मानकी मुंडा का पद सामाजिक है, व्यक्तिगत नहीं है.

हो समाज के पौराणिक कहानियों के अनुसार हमारे पूर्वजों ने जंगल को साफ कर खेती लायक जमीन बनाया। जिस व्यक्ति ने इस प्रक्रिया का श्री गणेश किया उसे आज हम गोरम गैशिरी या गोरम वोंगा के रूप में पूजते हैं। जंगल साफ करने के क्रम में "म: नम चालू: नम" वोंगा बुरु मिले जिन्हें उन्होंने बलि देकर खुश रखा। वही हमारे देवताओं "देषाउली, पाउणि, जयरा, गोवां वोंगा आदि से वार्ता करते थे। वही कालांतर में दियुरी कहलाया। गाँव के लोग उनकी बात को सम्मान से मानते थे। दियुरी "वोंगा अखाड़ा" बनाकर लोगों को धार्मिक, अध्यात्मिक, एवं सामाजिक शिक्षा देते थे। अखाड़ा से शिक्षा लेने के बाद सभी देवां के रूप में कार्य कर सकते थे। ध्यान करने पर बुरु वोंगा आदि अखाड़ा से ज्ञान प्राप्त किये लोगों को जंगल बुलाते थे। जहाँ उन्हें जड़ी बूटियों की जानकारी मिलती थी। जड़ी बूटियों की जानकारी के साथ वापस गाँव आने पर उन्हें केवां कहा गया। जो व्यक्ति थोडा ज्यादा बोलता था, उसे डाकुआ बनाया गया, जो लोगों को डकरा कर बुलाते थे। गाँव में कुछ भी समस्या होने पर लोग दियुरी के पास ही सलाह मशविरा के लिए आते थे। चूँकि दियुरी "कटब तुरुब" कर पूजा अर्चना करते थे, कभी-कभी तो शाम तक ऐसे ही रहना पड़ता था। चूँकि उस समय शुदता का ख्याल काफी रखा जाता था। गाँव में जनसँख्या बढ़ने पर दियुरी ने गाँव की छोटी-मोटी समस्याओं के लिए गाँव के ही एक समझदार व्यक्ति को चयन करने की सलाह दिए जो अखाड़ा से ज्ञान प्राप्त किया हुआ हो और गाँव में जिसे लोग मानते हों। ताकि दियुरी के पूजा अर्चना में कोई दिक्कत न हों। यही व्यक्ति बाद में मुंडा कहलाया। बाहरी समस्याओं के प्रति इलाके के लोगों को जागरूक एवं एकजुट करने वाले व्यक्तियों को मानकी कहा गया। इस प्रकार दियुरी, मुंडा, मानकी एवं डाकुआ के नेतृत्व में हो' समाज विश्व के बाहरी समाजों के लिए अभेद किला बना रहा।
साहूकार, महाराजाओं और अंग्रेजों ने कई हमले कोल्हान के हो लोगों पर किये किन्तु हमेशा उन लोगों को कोल्हान में मौत के घाट उतर दिया जाता रहा। (इतिहास उन्ही शोषकों एवं शासकों ने लिखा इसीलिए उनकी हार का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है) १८३१-३२ का कोल विद्रोह को थोडा सा जगह दिया गया लेकिन उन्हीं के नजरिये से। हमारी जानकारी में कोल विद्रोह इस देश का सबसे महान आंदोलनों में से एक था। खैर अंग्रेजों ने बंगाल रेगुलेशन १३ सन १८३३, विलकिंसन रुल, हुकुक्नमा आदि बनाकर हो' लोगों को शांत करने का प्रयास किये। हमारा मानकी मुंडा स्वशासन व्यवस्था पहले से चला आ रहा था, अंग्रेजों ने उसे उसी रूप में स्वीकार किया। विलकिंसन रुल में कहीं पर भी मानकी मुंडा शब्द का इस्तमाल नहीं हुआ है, कहीं पर भी तीन मानकी का अदालत की व्याख्या नहीं है। व्याख्या है की "सर्वाधिक जानकर व्यक्तियों" का पञ्च जो तीन या पाँच हो सकते हैं, फैसला लेने के लिए सक्षम हैं। इसी को मानकी मुंडा का पञ्च समझा एवं माना गया, जबकि समाज में 'मोए हो' यानि पञ्चगन यानि हातु दुनुब का निर्णय सर्वमान्य है और आज भी है। किन्तु हम ये सब नहीं जानते। जो होना चाहिए वह नहीं जानते और जो नहीं होना चाहिए उसका ज्ञान दिकुओं ने अच्छी तरह हमें दे दिया है और हम मान भी रहे हैं। मुंडा और मानकी के हुकुकनमा में पद के बारे में लिखा है की 'मुंडा या मानकी का पद मारुसी है।' यह लाटिन उर्दू में है। इसका अर्थ यह हुआ की यह पद वंशानुगत है। यानि इसे इस तरह समझा जा सकता है - पहले एक गाँव में एक ही किली के लोग रहते थे। उस किली को वंश माना गया अर्थात उस किली के अन्दर यह पद रहेगा, जब तक उस किली के किसी मानकी या मुंडा को पद से किसी कारण से बर्खास्त नहीं कर दिया जाता। मुंडा का बेटा ही मुंडा बनेगा ऐसा मतलब नहीं है। लेकिन आज यही हो रहा है, क्योंकि हमलोग इस व्यवस्था को समझने की कोशिश ही नहीं किये, बल्कि वही दिकुओं की शिक्षा को सही मानकर मानसिकता भी आज हमारी उन्ही की हो गई है। खैर यह एक तथ्य मात्र है, इसका कैसे इस्तमाल करना है यह समाज को तय करना है।

(धर्म गुरु कृष्णा बोदरा से वार्ता के आधार पर)

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