जवाहरलाल नेहरु ने ५० के दशक में ही आदिवासियों के लिए दूरगामी रणनीति सोच ली थी। उसे पंचशील का सिद्दांत कहा गया। वे इस प्रकार हैं- १-आदिवासियों को अपनी प्रतिभा के अनुसार अपना विकास करने दिया जाय। २- जमीन और जंगल पर आदिवासियों का अधिकार को मान्यता दी जाय। ३- आदिवासियों के ही प्रशासक दल तैयार कर उन्ही के द्वारा उनका विकास किया जाय और बाहरी लोगों को प्रशासन में कम से कम शामिल किया जाय। ४- आदिवासियों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्थाओं को बाधा डाले बिना उनका विकास किया जाय। ५- आदिवासियों के विकास का नाप पैसे के खर्च पर न हो मगर उनके बेहतर जीवन पर हो।
आज दु:ख की बात है की भारत के स्वतंत्र इतिहास में इस सिद्दांत का ज्यादातर उल्लंघन ही हुआ है। जब से झारखण्ड एक अलग राज्य बना, राज्य के पूरे नौकरशाह गैर आदिवासी-बाहरी लोगों से भरा गया और ये बाहरी लोग आदिवासियों के प्रति किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं रखते हैं। झारखण्ड के विकास की बात करने पर यह स्पष्ट होता है की वह पूंजीवाद तकनिकी पर जोर दिया गया है। आदिवासियों की कृषि एवं सिंचाई विकास पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया गया है। फलस्वरूप ग्रामीण आदिवासी क्षेत्र में गरीबी और गहरी होती जा रही है।
आज दु:ख की बात है की भारत के स्वतंत्र इतिहास में इस सिद्दांत का ज्यादातर उल्लंघन ही हुआ है। जब से झारखण्ड एक अलग राज्य बना, राज्य के पूरे नौकरशाह गैर आदिवासी-बाहरी लोगों से भरा गया और ये बाहरी लोग आदिवासियों के प्रति किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं रखते हैं। झारखण्ड के विकास की बात करने पर यह स्पष्ट होता है की वह पूंजीवाद तकनिकी पर जोर दिया गया है। आदिवासियों की कृषि एवं सिंचाई विकास पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया गया है। फलस्वरूप ग्रामीण आदिवासी क्षेत्र में गरीबी और गहरी होती जा रही है।
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