CNT Act की सच्चाई

CNTAct की धारा ४६ के तहत आदिवासी रैयतों द्वारा अपने अधिकारों के अंतरण पर प्रतिबन्ध है, धारा ४७ के तहत नयायालय आदेश के अधीन रैयती अधिकार के विक्रय पर प्रतिबन्ध है, धारा ४८ के तहत भुइहरी भुघृति के विक्रय पर प्रतिबन्ध है। इसी अधिनियम के धारा ७१(A) के तहत विधि विरुद्ध बेदखल किए गए काश्तकार को कब्जे में प्रतिस्थापित करने की शक्ति उपायुक्तों को प्रदान की गई है। धारा ७१(A) के तहत विधि विरुद्ध आतंरिक भूमि पर अनुसूचित जातियों के सदस्यों को कब्ज़ा प्रत्यापित करने की शक्ति उपायुक्तों को प्रदान की गई है। Schedule Area Regulation Act 1969 के प्रावधानों के अंतर्गत आदिवासियों के विधि विरुद्ध ली गई भूमि की वापसी के लिए किए जाने वाले मुकदमों के लिए विधिक सहायता सरकार द्वारा प्रदान करना है। सभी जिलों में विशेष विनियमन पदाधिकारी के रूप में अनुमंडल पदाधिकारी हैं। विशेष विनियमन पदाधिकारी के समक्ष आदिवासी विधि विरुद्ध आन्तरिक भूमि की वापसी के लिए अपील दायर करता है। CNT Act की धारा ७१(A) के तहत उक्त पदाधिकारियों द्वारा केवल दखल देहानी का ही आदेश पारित करना है। क्योंकि मामला दखल देहानी से सम्बंधित है, टाइटल का नहीं। पर सक्षम पदाधिकारियों द्वारा आदिवासियों के रैयती खतियान का टाइटल ही बदल कर आदिवासी का अपील रद्द कर दिया जाता है या विधायिका शक्ति का इस्तेमाल करते हुए कम्पनसेट कर गैर आदिवासियों को जमीन का हस्तांतरण कर दिया जाता है। ७१(A) के तहत विशेष विनियमन पदाधिकारी, उपायुक्त के शक्ति का प्राधिकृत व्यक्ति है। अत: उनका निर्णय उपायुक्त का निर्णय कहलायेगा। पर इसी आदेश के विरुद्ध उपायुक्त से नीचे के पदाधिकारी सब कलेक्टर के पास प्रतिवादी अपील करता है जो अवैध है। साथ ही प्रतिवादी CNT Act की धारा १३९ का मामला बनाकर अपर उपायुक्त एवं उपायुक्त के समक्ष CNT एक्ट की धारा २१५ में दखल देहानी आदेश के विरुद्ध अपील दायर करते हैं जो असंविधानिक है, चुकी CNT एक्ट की धारा १३९ लगान एवं रैयतों के बीच का टाइटल का मामला है। जिन वादों में वादग्रस्त राशि या दावा की गई सम्पति का मूल्य १ सौ रुपये से अधिक न हो। अत: गैर आदिवासियों की अपील का अधिकार असंविधानिक है। जो संविधान की पांचवी अनुसूची के पैरा ५ उप पैरा २(अ) एवं CNT Act का घोर उल्लंघन है। इतना ही नहीं पांचवी अनुशुची के पैरा ५(२)(बी) में दिया गया है की आदिवासी का जमीन गैर आदिवासियों को हस्तांतरण नहीं हो सकता है। पर मूल रूप में रांची जिला में काम्पन्सेट कर गैर आदिवासियों को जमीन का मालिकाना अधिकार दिया जा रहा है, जो गैर क़ानूनी है। सर्वोच्च नयायालय ने भी समता निर्णय के पैरा १२९, १३०, में राज्य सरकार व केंद्र सरकार को पैरा १४२ एवं १५१ में आदिवासी सलाहकार परिषद् को आदेश देते हुए विधि अनुरूप कार्य करने को कहा है।
यह पूरा मामला दो रैयतों के बीच का है न की रैयत एवं गैर रैयत के बीच का। इसीलिए इस मामला में जब दो रैयतों की बात है तभी उपायुक्तों को विवाद को समाप्त करने के लिए कार्यवाही करने का प्रावधान है, पर जब एक रैयत हो एवं दूसरा गैर आदिवासी तब अवैध रूप से आदिवासी की जमीन हड़पने के लिए गैर आदिवासी को अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून के तहत जेल में डालना चाहिए था पर एक साजिश के तहत अल्पमत में डाले जा रहे आदिवासियों को अंधकार में रख कर कानून की रखवाली करने वाली सरकार ही कानून के उल्लंघन का खुला खेल, खेल रही है। अब इससे कौन बचाए??? खैर जागिये!! कहीं बहुत देर न हो जाय....

Comments