समय के साथ-साथ अनेक महापुरुषों का उदय हुआ एवं विभिन्न ग्रंथों का रचना हुआ और उन विद्वानों ने अपने-अपने आदर्शों एवं नीति सिद्दांतों पर चलने वालों को एक पहचान दिलाने के लिए धर्मों को नाम देने का चलन शुरू किया। जैसे की हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन, बौद्द, लेकिन आदिवासियों को भी इनकी देखा देखी अपना आदि धर्म का नामांकन पुरानी संस्कृति परम्पराओं के अनुसार सारना रखना पड़ा। जिस तरह गैर आदिवासियों में त्रिशूल, कृपाण, टोपी, पगड़ी आदि का उपयोग परंपरा और चलन के रूप में किया जाता है, उसी तरह आदिवासी समाज में प्राचीनकाल से ही जन्म, विवाह और मृत्यु संस्कारों में सर-अ:सर(तीर धनुष)का प्रचलन है और यहीं से शुरू होता है सर से सरना एवं सारना की उत्पति का इतिहास। आदि ग्रंथों में टुवार कसरा कोड़ा, लिटा गोसाँ वोंगा, सिंगरय एवं लेबेया हो(एकलब्य), जैसे महापुरुषों का जीवनी में भी सर-अ:सर(तीर धनुष) का जिक्र मिलता है। आदि काल से ही आदिवासी लोग प्रकृति की पूजा अर्चना योग्य भूमि को सुनिश्चित करने के लिए भी एक निश्चित दिशा में तीर चलाकर उसे ढूंढने का चलन था, फिर उस स्थान में खोजा जाता था। इसी कड़ी में सरना की पौराणिक कथा प्रचलित है जो मैंने १६ नवम्बर २०११ को पोस्ट की है।
सरना का तात्पर्य सर से है और इसी में स के बाद अ कार जुड़ जाने पर यह सार हो जाता है, यानि सारना..(सा..रे..ना..) यानि प्रकृति के अनुकूल बढ़ने वाला क्रिया को सार कहते हैं। सारना का मतलब सार होना(हो में सारो:अ तेया:)। हम आदिवासियों का दोहम से प्रकृति में सार हो जाता है।
सरना का तात्पर्य सर से है और इसी में स के बाद अ कार जुड़ जाने पर यह सार हो जाता है, यानि सारना..(सा..रे..ना..) यानि प्रकृति के अनुकूल बढ़ने वाला क्रिया को सार कहते हैं। सारना का मतलब सार होना(हो में सारो:अ तेया:)। हम आदिवासियों का दोहम से प्रकृति में सार हो जाता है।
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