अंतराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में रीगल मैदान जमशेदपुर में मुकेश बिरुआ

पृथ्वी पर सबसे पहले हम आदिवासी ही आये। पहले इस जमीन पर जंगल ही जंगल था। हम जंगल के फल फूल, कंद मूल, खाकर जिन्दा रहते थे। जरुरत पड़ने पर शिकार कर अपना पेट पलते थे। उस समय भूक और सुरक्षा की खातिर हम संगठित होकर रहना सीखे। कालांतर में जनसँख्या बदने पर हमलोग खेती बारी के जमीन में प्रवेश किये। इसी समय म:नम, चालू:नम वोंगा बुरु की खोज हुई। बलि देकर उन्हें खुश रखने लगे और दांपत्य एवं सामाजिक जीवन ख़ुशी पूर्वक ३२ अन्य आदिवासी समुदायों के साथ गुजरने लगा। यूरेशिया से जब आर्य(दिकु) लोग आए तो हमें अनार्य कहा गया। कभी साहूकारों ने तो कभी राजा-महाराजाओं ने हमारे जल, जंगल और जमीन को हमसे लूटने का प्रयास किया। किन्तु उस समय के हमारे पूर्वजों ने यह सोचकर की हमारे लिए तो जल, जंगल जमीन ही हमारी सम्पति है, अस्तित्व है, पहचान है, उन साहूकारों, राजा-महाराजाओं से लड़ा और हमारे लिए जल, जंगल और जमीन को बचा कर रखा। यहाँ तक की अंग्रेजों को भी हमारे जमीन पर राज नहीं करने दिया। आज उन्ही पूर्वजों के बलिदान के स्वरुप हम अपने जल, जंगल और जमीन पर चास आबाद कर पा रहे हैं, रह पा रहे हैं। यदि वे ऐसा नहीं सोचते तो तो शायद आज हमारी जल, जंगल और जमीन के मालिक कोई साहूकार होता, कोई राजा-महाराजा होता, या अंग्रेज होता। तब सोचिये हमारी स्थिति क्या होती? शुक्र है हम ऐसे वीर पुरुषों की संतान हैं। अब हमारी यह जिम्मेदारी बनती है की इस सम्पति को अपने अगली पीढ़ी के लिए बचा के रखें। और यह जिम्मेदारी है अपने संविधानिक प्रावधानों को लागू करवा कर। अब तक कोल्हान सरीके अनुसूचित क्षेत्रों के लिए संविधान के रूप में बंगाल अधिनियम १३ सन १८३३, अनुसूचित जिला अधिनियम १८७४, भारत अधिनियम १९१९, भारत अधिनियम १९३५ और भारत का संविधान १९४९ मिला, जिसमें स्पष्ट रूप से अनुसूचित क्षेत्रों को सामान्य क्षेत्रों के कानून व्यवस्था से मुक्त रखा गया है। नियम के रूप में विलकिंसन रुल, भारत आजाद अधिनियम १९४७, कोल्हान सिविल जस्टिस (रेगुलेटिंग एंड वेलीदेटिंग) एक्ट १९७८, पेसा एक्ट १९९६ आदि बने। किन्तु आज तक इन संविधानिक प्रावधानों और नियम विनियमों पर अमल नहीं हुआ। जिस कारण आदिवासी शोषण के शिकार हुए, और आर्थिक रूप से विपन्न हुए।
आदिवासियों को संविधानिक सुरक्षा दी गई है। स्वतंत्र प्राप्ति के पश्चात् राष्ट्रपति महोदय ने पांचवी और ६वि अनुसूची आदेश १९५० जारी किया। उत्तरी पूर्वी क्षेत्र के आदिवासियों को ६वि अनुसूची में रखा गया है। उनकी ग्राम कौंसिल व्यवस्था परंपरा से चली आ रही है। ग्राम कौंसिल व्यवस्था का पूरा शासन गाँव और जिला स्तर तक है, तथा यह उत्तरी पूर्वी आदिवासियों को स्वायत जिलों और स्वायत क्षेत्रों के माध्यम से स्वशासन की शक्ति प्रदान करती है। उत्तरी पूर्वी राज्यों को छोड़ कर शेष भारत में रहने वाले नौ राज्यों के आदिवासी क्षेत्रों को ५वि अनुसूची में रखा गया है। जिसके तहत अनुसूचित क्षेत्र के लोगों का प्रशासन एवं नियंत्रण, इनका कल्याण एवं उन्नति(प्रगति) तथा इन क्षेत्रों में शांति एवं सुशासन की व्यवस्था कायम रखने की शक्ति राज्यपाल एवं जनजाति सलाहकार परिषद् में निहित है। इन अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और कानून के हिसाब से संसद और विधानसभा के ऊपर देश के राष्ट्रपति/राज्यपाल को विधायिका यानि कानून बनाने की शक्ति दी गयी है। अत: जब भी हम संविधान, लोकतंत्र और स्वराज को समझने की कोशिश करते हैं, उस समय संविधान के इन विशेष क्षेत्रों और प्रावधानों को समझना भी बहुत जरुरी है। ५वि अनुसूची क्षेत्रों में देश का सामान्य कानून तब तक लागु नहीं हो सकता है, जब तक उसे राज्यपाल तथा जनजाति सलाहकार परिषद् छानबीन एवं परामर्श कर और राष्ट्रपति से अनुमति लेकर, स्वएं राज्यपाल तत्संबंधी लोक अधिसूचना जारी नहीं करते हैं।
अर्थात जिस कानून से आदिवासी के अधिकार एवं इस क्षेत्र की शांति एवं सुशासन का हनन होता है, वह ५वि अनुसूची क्षेत्र में लागु नहीं होगा। इस प्रकार के संविधानिक सुरक्षा का प्रावधान होते हुए भी ५वि अनुसूची क्षेत्र में आम कानून से प्रशासन लागु होने के कारण आदिवासियों का अस्तित्व और अस्मिता खतरे में है। पांचवी अनुसूची कहता है की संविधान में कोई बात के होते हुए भी इस क्षेत्र के आदिवासियों के नियंत्रण एवं प्रशासन, शांति एवं सुशासन के लिए अपवादों एवं उपन्तारानों के अधीन रहते हुए कार्यपालिका, विधायिका, एवं न्यायपालिका शक्ति का विस्तार किया जाता है। यानि यहाँ शांति एवं सुशासन देना है। यह आदिवासियों का अधिकार है। इसके लिए नियंत्रण एवं प्रशासन की सामान्य भारत से अलग व्यवस्था दी जाएगी।
५वि अनुसूची क्षेत्र सिर्फ आदिवासी एवं उसके सहयोगी समाजों के लिए अधिसूचित है। अत: इस क्षेत्र में सिर्फ और सिर्फ आदिवासी ही रह सकता है, व्यापर कर सकता है, वोट दे सकता है, चुनाव लड़ सकता है, नौकरी कर सकता है। गैर आदिवासियों को यह सब अधिकार ५वि अनुसूची में नहीं दिया गया है। इस प्रकार हमारे इलाके में सभी नौकरियों पर सौ फीसदी आदिवासियों का अधिकार बनता है। और हाँ यदि हम बहरी लोगों को कुछ आरक्षण देना चाहें तो दिया जा सकता है। यह व्यवस्था हमारे संविधान की मूल भावना है। जिसे आजादी के ६४ साल बाद भी किसी भी राज्य सरकारों ने लागु करने की हिम्मत नहीं की, दिकुओं के चलते। हम आदिवासियों का पूरा अधिकार ५वि अनुसूची में निहित है और सुरक्षित है।
उदहारण स्वरुप सी.एन.टी.एक्ट १९०८ की धारा ४६ हमें उपायुक्त से अनुमति के बाद अपनी जमीन बेचने का अधिकार देता है, जिसके तहत आज कोल्हान की जमीन की खरीद विक्री हो रही है, और बहती गंगा में गैर आदिवासी भी हमारी जमीन अवैध तरीके से ले रहे हैं, कब्जे कर रहे हैं। किन्तु यदि हम ५वि अनुसूची के अनुच्छेद २४४(१) के परा ५(२) देखें तो उसमें स्पष्ट किया हुआ है की आदिवासियों की जमीन किसी भी सूरत में गैर आदिवासियों को हस्तांतरण नहीं किया जा सकता, चाहे वह लीज के रूप में हो या खरीद विक्री के रूप में। अब सोचने वाली बात है की हमें सी.एन.टी.एक्ट के बदलाव पर हो हल्ला ज्यादा सुनाई देता है, किन्तु संविधान से अकाट्य कवच ५वि अनुसूची पर हम सब मौन क्यों हैं? इसे सिर्फ लागु करा देने मात्र से हमारे बहुत सरे सपने सच हो सकते हैं, चाहे वह मैनिंग की बात हो, या नौकरी की बात, सभी पर हम आदिवासियों का अधिकार संविधान हमें दे रहा है। किन्तु हम लेने के लिए गलत कार्यालय में आवेदन दे रहे हैं।

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