हो समाज की भाषा, लिपि, अस्तित्व एवं पहचान

एक आदिवासी की पहचान के लिए गोरम गैशिरी, देशाउली, पौणि, जयरा, गोवाँ वोंगा, अदिंग, ससन, अखाडा, गुरु डीप, और भाषा, लिपि एवं आदि धर्म सरना का पालन करना पांचवी अनुसूची के अंतर्गत अति आवश्यक है। हो लिपि में ३२ अक्षर हैं, जो हो समुदाय के साथ-साथ अन्य भाषा के शब्दों को लिपिबद करने में सक्षम हैं। वारंगक्षिति में ९ स्वर्ण वर्ण २ यौगिक वर्ण एवं २१ व्यंजन वर्ण हैं, वर्तमान हो लोगों में प्रचलित वारंगक्षिति की खोज देवांतुरी ऋषि ने अध्यात्म के सहयोग से किया था, कहा जाता है की देवांतुरी ऋषि(धन्वन्तरी) ने ही आयुर्वेद चिकित्सा(जड़ीबूटी) का खोज किया था। युग युगांतर में धीरे-धीरे समय के साथ-साथ यह ब्राह्मी लिपि विलुप्त सा हो गया था, कुछ नमूना वैदिक सम्पति नामक किताब में देखा जा सकता है। हो समाज के बीच खूंटपानी प्रखंड के पसेया गाँव में पिता लेबेया हो एवं माता जानो कुई से जन्मे ओत गुरु कोल लाको बोदरा ने इसी लिपि को दोबारा योग और अध्यात्म के द्वारा खोज कर समाज के लिए समर्पित कर दिया। ओत गुरु कोल लाको बोदरा जी ने बहुत ही कम समय में बहुत सी विषयों पर शोध और खोज कर एक नयी मिशाल कायम की जो तारीफ के काबिल है। भाषा के नाम प्रचलित कुछ बोल निम्न लिखित हैं : "सड़ी गे सिंगवोंगा चिति दो मरंग वोंगा" इसी को "शब्दं ब्रह्मा, अक्षरं परम ब्रह्मा" हिन्दू लोग बोलते हैं। इसे अंग्रेजी में Sound is the Greatest Power in this World कहा गया।

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