देशाउली (हो समाज के देवी देवता)

हो समाज में दूसरे स्थान पर देशाउली की पूजा की जाती है, जिसे ग्राम देवता के रूप में मानते हैं। कहते हैं की इनकी उपासना मात्र से ही ग्रह नक्षत्र (आ दटा , नोजोर,वाण आदि) के अलावे और भी कुशक्तियों से सरलता से बचा जा सकता है। जब यह नर रूपी धनात्मक शक्ति देशाउली, नारी रूपी जयरा ऋणात्मक शक्ति के साथ होती है तब यह सृष्टि का काम करती है, यानि दोनों रूपों के शक्तियों के मिलने मात्र से ही सृष्टिकर्ता का रूप ले लेता है। देशाउली के युवा अवस्था को मादेड के रूप में पूजा अर्चना किया जाता है। यही मादेड आज हिन्दुओं द्वारा शिव लिंग के रूप में हिन्दू धर्म का प्रचार का माध्यम बना दिया गया है। जबकि आदिवासी हो समुदाय का मादेड शिव लिंग नहीं है वह एक प्राकृतिक शक्ति है जो ग्राम देवता के युवा अवस्था में पृथ्वी पर प्रकट हुआ था और आज तक बना हुआ है। देशाउली हमेशा जयरा के साथ होते है, लेकिन बोलचाल में देशाउली ही कहा एवं समझा जाता है। कठिन से कठिन परीक्षा के घडी में देशाउली को याद करने से सारे काम आसानी से हो जाते हैं। देश विदेश हो या कोई अपना व्यक्तिगत काम, या सेना में लड़ाई के लिए जा रहे हों, यदि देशाउली में पानी (यही इसके अर्पण का सामग्री है) डाल कर एवं कामना कर जाते हैं तो सकुशल वापस लौटने ही गारंटी मानी जाती है।

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