आज के मानकी मुंडा आयोग्य

कोल विद्रोह के समय के मानकी मुंडा यदि योग्य थे, तो आज के मानकी मुंडा आयोग्य ही कहे जा सकेंगे. क्योंकि पहले के मानकी मुंडाओं ने अपने नेतृत्व में कोल विद्रोह जैसा महान लड़ाई लड़ कर विजय हासिल किया तो आज विभिन्न कानूनों एवं मानकी मुंडाओं के होते हुए भी हम आदिवासियों की जल, जंगल और जमीन गैर आदिवासियों द्वारा लूट ली जा रही है. और मानकी मुंडा अपने अधिकारों के इस्तेमाल की बात तो दूर रही पर पूंजीपतियों की दलाली में भी लिप्त घटनाएँ उजागर हुई है, जिससे इस व्यवस्था पर समाज का विश्वास घटा है. इसका संरक्षण एवं संवर्दन करने की जिम्मेदारी युवाओं को उठानी होगी. ज्ञात हो मानकी मुंडाओं को हुकूकनामा जारी होता है, जिसमे उसके अविनिमय अधिकारों का जिक्र है. आज किसी भी गाँव के मुंडा/मानकी उन अधिकारों के बारे गाँव सभाओं के साथ चर्चा करना नहीं चाहता. हुकुक्नमा में ही स्पष्ट किया हुआ है की यदि व्यक्ति हो' समाज के धर्म दस्तूरों के अलोक में अयोग्य हो तो उसे मानकी/मुंडा नहीं बनाया जा सकता है. किन्तु इस आयोग्य शब्द की व्याख्या बिलकुल नहीं की जाती इसी कारण से मानकी मुंडा व्यवस्था इसतिहास की चीज बनती जा रही है. समय रहते समाज के लोग यदि नहीं चेते तो इसे सिर्फ इतिहास में पढ़ने को मिलेगा. इसमें कोई शक नहीं की आज भी कुछेक मानकी मुंडा काफी अच्छे हैं, जो हुकुकनामा एवं हो समाज के दस्तूरों को अच्छी तरह समझ कर इस पद की शोभा बढ़ा रहे है. परन्तु आयोग्य मानकी/मुंडाओं को जब तक गाँव समाज हटा कर योग्य मानकी मुंडा को बहाल नहीं करती तब तक इस व्यवस्था को सुधार की पटरी पर लाना मुश्किल ही जान पड़ता है. इसीलिए अब युवाओं की बारी है की वे समाज के दस्तूर एवं हुकूकनामा को गाँव-गाँव तक पहुंचाएं और जन जागरूकता फैलाएं. समाज से बड़ा कोई नहीं होता इसीलिए समाज को इसे गंभीरता से लेना होगा. लोग जब चीजों को समझेंगे तो इस व्यवस्था को बचाने के लिए आवश्यक कदम भी उठाया जा सकेगा.
मानकी मुंडा कैसे आयोग्य बनते हैं - जैसे किसी मुंडा के तीन लड़के हैं. उसमे से एक बी.ए. की पढाई कर रहा है, तो दूसरा स्कूल में पढ़ रहा होता है. तीसरा लड़का कोई काम न करके घर में रहता है और हाट बाजार घूमता रहता है, समय मिलने पर घरवालों को कभी कभार खेती कार्यों में हाथ बंटाता है. जब मुंडा अत्यंत बूढ़ा हो जाता है तो गाँव वाले हातु-दुनुब कर निर्णय लेते हैं की तीसरा लड़का किसी काम न नहीं है, इसिलिय इसे ही मुंडा बनाया जाय. और उसे लोग मुंडा बना देते हैं. यह अधिकतर गाँव की हालत है. यानि जो लड़का कोई काम का नहीं है उसे ही उस गाँव का मुंडा/मानकी बनाया जायेगा तो वह कहाँ से इस पद के साथ न्याय कर पायेगा. उस गाँव में कई लोग पढ़ लिख कर बड़े-बड़े आदमी बनते हैं, कोई सेना से रिटायर्ड होकर आता है, तो कोई ऑफिसर से. लेकिन गाँव आने पर एक आयोग्य आदमी के अन्दर घुटते हुए रहने पर मजबूर होते हैं. जब व्यक्ति यदि समाज के धर्म दस्तूरों को ही जनता हो तो भी बड़ी बात थी पर बिलकुल ही आयोग्य होने के कारण वह अपने गाँव समाज का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर पाता और उस गाँव के लोग हसीं के पात्र बनते रहते हैं. मानकी मुंडा का पद वंशानुगत है, इसकी व्याख्या भी गलत की हुई है. मानकी मुंडा कहते हैं की मानकी का लड़का ही मानकी और मुंडा का लड़का ही मुंडा बनेगा, लेकिन ऐसा नहीं है, वंशानुगत का मतलब है की यदि गाँव पूर्ति टाइटल वालों की है तो उसी वंश को यह प्राथमिकता दी जानी है और वे लोग अपने में से योग्य व्यक्ति को यह जिम्मेदारी दे सकते हैं. और यदि पूर्ति लोग सभी आयोग्य निकले तो किसी अन्य किली (टाइटल) वालों में से चुना जाता है. मानकी मुंडाओं ने वंशानुगत का गलत व्याख्या कर भी इस व्यवस्था को काफी नुकसान पहुँचाया है.

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