सेवा में,
श्री जयराम रमेश जी
मंत्री ग्रामीण विकास मंत्रालय
भारत सरकार, नई दिल्ली - ११०००१
श्री जयराम रमेश जी
मंत्री ग्रामीण विकास मंत्रालय
भारत सरकार, नई दिल्ली - ११०००१
विषय :- झारखण्ड के सारंडा में विकास का खाका तैयार करने के नाम पर केंद्रीय प्रतिनिधियों को स्थानीय सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के अगुओं आदि से जिला प्रशासन पश्चिमी सिंगभूम द्वारा भेंट नहीं कराने से व्यापक आक्रोश के सम्बन्ध में।
सन्दर्भ: सारंडा में विकास के नाम पर ८०० करोड़ की बंदरबांट की योजना।
आदरणीय महोदय,
उपरोक्त के सम्बन्ध में ध्यान आकृष्ट करते हुए कहना है की विश्व प्रसिद्द सारंडा में आदिवासी हो' समुदाय के लोग रहते हैं। ये प्रकृति के उपासक हैं और पशु-पक्षी, जल, जंगल और जमीन की भाषा को प्राकृतिक विज्ञानं के तहत अच्छी तरह समझते हैं। यहाँ की भाषा, संस्कृति, धर्म-दस्तूर काफी समृद्द है और जब से हमारा वास्ता बाहरी समाजों के साथ पड़ा है, तब से हमारे सामाजिक अस्तित्व को अनेक प्रकार की चुनौतियों और हस्तक्षेपों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण आज हम आर्थिक रूप से विपन्न हुए और सांस्कृतिक दृष्टि से भी हमारा शोषण हुआ है और हो रहा है। आदिकाल से यहाँ का आदिवासी समाज अपने पारंपरिक,लोकतान्त्रिक एवं सामाजिक व्यवस्था के तहत गाँव में पारंपरिक ग्राम सभा (हो' में हातु दुनुब) कर अपने सारे फैसले यथा सामाजिक, राजनितिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं नैतिक निर्णय लेता आया है और प्रकृति के आगोश में समाज निरंतर अग्रसर है।
बाहरी समाजों के आगमन के बाद पहले अग्रेजों ने और अब भारत आजादी के बाद भारत के सरकारों ने हमें तबाह कर दिया। संस्कृति से, धर्म से, समाज से न जाने हमें क्या-क्या सिखाया एवं बताया जाता है, जिसका हमारे सामाजिक जीवन से कोई सरोकार नहीं होता है।
सुनने को मिलता है की भारत सरकार ने मनरेगा, आंगनबाड़ी ,मध्यान्न भोजन आदि योजनायें चला रही है, किन्तु यहाँ ऐसी कोई चीज देखने को नहीं मिलती। ये अलग बात है जिला प्रशासन ने आपके टीम को एकाध जगह मुरुम पड़े जगहों को दिखाया होगा।
सारंडा का विकास मोडल बनाने के लिए आपने केन्द्रीय टीम भेजा। इस टीम को जिला प्रशासन पश्चिमी सिंगभूम ने अगवा कर आपने मुताबिक रिपोर्ट बनाने के लिए न तो स्थानीय सामाजिक प्रतिनिधियों से और न तो मीडिया से मिलने दिया गया। आश्चर्य है की इस पूरे दौरा का पैसा जनता दे रही है और जनता से ही उन्हें नहीं मिलने दिया गया। सारंडा के हो' समुदाय के ग्रामीण हिंदी नहीं जानते, तो अंग्रीजी के पदाधिकारी भेजकर आप क्या बतलाना चाहते हैं? फिर वे क्या चाहते हैं, किस तरह का विकास चाहते हैं, आप कैसे कहेंगे?
सारंडा में सभी केन्द्रीय योंज्नाओं का सत्यानाश हुआ है, क्योंकि सरकारी पदाधिकारी केन्द्रीय योजनाओं यथा मनरेगा, आंगन बाड़ी, मध्यान्न भोजन आदि की राशी का बंदरबांट कर पूरा का पूरा खा जाते हैं, कुछ भी जमीन में नहीं उतरने के कारण सारंडा के ग्रामीण को इस बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है।
अब जब सारंडा के नाम पर जो ८०० करोड़ के पैकेज की बात चल रही है, क्या वह सही में यहाँ के ग्रामीणों के अनुकूल विकास कर पायेगा? जिस तरह केन्द्रीय टीम, जिला प्रशासन एवं पुलिस के साय में चाईबासा और सारंडा घूमी उससे यही अंदाजा लगाया जा रहा है की उपरोक्त पैकेज को भी यहाँ का प्रशासन आपस में बंदरबांट करेगी और पूर्व प्रधान मंत्री स्वा०राजीव गाँधी के कथन को सार्थक करेगी की केंद्र से भेजा १रु का १५ पैसा ही लोगों तक पहुचेगा, शायद उतना भी नहीं पहुंचे।
सबसे पहले यहाँ के आदिवासी कैसा विकास चाहते हैं? यह समझना ज्यादा जरुरी था, जो पश्चिमी सिंगभूम जिला प्रशासन के द्वारा केन्द्रीय टीम को अगवा करने से नहीं हो पाया। पंडित जवाहरलाल नेहरु ने आपने पंचशील के सिद्दांत में स्पष्ट किया था की आदिवासियों को अपनी शर्त पर विकास करने का मौका दिया जाय। क्या आपके द्वारा भेजे जा रहे सरकारी प्रयोजनों से इस बात की गारंटी मिल सकती है?
