बा पोरोब

देशाउली नरशक्ति का द्योतक है तो जयरा नारी शक्ति का। देशाउली (नर स्वरुप) एवं जयरा(नारी स्वरुप) की पूजा अलग-अलग स्थलों में होती है। आदिवासी हो समाज में बा पोरोब प्रकृति के पुजारिन जयरा रूपी नारी के सृंगार के पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार बादी पोनई में मनाया जाता है। जयरा के सृंगार के लिए सर्जोम, मद्कम, उली, इचा बा, का प्रयोग होता है। इन फूलों का अपना धार्मिक मान्यता है। बा पर्व से पूर्व दियुरी मुर्र(पलास) के पत्तों में हंडिया या कोई भी अन्य चीज ग्रहण नहीं करते हैं, क्योंकि पलास के फूल रंग के प्रतीक होते हैं और जब तक बा पर्व नहीं मनाया जाता तब तक हो समाज के लोग न ही रंग का इस्तमाल करते हैं, और न ही शिकार पर जंगल जाते हैं। इस दौरान दियुरी हल्दी का भी प्रयोग नहीं करते है। साल के पत्तों में जयरा के लिए पूजा अर्चना की जाती है और पूजा इस प्रकार मंत्रोचार कर किया जाता है -आऽऽम तिसिंग अम चिलकम सेवाषादा केना, ऐना गे नामा सकाम, नामा बाते अम ले इमम ताना, चेदम तानासिरा हों, सिरा गां को गौण होन, पेयान्यें होन....दोसी रिया किली जाती को लेका, कुवाम गन्दा, कुवाम मनवा होनको..सनाम नाय को नापय कानो: चाको। तिसिंग अमगे सिंग्वोंगा ता:रे हरियम, गोवारियम, तिसिंग कटब ते तुरुब ते, निरल पर्ची ओड़ा केन, सपा केनते, अंज दियुरी(नाम) नेन हातु(गाँव का नाम) गैन्शिरी रे तिसिंग दोंज जोवारम ताना जनकराम ताना..मेरा कुला मेरा भालू, बिंग मर्मर..... नेना गे तिसिंग दो बुरु लेका चौली पूंजी गड़ा लेका मयोम गिरुम ले हिन्जियम ताना, जोवारम ताना...
पूजा के दिन दियुरी कटब तुरुब के साथ बिना दतुवन किये नहा के आते हैं। नहाने के पश्चात् सुद्दता के लिए अरवा चावल के चूर्ण से बनाय गए लेप से अपने बाएं हाथ के तीन मध्य उँगलियों की मदद से अरवा चावल के लेप को क्रमश: कपाल, बायाँ बाजु, दायाँ बाजु, बायाँ घुटना, दायाँ घुटना, कान एवं छाती में लगते हैं। तत्पश्चात पूजा का कार्यक्रम होता है। बारह जगहों में चावल का पूंजी किया जाता है और उपरोक्त मंत्रोचार दियुरी एवं उनके सहयोगी करते हैं, मंत्रोचार लाल मुर्गे के चावल खाने का चलता रहता है। इसी के साथ नाच गान प्रारंभ हो जाता है। इसी को सोयतायम(शुद्दता), सेवायाम(पूजा पाट), एवं सुन दुरंगेम(नाच गान) कहा जाता है। जयरा स्थल में पूजा के प्रसाद को वहीँ पर खाया जाता है, घर नहीं लाया जाता।
उसके बाद जयरा स्थल एवं गाँव के बीच जड़ा बिंदी, या पपीता या आज कल केला या सर्जोम का टहनी गाड़ दिया जाता है। दियुरी के गाँव लौटने के क्रम में उनके साथ गए हुए लोग लौटते हैं तथा गाँव तरफ से अन्य ग्रामीण भी गाड़े गए टहनी के स्थल पर पहुँचते हैं। वहां तीर धनुष से इस पौधे के टहनी पर निशाना लगाया जाता है। सबसे पहले निशाना लगाने की शुरुआत दियुरी करते हैं और उसके बाद पूरे गाँव वाले अपना भाग्य अजमाते हैं। जो भी व्यक्ति गाड़े गए टहनी पर निशाना लगा देता है वह इस बा पर्व का वीर होता है। यहीं से हो समाज में शिकार पर्व शुरू हो जाता है। निशाने बाज को कंधे पर उठाकर दियुरी के आंगन तक लाया जाता है। समाज के लोग साल का फूल, आम का फूल, महुआ का फूल, एवं इचा का फूल लेकर पूरे कार्यक्रम के दौरान उपस्थित होते हैं। दियुरी के आंगन में वीर पुरुष को नए धोती एवं गंजी पहनाकर पगड़ी बंधी जाती है। तथा दियुरी के साथ लाय गए फूलों को सभी ग्राम वासियों को बांटी जाती है। यही फूल हो समाज के लोग अपने अपने घर लाते हैं और अपने घरों में लगते हैं। साथ ही उन फूलों से घर के पवित्र स्थल आदिंग में जयरा के सृंगार से रूप में अर्पित किया जाता है।
घर के अदिंग में दो साल के पत्तों में हाम हो दूम होको के लिए फूल सजाया जाता है। अपने ख़ुशी में अन्य देवी-देवताओं को भी हो समाज में सृंगार कर खुश करने की प्रथा है। अदिंग में मंत्रोचार करते हैं - आऽम जोवारम तिंग दोहम! बुरु वोंगा, वीर वोंगा, अ:सर वोंगा, शुकन जात्रा तिसिंग दो हातु(गाँव का नाम) रे दियुरी रचय ते तिसिंग दो कटब ते तुरुब ते बा पोरोब लुतुम ते नामा बा, नामा जोते एमा पे छेडा पे ताना। मेरा कुला, मेरा बालू, बिंग मर्मर, होयो हिसिद, रोग-बीमार तोरो मरी, कोदों दानंग ता: दपल ता:। अयर रिया अयर ते उसा रिया उसा ते, एतोंग रिया एतोंग ते, कोंजे रिया कोंजे ते हर एडा गुम एदाय्म। अंज (अपना नाम) तिसिंग दो सेवा केड पेयंज, चेड केड पेयंज..आऽम जोवारम तिंग दोहम!
तत्पश्चात अदिंग में खाना बन जाने के बाद दो साल के पत्ते के दोने में हंडिया एवं एक साल के पत्ते के दोने में पानी इष्ट दिवों को अर्पित किया जाता है। अन्य दो पत्तों में खाना अर्पित किया जाता है। उनको अर्पण करने के पश्चात् बचे खाने को घर के लोग ख़ुशी ख़ुशी खाते हैं, हंडिया का सेवन प्रसाद के रूप में करते हैं और नाच गान के अखाड़े में जम कर नाच कर, गा कर ख़ुशी का इजहार करते हैं। फूलों से सज कर सृंगार पर्व का मजा लेते हैं।

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