धार्मिक एवं अध्यात्मिक आस्था का केंद्र लुगु बुरु घंटा बड़ी में संथाल समुदाय का सबसे बड़ा धार्मिक जमावाडा होता है। इस विशेष आयोजन में देश विदेश से हजारों की संख्या में संथाल समुदाय के लोग आते हैं। और लुगु बुरु में माथा टेकते हैं। कहा जाता है की इसी जगह देवताओं एवं मानुषों के बीच लम्बी बातचीत हुई थी वगैरह वगैरह... । जंगल से नीचे लालपानी में सरना धर्म पर विशाल सम्मलेन आयोजित था। हमलोग अखिल भारतीय आदिवासी महासभा से प्रतिनिधित्व कर रहे थे। परन्तु सरना धर्म को अंतराष्ट्रीय मंच पर पहुचाने के लिए मुझे मुकेश बिरुआ को विशेष रूप से बुलाया गया था, विशेष अथिति के रूप में। मुख्य मंत्री अर्जुन मुंडा मुख्य अथिति के रूप में आयोजन समिति को ५ करोड़ के सहायता की घोषणा किये।
मैंने अपनी बात सम्मलेन में रखते हुए कही की विश्व शांति के लिए आहूत महासम्मेलन जो इटली के असीसी में आयोजित हुआ में विश्व समाज को दो भागों में बांटा गया था। एक आस्तिक तो दूसरा नास्तिक (believer and non believer)। मैंने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज की और कहा की विश्वास हमारा भी है पर मूर्तियों पर नहीं, प्रकृति पर है। प्रकृति पर हमारा विश्वास भौतिक किस्म का नहीं है वरन पराभौतिक अध्यात्मिक किस्म का है और यही सरना धर्म की बुनियाद है। प्रकृति को जीने लायक बचाय रखने के लिए आदिवासियों का इस पृथ्वी पर बने रहना जरुरी है और सरना धर्म का अस्तित्व भी इसी कड़ी का हिस्सा है। यह अलग बात है की हम आदिवासी धार्मिक रूप से अभी जाकर एकजुट हो रहे हैं, पर जो अनुष्ठान, जो यन्त्र, मंत्र, और तंत्र प्रकृति की उपासना में हम करते हैं वह इस पृथ्वी को बचाने के लिए होता है और इसी में हम जीवों का कल्याण है। जबकि अन्य धर्मों में व्यक्ति को बचाने के लिए अनुष्ठान होते हैं। प्रकृति की उपासना ही सरना धर्म है। और अब मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं की सरना धर्म अब एक अंतराष्ट्रीय धर्म है। पूरी दुनिया को हम सोचते हैं की देश या राज्य की सरकारें चलाती है पर ऐसा नहीं है वरन देश और दुनिया को धर्म चलाती है और इसका ज्ञान हमें जिस दिन हो गया तो समझिये की दुनिया हम आदिवासियों के नियंत्रण में होगी। जय सरना।
मैंने अपनी बात सम्मलेन में रखते हुए कही की विश्व शांति के लिए आहूत महासम्मेलन जो इटली के असीसी में आयोजित हुआ में विश्व समाज को दो भागों में बांटा गया था। एक आस्तिक तो दूसरा नास्तिक (believer and non believer)। मैंने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज की और कहा की विश्वास हमारा भी है पर मूर्तियों पर नहीं, प्रकृति पर है। प्रकृति पर हमारा विश्वास भौतिक किस्म का नहीं है वरन पराभौतिक अध्यात्मिक किस्म का है और यही सरना धर्म की बुनियाद है। प्रकृति को जीने लायक बचाय रखने के लिए आदिवासियों का इस पृथ्वी पर बने रहना जरुरी है और सरना धर्म का अस्तित्व भी इसी कड़ी का हिस्सा है। यह अलग बात है की हम आदिवासी धार्मिक रूप से अभी जाकर एकजुट हो रहे हैं, पर जो अनुष्ठान, जो यन्त्र, मंत्र, और तंत्र प्रकृति की उपासना में हम करते हैं वह इस पृथ्वी को बचाने के लिए होता है और इसी में हम जीवों का कल्याण है। जबकि अन्य धर्मों में व्यक्ति को बचाने के लिए अनुष्ठान होते हैं। प्रकृति की उपासना ही सरना धर्म है। और अब मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं की सरना धर्म अब एक अंतराष्ट्रीय धर्म है। पूरी दुनिया को हम सोचते हैं की देश या राज्य की सरकारें चलाती है पर ऐसा नहीं है वरन देश और दुनिया को धर्म चलाती है और इसका ज्ञान हमें जिस दिन हो गया तो समझिये की दुनिया हम आदिवासियों के नियंत्रण में होगी। जय सरना।
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