भारत के संविधान के अनुच्छेद २४४(१) के तहत सारंडा अनुसूचित क्षेत्र यानि पांचवी अनुसूची क्षेत्र में आता है। पांचवी अनुसूची कहता है की संविधान में किसी बात के होते हुए भी अनुसूचित क्षेत्र के नियंत्रण एवं प्रशासन, कल्याण एवं उन्नति तथा शांति एवं सुशासन बनाय रखने के तहत आदिवासियों को सुरक्षा प्रदान करना है, जिसके लिए अपवादों एवं उपन्तारणों के अधीन कार्यपालिका एवं विधायिका शक्ति का विस्तार किया जाना है। यहाँ आप कोई ऐसी व्यवस्था नहीं दे सकते जिससे यहाँ की शांति एवं सुशासन भंग हो, आदिवासियों के नियंत्रण एवं प्रशासन जो पारंपरिक तरीके से आदिकाल से करते आय हैं को नुकसान हो। तब आपके द्वारा किया जा रहा काम किसके कल्याण एवं उन्नति के लिए है?
केंद्र सरकार का यही रवैया रहता है तो आपको स्थानीय समाज का विरोध सहना पड़ेगा। जबरन गलत रिपोर्ट तैयार कर पिछले ६४ सालों में जिसे विकास कहा गया और हमारा हमेशा विस्थापन हुआ है, उसे हम कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। देश के विकाश के नाम पर हम आदिवासियों का विनाश होता आया है। इसी कटु अनुभवों के आधार पर हमारी आपसे विनती है की यथाशीघ्र स्थानीय समाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, जन प्रतिनिधियों, पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के अगुओं से वार्ता कर सही हल निकला जाय।
धन्यवाद !
भवदीय
मुकेश बिरुवा
उपाध्यक्ष
अखिल भारतीय आदिवासी महासभा
सह पूर्व महासचिव
आदिवासी हो समाज महासभा
सन्दर्भ: सारंडा में विकास के नाम पर ८०० करोड़ की बंदरबांट की योजना।
आदरणीय महोदय,
उपरोक्त के सम्बन्ध में ध्यान आकृष्ट करते हुए कहना है की विश्व प्रसिद्द सारंडा में आदिवासी हो' समुदाय के लोग रहते हैं। ये प्रकृति के उपासक हैं और पशु-पक्षी, जल, जंगल और जमीन की भाषा को प्राकृतिक विज्ञानं के तहत अच्छी तरह समझते हैं। यहाँ की भाषा, संस्कृति, धर्म-दस्तूर काफी समृद्द है और जब से हमारा वास्ता बाहरी समाजों के साथ पड़ा है, तब से हमारे सामाजिक अस्तित्व को अनेक प्रकार की चुनौतियों और हस्तक्षेपों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण आज हम आर्थिक रूप से विपन्न हुए और सांस्कृतिक दृष्टि से भी हमारा शोषण हुआ है और हो रहा है। आदिकाल से यहाँ का आदिवासी समाज अपने पारंपरिक,लोकतान्त्रिक एवं सामाजिक व्यवस्था के तहत गाँव में पारंपरिक ग्राम सभा (हो' में हातु दुनुब) कर अपने सारे फैसले यथा सामाजिक, राजनितिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं नैतिक निर्णय लेता आया है और प्रकृति के आगोश में समाज निरंतर अग्रसर है।
बाहरी समाजों के आगमन के बाद पहले अग्रेजों ने और अब भारत आजादी के बाद भारत के सरकारों ने हमें तबाह कर दिया। संस्कृति से, धर्म से, समाज से न जाने हमें क्या-क्या सिखाया एवं बताया जाता है, जिसका हमारे सामाजिक जीवन से कोई सरोकार नहीं होता है।
सुनने को मिलता है की भारत सरकार ने मनरेगा, आंगनबाड़ी ,मध्यान्न भोजन आदि योजनायें चला रही है, किन्तु यहाँ ऐसी कोई चीज देखने को नहीं मिलती। ये अलग बात है जिला प्रशासन ने आपके टीम को एकाध जगह मुरुम पड़े जगहों को दिखाया होगा।
सारंडा का विकास मोडल बनाने के लिए आपने केन्द्रीय टीम भेजा। इस टीम को जिला प्रशासन पश्चिमी सिंगभूम ने अगवा कर आपने मुताबिक रिपोर्ट बनाने के लिए न तो स्थानीय सामाजिक प्रतिनिधियों से और न तो मीडिया से मिलने दिया गया। आश्चर्य है की इस पूरे दौरा का पैसा जनता दे रही है और जनता से ही उन्हें नहीं मिलने दिया गया। सारंडा के हो' समुदाय के ग्रामीण हिंदी नहीं जानते, तो अंग्रीजी के पदाधिकारी भेजकर आप क्या बतलाना चाहते हैं? फिर वे क्या चाहते हैं, किस तरह का विकास चाहते हैं, आप कैसे कहेंगे?
