गरीबी रेखा में आने के लिए आदिवासी क्षेत्र में जिस तरह मारा-मारी हो रही है, उसके पीछे यहाँ के मानव विज्ञानं एवं इतिहास हो समझना होगा। आदिवासी पृथ्वी को प्रथम आबाद करने वाली जाती है। आदिवासी समुदाय ३२ अन्य सहयोगी समुदायों के साथ पारस्परिक सहयोग के आधार पर अपना जीवन व्यतीत करते रहे थे। खेती बारी के जमीन में प्रवेश के पूर्व जंगल के कंद-मूल, फल-फूल, एवं शिकार के सहारे अपनी जिंदगी जीते थे। खेती के जमीन में प्रवेश के बाद सहयोगी समुदाय यथा गौ, तांती, डोम, गांसी आदि ने आदिवासी समुदाय के कार्यों में हाथ बंटाया और आदिवासियों का जीवन कुशल पूर्वक चलने लगा। इस तरह आदिवासियों का जीवन बिना कोई कड़ी मेहनत के चलता रहा। यही मूलत: आदिवासियों के व्यवहार में आलसीपन का भी कारण प्रतीत होता है। जल, जंगल एवं जमीन के मालिक आदिवासी अपने इसी व्यवहार को बनाय रखे और आधुनिक युग में प्रवेश भी कर गए। अंग्रेजों के भारत में राज के समय पहली बार राजनितिक शासन देखा गया और आज भी यह राजनितिक शासन ने आदिवासियों को मुफ्त में अनाज देने के कारण जो पहले भी सहयोगी समाजों के सहयोग के कारण आलसी प्रवृति में थे, पुन: मुफ्त में अनाज पाने के चक्र में जमीन होने के बावजूद भी आज गरीबी रेखा के नीचे अपने को देखते हुए बी.पी.एल.कार्ड धारी बनने के लिए होड़ लग गई है। यह आलस की हद कह सकते हैं। गोप, तांती, डोम, गांसी आदि तो पहले सहयोग करते थे। आज आदिवासी समुदाय इन्ही के भरोसे काम नहीं कर सिर्फ मैनेजमेंट कर अपना घर सकुशल चला लेते थे। आज यही सहयोगी समुदाय समय के साथ आगे बढ़ गया, और वे कुछ न कुछ काम कर पाने में सफल हुए, नतीजा अब वे पुरखों से चली आ रही परंपरा के विपरीत पढ़ लिख गए और खेती बड़ी छोड़ नौकरी आदि करने लगे। ऐसे हालत में आदिवासियों के जमीन में काम करने वाले मजदूर नहीं मिल रहे हैं और पुरखों से काम नहीं करने के कारण आदिवासी समुदाय भी आलसी हो चूका है और आज बी.पी.एल.कार्ड की योग्यता पाने में लड़ रहा है।
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