हो समाज में धर्म एवं आस्था

आदिवासी हो समाज गोरम गैशिरी, देशाउली, पौणि, जयरा, गोवाँ वोंगा के अलावे हाम हो-दूम हो, नागे एरा-बिंदी एरा, गुरु बोंगा, एवं मरंग वोंगा की पूजा उपासना करता है। इन्ही की सेवा उपासना से एक प्राकृत धर्म का तात्पर्य पूर्ण होता है। वैसे तो धर्म की उत्पति वास्तव में डर से हुई है, अब देखना है की डर किनको होता है। इस बात का ध्यान रहे ही जब भी कोई प्रार्थना करता है तो वह बहुत ही स्वार्थी भी होता है जैसे की वह अपनी मुक्ति या तो प्राप्ति दो चीजों के लिए ज्यादातर दुआएं मांगता मिलेगा। सिन्ह्वोंगा ने सम्पूर्ण पृथ्वी में मानव जाती को ही सबसे श्रेष्ठ बनाया इसीलिए वह अपने आप में अदभुत कृति है। मानव यदि संस्कारी हो तो ठीक पर यदि नहीं तो पशु सामान तो नहीं उससे भी बदतर हो जाता है। धर्म क्या है और कैसे है? हो समाज में दोहम को ही धर्म कहते हैं। यानि किसी अदृश्य शक्ति से तन, मन एवं धन से दोहम करते हैं, अर्थात शुद्द तन, मन एवं धन से मन्नत या उम्मीद करते हैं की वह काम हो। और हो समाज में समाज की भलाई के लिए ही दोहम होता है, जबकि अन्य समाजों में व्यक्ति विशेष के लिए। हो में सोय्तायेम, सेवायेम, तथा सुन दुरंगेम.(हिंदी में सत्यम शिवम् सुन्दरम)। यानि शुद्द तन, मन, धन से, सेवा सुशुर्षा तथा ख़ुशी पूर्वक उस दोहम को स्वीकारना। अर्थात प्राकृतिक शक्तियों के अनुरूप व साथ चलने के सुसंस्कार को ही आज धर्म कहते हैं। धार्मिक अनुष्ठान एवं दान जैसे पुण्य कर्म कर पापों के दुष्परिणाम से नहीं बचा जा सकता है। अगर किसी तथाकथित जगतगुरु, स्वामी या उपदेशकों द्वारा पापों के मोक्ष या मुक्ति की बात कही जा रही है तो समझना चाहिए उसमे कितनी सच्चाई है? अगर ऐसे ही कोई रास्ता है तो हर कोई पापी पल भर में शुद्द हो जायेगा यानि कम्पूटर की तरह वाइरस से एंटी-वाइरस, साफ किया जा सकेगा। आदिवासी समुदाय में स्वर्ग और नरक की प्राप्ति का कोई आस्था नहीं होता है, क्योंकि हम अच्छी तरह जानते हैं की मानव शारीर आत्मा और परमात्मा के मेल से बना है, एक तो माटी का शारीर और एक आत्मा(रोवा), जो अजर-अमर होता है। हो समुदाय में मनुष्य का शरीर दक्षिनार्द सिर करके दफना दिया जाता है, अदृश्य शक्ति रूपी आत्मा निराकार हवा में घुल जाती है। यदि स्थापित किया जाय तो घर के पवित्र स्थल अदिंग में या फिर हटा दिया जाय तो सिंह सूबा-दारू सूबा यानि पेड़ में स्थापित किया जाता है। स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त मनुष्य को अदिंग में और अस्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त आत्मा को बाहर में स्थापित किया जाता है। आदिवासियों में अवतरित देवी-देवताओं को नहीं पूजा जाता है, बल्कि उनकी आत्माओं को हाम हो-दूम हो के स्थान पर पूजा जाता है।

बोयो गागराई

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