unicef के साथ ८ एवं ९
ओक्टुबर को रांची में Mother and Child Health (MCH) पर २ दिनों का
brainstorm प्रोग्राम में मुझे आमंत्रित किया गया था. पहले की भांति
उन्होंने अपने शोध को आधार बना कर आदिवासियों के बीच Iron Folic Acit (IFA)
एवं MCH के बारे अपने सोच को जबरन पहुचाने के लिए रणनीति पर चर्चा हुई.
मैंने उनके शोध एवं रणनीति पर कुछ प्रश्न खड़े किये. IFA (आयरन की गोली)
के बारे में रणनीति बनाई जा रही थी, की विभिन्न माध्यमों से किसी भी हालात
में आयरन की गोली आदिवासियों के पास पहुंचाई जाए. क्योंकि आदिवासी अधिकांश
Animic (आयरन की कमी के शिकार) होते हैं. मैंने उनसे पूछा की IFA की गोली
पहुचाना objective है या आयरन की कमी को पूरा करना objective है? वे छुप
रहे. फिर सारे प्रोग्राम के अंत में यह तय हो रहा था की MCH के बारे में जो
भी रणनीति दो दिनों में बन कर आई है उसे mobil , television, radio, विभिन्न संगठनों एवं हो समाज महासभा के माध्यम से लोगों तक पहुचाना है. इसमें भी मैंने प्रश्न किया की MCH के बारे लोगों में जानकारी पहुचना objective
है या वातानुकूलित कमरे में तय हो रहे रणनीति को लोगों तक पहुचाना
objective है. इसमें भी उनका जवाब नहीं मिला. unicef के झारखण्ड head से मैंने पूछा की उनके
शोध में कौन कौन लोग शामिल थे? उन्होंने स्पष्ट किया की उनकी तरफ से
expert की टीम गई थी उसी ने शोध का काम किया. मैंने पूछा की क्या साथ में
कोई आदिवासी हो समुदाय या अन्य आदिवासी समुदाय के मामले में उसी समुदाय का
व्यक्ति साथ में था? उसने कहा की नहीं. मैंने उसे कहा की इस रिपोर्ट को मैं
ख़ारिज करता हूँ. यह रिपोर्ट सही हो ही नहीं सकता. चूँकि आदिवासी हो समाज
की कोई भी महिला किसी गैर आदिवासी के साथ किसी भी सूरत में सहज महसूस नहीं
कर सकती और जल्दी से जल्दी उसे उस स्थान से हटाने के लिए किसी भी प्रश्न का
हाँ-हूँ में जवाब देकर बचना चाहती है. ऐसे में उनका शोध का आदिवासियों के
प्रति नजरिया सही नहीं दिखा सकता. मैं पहले दिन से ही मुनगा साग एवं अन्य
पारंपरिक माध्यमों के चलन को बढ़ावा देने पर तर्क देता रहा पर वे विज्ञान का
हवाला देकर अपना
बचाओ करते रहे. मैंने विज्ञान पर तर्क दिए की विज्ञान वास्तव में विशेष
ज्ञान को कहते हैं, और यह विशेष ज्ञान किसी भी क्षेत्र में हो सकता है.
जैसे newton ने सेवों को पेड़ से नीचे गिरता देखा और वह सोचने लगा. इसी सोच
ने उसे वैज्ञानिक बना दिया क्योंकि ऐसा नहीं था की सेव पहले जमीन पर नहीं
गिरते थे, गिरते थे पर किसी ने नहीं सोचा की ये क्यों गिरते हैं.
आदिवासियों के पास प्रकृति के बारे बहुत सारा ज्ञान है वह भी विज्ञान ही है
पर आप लोग उसे विज्ञान नहीं मानते. मैंने सुनामी का उदाहरण दिया की २००८
में जो सुनामी आया था उसमे भारत सरकार की तरफ से करोड़ों रूपए के setup पर
वैज्ञानिक बैठ कर जानकारी दे रहा था, फिर भी हजारों लोगों को मरने से नहीं
बचा पाया. लेकिन समुद्र के बीच में एक टापू में झरवा आदिवासी रहते हैं उनमे
से उस सुनामी में कोई नहीं मरा. तो विद्वान कौन है? वह झरवा आदिवासी या
करोड़ों के setup में बैठा वह तथाकथित वैज्ञानिक? ऐसे ही आदिवासिओं के कई ज्ञान को रखा पर वे समझ नहीं सके या समझना नही चाहे. दूसरे दिन एक शख्स आए उनका नाम राज कुमार झा था. उनका आदिवासी क्षेत्रों में सालों का काम करने का अनुभव था. वे आदिवासियों के traditional
ज्ञान को भी अच्छी तरह जानते थे. अंतिम समय ही सही लेकिन उन्होंने MCH पर
unicef के रवैये को आजाद भारत में कोई नया कदम मानने से इंकार करते हुए कहा
की आपमें यदि कोई ठोस स्टेप लेने की ताकत नहीं है या अब तक के प्रयासों के
उलट करने की सोच नहीं है तो इस प्रोग्राम का भविष्य भी अंधकारमय है. आप
ऐसा क्या नया कर रहे है? जो इतने दिनों में नहीं हुआ? सिर्फ किताबों के
theory को आधार बनाकर रिपोर्ट बना देने से योजनायें सफल नहीं होती. इस बार
तो मानो unicef वालों के पैरों तले जमीन खिसक गई हो. फिर वे पहले वाले दिन
के मेरे उदाहरणों की बात करने लगे, मुनगा साग के बारे और अन्य आदि. शाम के
समय झारखण्ड सरकार के health secy. आए. फिर unicef वाले अपने पुराने स्टैंड
पर आ गए की आयरन की गोली आदिवासियों को खिलाय बिना काम
नहीं बन सकता आदि आदि. समझ में आ गया की ये लोग वास्तव में आयरन की गोली
बेचने का टेंडर लिए हैं इनका हमारे ज्ञान से कोई लेना देना नहीं है. उलटे
आदिवासियों के ज्ञान को दबाना है.
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