सरना आदिवासियों को एक एवं धर्मान्तरित आदिवासियों को दोहरा लाभ क्यों??

भारत का संविधान भाग ३ मूल अधिकार में संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार के तहत अनुच्छेद २९ और ३० में अल्पसंख्यक वर्ग को शिक्षा संस्थाओं की स्थापना का अधिकार है और राज्य की ओर से बिना विभेद के सहायता प्राप्त होती है. भारत का संविधान भाग १६ कुछ वर्गों के सम्बन्ध में विशेष उपबंध के अंतर्गत अनुच्छेद ३३०, ३३२, एवं ३३५ के तहत क्रमश: लोकसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण, राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण का तथा सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावे का प्रावधान है. इसाई हुए अनुसूचित जनजाति को यह सुविधा भी प्राप्त होता है. अल्पसंख्यक वर्ग में इसाई धर्मावलम्बी भी आते हैं, जिन्हें शिक्षा संस्थाएं चलाने और प्रशासन का अधिकार प्राप्त है. यह सुविधा सरना धर्म से इसाई धर्म में परिवर्तित अनुसूचित जनजाति को भी स्वत: अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में प्राप्त हो जाता है. ज्ञातव्य हो की अनुसूचित जाति को भी अनुसूचित जनजाति की तरह धर्म के जातीय आधार पर आरक्षण प्राप्त है. अत: जब कभी वे इसाई धर्म या इस्लाम धर्म को अपनाते हैं तो उनके आरक्षण की सुविधा स्वत: समाप्त हो जाती है. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने २०००(२) सी सी एस सी ६३३, दाण्डिक अपील संख्या २४० वर्ष १९९७, केरल राज्य एवं एक अन्य वनाम चंद्रमोहानन, दिनांक २८ जनवरी २००४ को निर्णय दिया है की "किसी व्यक्ति को संविधान(अनुसूचित जनजाति) आदेश १९५० के परिक्षेत्र के भीतर लाए जाने के पूर्व उसे जनजाति से सम्बंधित होना चाहिय. राष्ट्रपतीय आदेश का लाभ अभिप्राप्त करने के प्रयोजन के लिए एक व्यक्ति को जनजाति का सदस्य होने की शर्त पूर्ण करना होगा और निरंतर जनजाति का सदस्य बने रहना होगा. यदि एक भिन्न धर्म में धर्मांतरण के कारण, काफी समय पूर्व/उसके पूर्वज रुढी, अनुष्ठान और अन्य परम्पराओं का पालन नहीं कर रहे हैं, जिन्हें उस जनजाति के सदस्यों द्वारा अनुसरण किए जाने की अपेक्षा की जाती है और उत्तराधिकारी, विरासत, विवाह इत्यादि की रूढिगत विधियों का भी अनुसरण नहीं कर रहे हैं तो उसे जनजाति का सदस्य स्वीकार नहीं किया जा सकता है." इस तरह जहाँ तक सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सवाल है की जो आदिवासी(अनुसूचित जनजाति) अपनी परम्पराओं और रीती रिवाजों को छोड़ चुके हैं, उन्हें अनुसूचित जनजाति का लाभ नहीं मिलना चाहिए यह स्वत: प्रमाणित होता है की इसाई हुए अनुसूचित जनजाति का धर्म और संस्कृति पृथक है. इस प्रकार इसाई धर्मावलम्बी अल्पसंख्यक वर्ग और अनुसूचित जनजाति के रूप में दोहरा लाभ प्राप्त कर रहे हैं. कहीं इसाई धर्मावलम्बियों के इस दोहरे लाभ की लालच से सरना धर्मावलम्बी इसाई धर्म की ओर प्रवृत तो नहीं हो रहे हैं??

Comments