सारंडा में अभियान अनाकोंडा के नाम पर आदिवासियों पर भयानक अत्याचार

समाचार पेपरों में सारंडा में नक्सल के खिलाफ अभियान पर अत्याचार की ख़बरों का संज्ञान लेकर मैं हिंदुस्तान टाईम्स के टीम के साथ ३ अगस्त तो सारंडा का दौरा किया। बीहड़ सारंडा में हमने छोटा नगर, थोल्कोबाद, रोंगों, बईहातु आदि गाँव का हालचाल लिया। वहां लोगों ने बताया और हमने देखा की कोई भी जवान आदमी गाँव में नहीं है। सिर्फ बुड्ढे, बच्चे और महिलाएं हैं। सी.र.प.एफ.के जवानों ने अनाकोंडा अभियान के तहत सभी जवान आदिवासियों को पुचताच्च के बहाने अपने बेस कैंप में लाकर थर्ड डिग्री टॉर्चर किया। जुर्म कुबूलने के लिए लाठी डंडों से असहनीय पीटा गया। की वे नक्सालियों का मददगार हैं। बिना किसी पूर्व सूचना के गाँव के लोगों को उठा उठा कर पीटा जा रहा है। लोगों को शौच के लिए जाते समय भी उठा लिया जा रहा है। सी.र.प.एफ के जवान आदिवासी भाषा जानते नहीं इसीलिए हमारे लोग कुछ भी बोलें लेकिन उन्हें नक्सल का मददगार ही समझा जाता है। वे कहते हैं की " कुण्डी ते पईती लगिद सेनो: ताना" और पुलिस उसे नक्सल समझ कर उठा ले जाती है। और धारा लगा कर जेल में डाल रही है। उनकी बीवी, बच्चे, और पिता जेल में अपने बेटे के लिए चक्कर लगाने पर मजबूर हैं। थोल्कोबाद आदि तो पूरा के पूरा गाँव खाली हो गया। कोई आदमी अपने जनों को देखने भी इन गाँव में नहीं जा पा रहा है। वहां पुलिस का अँधा कानून राज चल रहा है। अगल बगल के गाँव वाले इस घटना को अपने से सम्बंधित घटना नहीं मानते। वे कहते हैं की यह उस गाँव की समस्या है, हमारी नहीं। कहने का मतलब है की वहां पर कोई सामाजिक, या अन्य कोई संघटन नहीं है, पहले कोल्हान रक्षा संघ हुआ करता था पर आज किसी संगठन के नहीं होने से लोग बिलकुल दुनिया से कट गए हैं। लोग खेतों में काम नहीं करेंगे तो कहाँ जायेंगे? बीमारी से इलाज की कोई वेवस्था नहीं है, शुद्ध पानी के नाम पर नदी और नाला का पानी है, स्कूल है पर शिक्षक डरे हुए हैं। क्योंकि कई पारा शिक्षकों में कई युवतियां हैं। और पुलिस ने कई ऐसे युवतियों के साथ बलात्कार किया है जिसकी सुनने वाला कोई नहीं है। सरकार से पूछने पर की नक्सल कौन है, नाक्साल्वाद क्या है? यह नहीं बता रही है और न ही सी.र.प.एफ.के जवानों को यह बताया गया है! जवान को जंग में उतार दिया गया है और कहा गया है की जो आदिवासी जैसा दीखता है उसे गोली मारना है। सरकार कहती है की नक्सल, कानून और व्यवस्था की समस्या है, जबकि यह पूरी तरह से सामाजिक अन्याय और अत्याचार की समस्या है। इसी बीच सरकार के सचिव ने यह भी कहा की हम पूंजीपतियों को खाली जगहों में जहाँ लोग नहीं रहते हैं जमीन आवंटित कर रहे हैं। बात स्पष्ट है की यह सब करवाई उद्योगों को जमीन देने के लिए की जा रही है और नक्सल नाम के जिन्ह को हथियार के रूप में इस्तमाल किया जा रहा है। सब लोग भाग जायेंगे तो कोई विरोध नहीं होगा और आसानी से जमीन उद्योगों को दिया जा सकेगा । उनकी नजर में "मारा आदिवासी ही भला आदिवासी है"। और वहां पर बने रहेंगे तो विरोध करेंगे। यही कारण है की अनाकोंडा अभियान को चलाया जा रहा है। यह अभियान दिसंबर या जनुवरी में चलाया जाना था पर चूँकि इस समय भयंकर वरिश के चलते कोई बाहरी यथा सामाजिक संगठन वाले, प्रेस वाले आदि क्षेत्र का दौरा नहीं कर पाएंगे और पुलिस का अँधा कानून आसानी से चलाया जाता रहेगा। क्या पुलिस का यह अभियान मानवाधिकारों, आदिवासी विशेष अधिकारों यथा पांचवी अनुसूची आदि का उल्लंघन नहीं है? यदि है को इसका क्या समाधान होगा। हमें जल्दी से इसपर सोचना होगा नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हम आदिवासी अपने जल, जंगल और जमीन से बेदखल कर दिए जायेंगे।

Comments

HO HON said…
This is another example of attitude and approach of our people . why can not the nearest villagers are helping them .it may happen with them also.we need to understand the insticnt .
Mukesh Birua said…
actually prblm is not law and order situation, but as I understand it is the problm of social, and cultural bifurcation.