस्तमाल में हमारे नेता यथा बागुन सुम्ब्रुई आदि ने तो कोल्हान में चुनाव के दौरान हंडिया बनाने के लिए चावल का वितरण कर समाज को घोर अंधकार में धकेलने का काम किया। किन्तु समाज ने कभी इसके बुरे और अच्छे पहलुओं पर चिंतन नही किया और अपनी खास पहचान को आज हंसी का पात्र बना दिया। यही समय है की हम युवा हो समाज की इन कुरीतियों पर कोई ठोस पहल करें और समाज को अंधकार में जाने से रोकें। ताकि हमारी पहचान और अस्तित्व बनी रहे। किसी चिड़िया घर के पशु बनने से हमारा प्रयास ही बचा सकता है।
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