६- संविधान के आर्टिकल १६३ के अनुसार राज्यपाल को अधिकार है की उनके विशेष अधिकार के आधार पर संविधान में निहित कर्तव्यों को करने का जिसके लिए मंत्री परिषद् द्वारा सुझाव की जरुरत नहीं होती, और विशेष अधिकार के आधार पर किये गए कर्तव्यों के मामले में विवाद होने पर राज्यपाल का निर्णय ही अंतिम होता है, और यह न्यायलय के परे है। इस आर्टिकल के साथ ५वि अनुसूची का सम्बन्ध है, जहाँ पर राज्यपाल तथा राष्ट्रपति के कर्तव्यों का वर्णन आदिवासियों के प्रति दिया हुआ है।
डभर कमीशन के अनुसार केंद्रीय सरकार द्वारा राज्यपालों की रिपोर्ट में किन-किन बातों का समावेश होना चाहिए, इसके बारे कोई निर्देश नहीं दिया गया है। इससे राज्य सरकारें उक्त रिपोर्ट को विभागीय रिपोर्ट की तरह ही भेजती रही है, जिससे ५वि अनुसूची के अनुच्छेद के आधार पर जो रिपोर्ट का महत्व है, पूरा नहीं हुआ। कोल्हान में मानकी मुंडा व्यवस्था है। यदि संविधान सम्मत करवाई होती तो राज्य सरकार तथा राज्यपाल द्वारा उक्त रिपोर्ट में इस प्रशासन का वर्णन होता। लेकिन राज्यपाल ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई जिस कारण आज आदिवासी हासिये पर चले गए हैं। अब प्रशन उठता है, की केंद्रीय सरकार की कार्यपालिका द्वारा क्यों नहीं इस प्रकार की दो रंगी प्रशासन(पंचायत एवं मानकी मुंडा व्यवस्था) द्वारा आदिवासियों को कुचले जाने से बचने का नेर्देशन नहीं दिए? अगर निर्देशन राज्य सरकार को दिए गए तो उसका पालन अभी तक क्यों नहीं हुआ? राज्य सरकार तथा केंद्रीय सरकार द्वारा ऐसा आचरण बरतने से क्या राज्यपाल तथा राष्ट्रपति पर आंच नहीं आ रहा है।
आजादी के बाद राज्यपाल के विशेष अधिकारों का प्रयोग नहीं होने से तथा ५वि अनुसूची के अनुसार बिहार वन निगम कानून का अपवाद या संशोधन नहीं होने के बाद सीधे कोल्हान पोदाहत में लागू हो जाने से आदिवासियों के आर्थिक तथा धर्म पर सीधा प्रहार हुआ। इस वन निति को बल प्रयोग द्वारा लागू होने से आदिवासियों की भावनाओं को उग्र रूप धारण करने का मौका मिला। जिस कारण कानून का उल्लंघन करने के अपराध में कई आदिवासियों को पकड़ा गया तथा जेलों में बांध कर दिया गया, तथा कितनों की जान चली गई। जंगलों का विनाश आदिवासियों के जीविका तथा धर्म पर आघात है और यह किसी भी हालत में बर्दाश्त की चीज नहीं है।
आदिवासियों के लिए जमीन जीवन की सबसे बड़ी सम्पति है। उनके लिए जमीन आर्थिक सुरक्षा देने के साथ साथ अपने पूर्वजों के साथ अटूट सम्बन्ध से भी जुड़ा हुआ है। आदिवसियों के लिए जमीन उनके आत्मा का अंग है, आर्थिक विरासत है।
५वे अनुसूची के अनुसार राज्य सरकार की कार्यपालिका के अधिकारों का विस्तार वहां के अनुसूचित क्षेत्रों में भी किया गया है। संविधान लागू होने के ६१ वर्षों के बाद भी राज्य सरकार की कार्यपालिका अनुसूचित क्षेत्र के बारे में सही समस्याओं को जानने और समझने के लिए सहानुभूति पूर्वक दृष्टिकोण नहीं अपना सकी। अनुसूचित क्षेत्र के लिए राज्य में राष्ट्रपति के एजेंट राज्यपाल होते हैं, और जिलों में राज्यपाल के एजेंट उपायुक्त हैं। इसीलिए अनुसूचित क्षेत्रों में डी.एम्.नहीं होकर डी.सी.कहा गया है।
