वेद = बे: द:अ बनाइ बुद्दी



वेद = हो में बे: द:अ बनाइ बुद्दी गे वेद ताना, अर्थात जीभ में जल होने पर ही वाणी निकलती है और उस वाणी को ही "सड़ी गे सिंगवोंगा चिति दो मरंग वोंगा" Sound is the Greatest Power in this World" कहा गया। जीभ के खेलने से जो वाणी निकलती है वही अमर वाणी होती थी और वह वेद का रूप कहानियों में, लोक गीतों में पौराणिक कहानियों में बनती चली गयी। इसकी उत्पति लुकु बूढ़ा एवं लुकुमी बुडी के उपन जपन के पश्चात् ही शुरू हो गयी थी। उन्होंने आदि संस्कृति एवं अध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित सामाजिक रीती रिवाज के दैविक सिद्दांत को अपनाया और जीवन जीने के क्रम में जो भी चीजें उन्होंने एवं मानवों ने सीखी वही हमारी संस्कृति बनती चली गयी और वेद बनता गया। उपरोक्त कालचक्र में शोद्कर्ता मोरा देवगम के अनुसार यह सातवाँ कालचक्र है और अंतिम है। महायुग (इषा से ४०००० वर्ष पूर्व) के काल में वेदों को सुना गया।
सामवेद = पृथ्वी के श्रृष्टि के पूर्व (यानि हो में नुब: सोमाय, या नुब: वेद ओते औरी बइयो रेया काजी) की घटनाएँ इस वेद में लिखी गयी है। पृथ्वी बनने के पूर्व क्या-क्या हुआ? कैसे पृथ्वी की, जीवों की उत्पति के लिए अनुकूल वातावरण तैयार हुआ उसकी बातें हैं।
अथर्वेद = पृथ्वी की उत्पति यानि ओते राऊ, या ओते राऊ वेद समय रेया काजी। पृथ्वी की उत्पति की घटनाएँ इस वेद में कही गयी।
यजुर्वेद = कोल होन या आदिवासियों या ऋषि मुनि(आज की भाषा में) एवं सभी जीव जिनका मृत्यु निश्चित है की उत्पति इस दौरान में हुई। इसमें पत्थर या निर्जीव शामिल नहीं थे।
ऋग्वेद = दियुरी, देवां, योग, वोंगा बुरु रेया जगर। ऋषि मुनि...
शिशु वेद = आदिवासी योग, शिशु विकास की सम्पूर्ण विद्या इसमें बताई गई। शिशु वेद में यन्त्र, मंत्र एवं तंत्र के गुप्त ज्ञान को दर्शाया गया है।
नोट : उपरोक्त काल चक्र में इषा पूर्व ४००० वर्ष पहले तक इस धरती पर आदिवासियों का ही अधिपत्य था

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