सारंडा में सभी केन्द्रीय योंज्नाओं का सत्यानाश हुआ है, क्योंकि सरकारी पदाधिकारी केन्द्रीय योजनाओं यथा मनरेगा, आंगन बाड़ी, मध्यान्न भोजन आदि की राशी का बंदरबांट कर पूरा का पूरा खा जाते हैं, कुछ भी जमीन में नहीं उतरने के कारण सारंडा के ग्रामीण को इस बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है।
अब जब सारंडा के नाम पर जो ८०० करोड़ के पैकेज की बात चल रही है, क्या वह सही में यहाँ के ग्रामीणों के अनुकूल विकास कर पायेगा? जिस तरह केन्द्रीय टीम, जिला प्रशासन एवं पुलिस के साय में चाईबासा और सारंडा घूमी उससे यही अंदाजा लगाया जा रहा है की उपरोक्त पैकेज को भी यहाँ का प्रशासन आपस में बंदरबांट करेगी और पूर्व प्रधान मंत्री स्वा०राजीव गाँधी के कथन को सार्थक करेगी की केंद्र से भेजा १रु का १५ पैसा ही लोगों तक पहुचेगा, शायद उतना भी नहीं पहुंचे।
सबसे पहले यहाँ के आदिवासी कैसा विकास चाहते हैं? यह समझना ज्यादा जरुरी था, जो पश्चिमी सिंगभूम जिला प्रशासन के द्वारा केन्द्रीय टीम को अगवा करने से नहीं हो पाया। पंडित जवाहरलाल नेहरु ने आपने पंचशील के सिद्दांत में स्पष्ट किया था की आदिवासियों को अपनी शर्त पर विकास करने का मौका दिया जाय। क्या आपके द्वारा भेजे जा रहे सरकारी प्रयोजनों से इस बात की गारंटी मिल सकती है?
भारत के संविधान के अनुच्छेद २४४(१) के तहत सारंडा अनुसूचित क्षेत्र यानि पांचवी अनुसूची क्षेत्र में आता है। पांचवी अनुसूची कहता है की संविधान में किसी बात के होते हुए भी अनुसूचित क्षेत्र के नियंत्रण एवं प्रशासन, कल्याण एवं उन्नति तथा शांति एवं सुशासन बनाय रखने के तहत आदिवासियों को सुरक्षा प्रदान करना है, जिसके लिए अपवादों एवं उपन्तारणों के अधीन कार्यपालिका एवं विधायिका शक्ति का विस्तार किया जाना है। यहाँ आप कोई ऐसी व्यवस्था नहीं दे सकते जिससे यहाँ की शांति एवं सुशासन भंग हो, आदिवासियों के नियंत्रण एवं प्रशासन जो पारंपरिक तरीके से आदिकाल से करते आय हैं को नुकसान हो। तब आपके द्वारा किया जा रहा काम किसके कल्याण एवं उन्नति के लिए है?
केंद्र सरकार का यही रवैया रहता है तो आपको स्थानीय समाज का विरोध सहना पड़ेगा। जबरन गलत रिपोर्ट तैयार कर पिछले ६४ सालों में जिसे विकास कहा गया और हमारा हमेशा विस्थापन हुआ है, उसे हम कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। देश के विकाश के नाम पर हम आदिवासियों का विनाश होता आया है। इसी कटु अनुभवों के आधार पर हमारी आपसे विनती है की यथाशीघ्र स्थानीय समाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, जन प्रतिनिधियों, पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के अगुओं से वार्ता कर सही हल निकला जाय।
धन्यवाद !
भवदीय
मुकेश बिरुवा
उपाध्यक्ष
अखिल भारतीय आदिवासी महासभा
सह पूर्व महासचिव
आदिवासी हो समाज महासभा
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