डभर कमीशन के अनुसार केंद्रीय सरकार द्वारा राज्यपालों की रिपोर्ट में किन-किन बातों का समावेश होना चाहिए, इसके बारे कोई निर्देश नहीं दिया गया है। इससे राज्य सरकारें उक्त रिपोर्ट को विभागीय रिपोर्ट की तरह ही भेजती रही है, जिससे ५वि अनुसूची के अनुच्छेद के आधार पर जो रिपोर्ट का महत्व है, पूरा नहीं हुआ। कोल्हान में मानकी मुंडा व्यवस्था है। यदि संविधान सम्मत करवाई होती तो राज्य सरकार तथा राज्यपाल द्वारा उक्त रिपोर्ट में इस प्रशासन का वर्णन होता। लेकिन राज्यपाल ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई जिस कारण आज आदिवासी हासिये पर चले गए हैं। अब प्रशन उठता है, की केंद्रीय सरकार की कार्यपालिका द्वारा क्यों नहीं इस प्रकार की दो रंगी प्रशासन(पंचायत एवं मानकी मुंडा व्यवस्था) द्वारा आदिवासियों को कुचले जाने से बचने का नेर्देशन नहीं दिए? अगर निर्देशन राज्य सरकार को दिए गए तो उसका पालन अभी तक क्यों नहीं हुआ? राज्य सरकार तथा केंद्रीय सरकार द्वारा ऐसा आचरण बरतने से क्या राज्यपाल तथा राष्ट्रपति पर आंच नहीं आ रहा है।
आजादी के बाद राज्यपाल के विशेष अधिकारों का प्रयोग नहीं होने से तथा ५वि अनुसूची के अनुसार बिहार वन निगम कानून का अपवाद या संशोधन नहीं होने के बाद सीधे कोल्हान पोदाहत में लागू हो जाने से आदिवासियों के आर्थिक तथा धर्म पर सीधा प्रहार हुआ। इस वन निति को बल प्रयोग द्वारा लागू होने से आदिवासियों की भावनाओं को उग्र रूप धारण करने का मौका मिला। जिस कारण कानून का उल्लंघन करने के अपराध में कई आदिवासियों को पकड़ा गया तथा जेलों में बांध कर दिया गया, तथा कितनों की जान चली गई। जंगलों का विनाश आदिवासियों के जीविका तथा धर्म पर आघात है और यह किसी भी हालत में बर्दाश्त की चीज नहीं है।
आदिवासियों के लिए जमीन जीवन की सबसे बड़ी सम्पति है। उनके लिए जमीन आर्थिक सुरक्षा देने के साथ साथ अपने पूर्वजों के साथ अटूट सम्बन्ध से भी जुड़ा हुआ है। आदिवसियों के लिए जमीन उनके आत्मा का अंग है, आर्थिक विरासत है।
५वे अनुसूची के अनुसार राज्य सरकार की कार्यपालिका के अधिकारों का विस्तार वहां के अनुसूचित क्षेत्रों में भी किया गया है। संविधान लागू होने के ६१ वर्षों के बाद भी राज्य सरकार की कार्यपालिका अनुसूचित क्षेत्र के बारे में सही समस्याओं को जानने और समझने के लिए सहानुभूति पूर्वक दृष्टिकोण नहीं अपना सकी। अनुसूचित क्षेत्र के लिए राज्य में राष्ट्रपति के एजेंट राज्यपाल होते हैं, और जिलों में राज्यपाल के एजेंट उपायुक्त हैं। इसीलिए अनुसूचित क्षेत्रों में डी.एम्.नहीं होकर डी.सी.कहा गया है।
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