आदिवासी हो समाज महासभा का महाधिवेशन २०१२(२८-२९ जनवरी)

आमंत्रण पत्र :
इयम अरदास लोते जोवर !
आदिवासी हो' समाज महासभा हो सरना धर्मावलम्बियों के लिए सर्वोच्च एवं मात्री संस्था हैहमारे हो' आदिवासी झारखण्ड, ओडिशा, बंगाल, एवं भारत के अन्य परदेशों में रह रहे हैं। हमारी धर्म, संस्कृति एवं परम्पराएँ, पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तगत होते हुए समाज में कायम है। हमरी धार्मिक आस्था की बातें, रीती-रिवाज, परम्पराएँ, रुधिजन्य विधियाँ(customary law) अलिखित होने के कारण अज्ञात एवं खतरे में है। पुरखों की इन अनुपम धरोहर आदि मात्री भाषा, धर्म संस्कृति, पर्व त्यौहार, शादी व्याह पद्धति, जन्म मरण संस्कार, खूंटकट्टी अधिकार, मुंडा मानकी प्रथा, को बचाने की सख्त आवश्यकता है। आप महानुभाव से अनुरोध एवं आमंत्रण है की इस महाधिवेशन में प्रतिनिधि के रूप में भाग लेकर हो समाज को अपना बहुमूल्य विचार एवं मार्गदर्शन देने की सुकृपा करेंगे।
महाधिवेशन के विचारणीय मुद्दे :
१. आदिवासी हो समाज सरना धर्म में आराध्य देवी-देवतायें(बोंगा बुरुको)
२. आदिवासी होने की पहचान.
३. हो समाज में अंतरजातीय विवाह में महिलाओं का स्थान।
४. विलकिंसन रुल एवं मुंडा मानकी प्रथा, अधिकार एवं कार्य क्षेत्र।
५.हो भाषा एवं वारंग्क्षिती लिपि।
ज्ञातब्य हो की हो समाज महासभा का महाधिवेशन प्रत्येक तीन वर्षों में एक बार होता है और इसमें मुख्यत: तीन काम होते हैं : १- हो समाज के नीति नियम इसी महाधिवेशन में तय होते हैं, २- हो समाज महासभा के नियमावली में कोई भी संशोधन इसी में संभव है और ३- महासभा के लिए अगले तीन वर्षों के लिए अध्यक्ष सहित नई कार्य कारिणी का गठन इसी महाधिवेशन में होते हैं। इसी लिए बुद्दिजीवी समाजसेवियों से उम्मीद है की इस आयोजन का हिस्सा बन कर समाज को एक अच्छा रास्ता दिखाएँ.

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