आदिवासी हो समाज महासभा को बदनाम करने की कोशिश राजनितिक नेताओं द्वारा लगातार जारी है। देवेन्द्र नाथ चम्पिया(पूर्व विधायक), मंगल सिंह बोबोंगा(पूर्व विधायक), बागुन सुम्ब्रुई(पूर्व सांसद), जोन मीरन मुंडा(गैर हो, टे: बदाय कमर) आदि हारे हुए एवं कुंठित नेताओं की जमात हैं। इनकी राजनितिक हैसियत समाप्त हो चुकी है, इसीलिए ये आदिवासी हो समाज महासभा को अपना जागीर समझने की भूल कर बैठे हैं। २९ तारिख २०१२ को महाधिवेशन स्थल में जिस तरह हो समाज ने उन्हें दक्का देकर खेत का रास्ता दिखा कर उनकी औकात बताई थी और सामाजिक अस्तित्व में किसी राजनिति दखल बर्दास्त नहीं किया था। यह समाज की एक बहुत बड़ी जीत थी और रहेगी। ऐसे समाजद्रोही लोगों का हो समाज में स्थान नहीं है। इस पूरे घटनाक्रम के पीछे मिशिनरी संगठन जोहार एवं बिरसा का भी हाथ है। यह संगठन किसी भी रूप में हो समाज को संगठित रखना नहीं चाहते हैं और हो समाज को धार्मिक, सांस्कृतिक, अध्यात्मिक, एवं धर्मांतरण जैसे ज्वलंत मुद्दों से भटकाकर अन्य मुद्दों में ले जाने की कोशिश है। यही जमात १९९९ में चंद्रभूषण देओगम, एवं रमेश जेराई के साथ मिलकर एवं नारद की भूमिका में विरसिंग सिंकू के साथ तदर्थ समिति बनाकर महामंत्री धनमसिः संवैया एवं अध्यक्ष माधो सोय से आदिवासी हो समाज महासभा को छीन कर कब्ज़ा कर लिया था। १९९९ से २००६ तक ७ साल के कार्यावधि में हो समाज महासभा को जोहार एवं बिरसा ने अपने चंगुल में रखा और शोषण किया। २००६ में महासभा इनके चंगुल से आजाद तो हो गया किन्तु सामाजिक गतिविधियों में अपने को हासिये में देखते हुए, अपनी कोई पूछ नहीं होने के कारण इन्होने अपना आपा खो दिया और वही १९९९ का इतिहास दोहराने का प्रयास किया। २००६ से २०१२ के बीच ये तदर्थ समिति का खेल कई बार खेले लेकिन स्वार्थी गठबंधन में चलने के कारण कुछ ही दिन में उपरोक्त समाजद्रोही अपने-अपने स्वार्थ के कारण आपस में लड़ते भी रहे और टूटते रहे। इस बीच इन लोगों ने अपनी सामाजिक हैसियत बागुन सुम्ब्रुई के चमचा के रूप में बिकसित कर ली। देवेन्द्र नाथ चम्पिया से पूछा जाय की आदि संस्कृत्ति एवं विज्ञान संस्थान झींकपानी आज क्यों मरनासन स्थिति में है? कुजू डैम में १२५ गाँव को डूबने के लिए देवेन्द्र नाथ चम्पिया एवं बागुन सुम्ब्रुई ने हस्ताक्षर किये थे। लम्बी राजनितिक जीवन में वे हो समाज के लिए कुछ भी नहीं किये जबकि उनके पास काफी कुछ करने को था। आदिवासी हो समाज महासभा को कब्ज़ा करने के लिए गुंडा प्रवृति के गैर हो(टे:बदाय कमर) जोन मीरन मुंडा को लेने के पीछे क्या सौदा हुआ है? हो समाज को अपना जागीर बनाने का सपना छोड़ उन्हें अपनी बची कुची जिंदगी इज्जत से जीना चाहिय था, परन्तु अति महत्वाकांक्षा ने उन्हें महासभा के असामाजिक तत्त्व के रूप में अपनी पहचान बना ली है। समाज के लोग आज उतने बेवकूफ नहीं हैं की इनकी बातों में आ जाएँ। महासभा अपने अधिवेशन, महाधिवेशन एवं विभिन्न बैठकों के माध्यम से अपनी रणनीति केन्द्रीय अध्यक्ष की शीर्षस्थ आदेश से चलती है। और इस बार पूरा हो समाज संगठित है और अपने समाज को आगे ले जाने के लिए तैयार है। उपरोख्त नेताओं से पूछा जाय की उन्होंने अपने राजनितिक जीवन में हो समाज के लिए क्या किया? एक बड़ा शुन्य के सिवा कुछ नहीं। तो क्या ये अपना राजनीत अखाडा बनाने के लिए हो समाज महासभा को इस्तमाल करना कहते हैं?
एक पम्पलेट से
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