सरना एक पौराणिक कथा..हिंदी में

आदिवासी समुदाय साल (सरजोम) के पेड़ को क्यों मानते हैं? क्यों इसका नामकरण सरजोम हुआ? सरना देशाउली या जाहेरतान क्या है? सरना धर्म की मान्यता, शुरुआत कैसे हुई इस पर प्रकाश डालता एक लेख :-
आदि काल में जब हमारे पूर्वज दुपुब दिशुम(स्वशासन) के धर्म दस्तूर के नियमों को बांध रहे थे, तो उन लोगों के विचारों में काफी भिन्नता थी। कहा जाता है की विचारों में भिन्नता के कारण वे साथ रहकर भी दूर थे । एक बार उन्होंने इमली के पेड़ के नीचे बैठकर निर्णय लेना चाहा लेकिन जिस तरह इमली के छोटे छोटे पत्ते टूटते हुए बिखर जाते हैं उसी तरह विचार छिन्न भिन्न हो रहे थे। फिर महुआ के पेड़ के नीचे लोग बैठे पर महुआ के फूल के गिरने की भांति विचार बिखर जा रहे थे। तब उन्हें लगा की शायद यह सब पेड़ के कारण हो रहा है इसीलिए अलग अलग पेड़ों के नीचे वे बैठ कर सहमति बनाने का प्रयास किये। एक दिन वे लोग साल के पेड़ के नीचे चले गए। वहां बात तुरंत बन गई। सभी लोगों के विचार अचानक मिलने से ऐसा लगा मानो तपती गर्मी में किसी छाँव के ठन्डे पानी में घुसने पर एहसास होता है।
पर वोंगा बुरु (पूजा पाट) कैसे एवं किस पत्ते में करना है? आदि बातों में वे अटक गए। और सबकी बोलती एकबार फिर बंद सी हो गई। एक बुजुर्ग ने कहा की ऐसे चुप रहने से तो कुछ नहीं मिलेगा, काम नहीं चलेगा। इसीलिए इसके लिए सिंहवोंगा(आदिवासियों/प्रकृति के सर्वोच्च देवता) से ही पूछा जाय। चूँकि यह शरीर और प्रकृति के सभी जीव जन्तु इन्ही की देन है। उस समय परम्परा में ये थी कि जब भी कोई काम शुरू किया जाता था तो उस दिशा में तीर(हो/मुंडा' में सर) को धनुष(हो/मुंडा में अ:सर) से छोड़ा जाता था. इसी परंपरा के अनुसार एक बुजुर्ग आदमी ने कहा ही हमलोग तीर(सर) मार कर पता लगते हैं. और यह तीर जिस पेड़ में लगेगा उसी के पेड़ के पत्तों से पूजा पाट किया जाय। इस बात पर सभी राजी हो गए।
फिर सिन्ह्वोंगा का नाम लेकर तीर को धनुष से छोड़ा गया। जंगलों से होते हुए तीर बहुत दूर घने पेड़ों के बीच गिरा. सब लोग तीर को खोजने निकले. लेकिन बहुत खोजने पर भी नहीं मिला। तीर के नहीं मिलने पर सभी अपने गाँव घर को वापस आ गए।
काफी दिन गुजरने के पश्चात् गाँव की बालाएं(लड़कियां) जंगल में फल फूल, लकड़ी, पत्ता आदि चुनने के लिए गई थी. इस क्रम में उनमे से एक बाला ने एक तीर को एक पेड़ में धंसा हुआ देख अनायास ही उसके मुंह से निकला “"सर ना! बई नेन दारू दो सरे:ए जोमा कडा”।(हो/मुण्डा में तीर को सर कहते हैं और ‘ना’ आश्चर्य सूचक शब्द है)। यह पेड़ तो तीर को निगल गया है। अन्य बालाएं भी उसे देखने के लिए भाग कर आ गई. इसकी जानकारी देने के लिए बालाएं तुरंत जंगल से वापस आकर अपने-अपने घरों में अपने से बड़ों को ये बातें बताई. इस बात को सुन कर गाँव के लोग उस जगह को गए। पेड़ के बीहड़ घने जंगल में तीर एक पेड़ में धंसा हुआ था। धंसा तीर को देख कर लोग अनायास ही बोल पड़े कि "सरि गे नेन दारू दो सरे:ए जोमा कडा"(सही में इस पेड़ ने तीर को खा लिया)। सरे:ए जोम केड दारू गे "सरजोम" को मेन केडा ( उस पेड़ को तीर निगलने(सर जोम केडा) के कारण सरजोम नाम दिया गया. सभी बात विचार किये तो यह पता चला कि यह वही तीर था जो पूजा सामग्री की खोज के लिए छोड़ा गया था. लोगों को कौन सा पेड़ के पत्तों से पूजा उपासना करेंगे का जवाब मिल गया. इसी संस्कृति को आदिवासी समाज सबसे पवित्र एवं प्राकृतिक उपासना का मूल आधार मानता आया है. तीर को पेड़ में धंसा हुआ देख कर बाला ने जो शब्द का उच्चारण किया था वह “सर ना” था जो उसके बगल वाले ने सुना की इसने अचानक ऐसे कहा. इसी बात से सरना’ शब्द की उत्पति आदिवासी समाज में आई. और आज भी हो’ समाज में बहा पर्व में जंगल में पूजा पाट करने के बाद साल(सर्जोम) के तने को जंगल और गाँव के बीच गाड़ दिया जाता है और तीर से मारा जाता है, जो व्यक्ति सही निशाना लगा लेता है उसे गोद में उठा लिया जाता है, और उसे उस वर्ष का वीर माना जाता है, और इसी के बाद जंगल में शिकार की शुरुआत होती है. इस घटना से पहले सरजोम यानि हिंदी में साल का नामकरण नहीं था, पर इस घटना के बाद इसे सरजोम यानि साल(हिंदी में) कहा गया.

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