CRPF कैम्प के बहाने आदिवासियों पर अत्याचार

मौजा सालिहतु, टेकोराहतु एवं मुंडू एडेल ग्रामों के बीच चाईबासा एरोड्रम में CRPF कैम्प के निर्माण को लेकर ग्रामीणों ने शुरू से ही विरोध जताया था, लेकिन प्रशासन ने ग्रामीणों की बात को नजर अंदाज कर दिया था. हाँ विरोध के कारण पक्का कंस्ट्रक्सन नहीं किया. आस पास के ग्रामीणों में भय एवं आतंक का माहौल फैल गया है. क्योंकि काम करने वाले पुरुष एवं महिलाएं काम करने के उद्देश्य से जब भी कैम्प के अगल-बगल से गुजरते हैं तो बेवजह पहचान पत्र की मांग करते हैं, अनाफ शानाफ़ गली गलौज करते हैं और नहीं दिखाने पर नक्सली का जासूस बताकर जेल में बंद करने की धमकी देते हैं. कृषि कार्य एवं मवेशियों के साथ आने जाने के क्रम में काफी परेशान किया जाता है. इससे कृषि कार्य बाधित हो रही है. सरकारी चापाकल से पानी लाने जाने वाले महिलाओं के साथ अनेक प्रकार की दुर्व्यवहार किया जाता है. CRPF के जवान चड्डी पहनकर चापाकल के पास स्नान करते हैं. हद तो तब हो गई जब २४ सितम्बर २०१२ को एक ग्रामीण महिला तालाब में नहा रही थी, उसे अकेला पा कर एक जवान गलत नीयत से उसे पकड़ लिया. चीखने चिल्लाने पर महिला का पति आ गया. उसने जवान को पकड़ लिया. उन दोनों की आवाज सुनकर गाँव ने लोग भी आ गए और जवान को दम तक पीटा. गाँव वालों ने कैम्प को रात भर अपने कब्ज़ा में रखा. दूसरे दिन आरोपी जवान पर FIR तो कर दिया गया लेकिन उसे कस्टडी में अभी तक नहीं लिया गया है. इसी के मद्देनजर ३ अक्टूबर को विशाल जन प्रदर्शन करने का ग्रामीणों ने निर्णय लिया है. यह भी सत्य है की पांचवी अनुसूची क्षेत्र होने के कारण सम्बंधित ग्राम सभा की अनुमति भी इस कैम्प के लिए नहीं लिया गया है. फिर पेसा कानून १९९६ का क्या मतलब हुआ. इसी तरह उपरोक्त जमीन ग्रामीणों ने हवाई पट्टी के लिए दिया था. और यह जमीन उड्डयन बिभाग का है, बिना अनुमति इस जमीन का पैटर्न नहीं बदला जा सकता फिर कैसे यह जमीन CRPF को दी जा रही है? ऐसे ही कई सवाल हैं जो सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं. आदिवासी सीधे सादे हैं, भोले हैं इसका मतलब यह नहीं हुआ की उनकी इज्जत नहीं है, अब आदिवासी जाग गया है, और अपने शांति एवं सुशासन के लिए हुल्गुलान कर रहा है.

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