जयरा (हो समाज के देवी देवता)

चौथा स्थान में जयरा की उपासना होती है। जयरा ही एकमात्र मादा शक्ति है जो विभिन्न स्थान व परिस्थितियों में कभी लुकुमी, कभी नगे एरा, कभी शुर्शुती(सरस्वती), कभी विषहरी या फिर कभी रंकनी या जुगुनी के रूपों को साधा जाता है। यही जयरा का दैविक रूप या नारी शक्ति की ही अलग-अलग स्थिति है। जयरा शक्ति में ही विभिन्न तत्वों के साथ मिलकर कर्म, रूप व नाम इत्यादि बदल जाती है जैसे मातृभूमि की माती को हम कभी माँ की संज्ञा देते हैं, कभी जन्मभूमि की या फिर इस धरती के अलग-अलग संरक्षनाओं वाले हिस्से को जंगल, पहाड़, पत्थर, टीला, पर्वत, हिमालय, नदी, नाला, खाई, दलदल, झील, गाँव, शहर इत्यादी रूपों में देखते हैं। इसी प्रकार से जयरा दादे(power) रूपी विभिन्न शक्तियों के साथ प्रतिक्रिया कर बनने वाले नए रूपों को अनेक प्रकार से पूजा जाता है। आदिवासियों में आकृति वाले देवी देवताओं की पूजा नहीं की जाती है। क्योंकि कोई भी आकृति वाले देवी देवता मादा या नारी के गर्भ से ही जन्म लेता है, उसके लिए भी उसे एक पुरुष शक्ति की जरुरत होती है। जब ईश्वर इस पृथ्वी पर प्रथम सृष्टि की रचना की थी, उस समय प्रथम पुरुष एवं इस्त्री उपन जपन विधि से हुए थे। हो समुदाय में प्रथम दम्पति लुकु हदम एवं लुकुमी बुडी के रूप में मानता है। किसी भी पर्व त्योहारों एवं पूजा अनुष्ठानों में हमलोग द्वारा शुद्दिकरण के लिए जयरा का जल रूप यानि नगे एरा बिंदी एरा के गोत द:अ का उपयोग किया जाता है। इसी जयरा के नाम पर ही हमारा जैराकांड का झारखण्ड हुआ। जैराकांड अर्थात वह निश्चित भू-भाग जहाँ पर जयरा का वास होता है। यह प्राकृतिक वादियों में स्थित नदी-नाला, पहाड़ों-जंगलों, झरनों के बीच सबसे ज्यादा जयरा स्थल भी वास्तव में हमारा जैराकांड में ही पाया जाता है। जहाँ आदिवासियों की बहुलता है, जो अब अन्य धर्मोलाम्बियों के आने से धार्मिक विस्थापन द्वारा विखर रहा है। आज भी हो समुदाय के प्रत्येक गाँव में देशाउली (नर शक्ति) के बायीं ओर जयरा स्थल होता है.

Comments

John said…
Thank you mukesh for this precious information. I, being a HO, didn't know this till now but now i think i ought to have knowledge about my tradition and culture. I appreciate your work from the bottom of my heart :-) Thanks a lot.