राज्यपाल से वार्ता विफल..

१० नवम्बर २०१२ के राजभवन घेराव का खबर से राजभवन रांची में हडकंप मचा है. इसी के मद्देनजर राज्यपाल ने कल दिनांक १ नवम्बर २०१२ को आदिवासी नेताओं के प्रतिनिधिमंडल को फागू सोरेन, मुकेश बिरुवा, जसाई मार्डी, दुगा चरण हेम्ब्रोम आदि के नेतृत्व में बुलाया था. उन्होंने ३० सितम्बर २१०२ को जमशेदपुर में उनके काफिला को रोकने वाले अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के लोगों पर से केस खत्म करने की अनुमति तो दी पर पांचवी अनुसूची पर वे निरुत्तर दिखे. मैंने उनसे पूछा की क्या झारखण्ड में पांचवी अचुसुची लागु है? तो उसके लिए उन्होंने अपने चीफ सेक्रेटरी तो बुलाया और पूछा. ये हाल है राज्यपाल का. फिर हमने कहा की आप हम आदिवासियों के संविधानिक गार्जियन हैं और हम जब आहत होते हैं तो हम आपसे से ही न्याय की उम्मीद कर सकते हैं. झारखण्ड सरकार तो आदिवासी विरोधी काम कर रही है. बिना ग्राम सभा की अनुमति के आदिवासियों की जमीन लुटी जा रही है, अंग्रेजों के कानून से आदिवासियों पर झूठा केस लादा जा रहा है. यहाँ आदिवासियों का शांति और सुशासन नौकरशाह, नेता एवं सरकारों ने तोड़ दिया है. आप हमें कैसे रहत दे सकते हैं? उन्होंने कहा की जब कोर्ट का आदेश है तो मैं कुछ नहीं कर सकता, यदि विधान सभा का निर्णय है तो मैं कुछ नहीं कर सकता और यदि संसद का निर्णय है तो भी मैं कुछ नहीं कर सकता. मेरे हाथ बंधे हुए हैं. मैं आपका सिर्फ दुकड़ा सुन सकता हूँ. वैसे भी मैंने अब तक आपलोगों के लिए रांची में, चाईबासा में, दुमका में सेमिनार कर चूका हूँ और क्या करूँ? आप लोग भी अपने अधिकार के लिए गलत तरीके से आन्दोलन करते हैं इसीलिए बात नहीं बनती है. और उन्होंने सलाह दिया की कोई अच्छा वकील कर आपलोग केस क्यों नहीं लड़ते. ये सब सुनकर हमलोग ठगे से महसूस किये की क्या यही बात सुनाने के लिए राज्यपाल महोदय ने हमें बुलाया था. मैंने उन्हें कहा की आप बोल रहे हैं की केस कर दीजिये लेकिन आदिवासी के पास तो पैसा नहीं है फिर इसका मतलब आदिवासी को न्याय नहीं मिलेगा? हमलोग बाहर निकल कर मंथन किए की ये गलत लोग लोकतंत्र के सीटों पर बैठे हैं. इसीलिए अब याचना नहीं रण होगा. इनलोगों से बात करने से ये लोग ऐसे ही आदिवासियों को ठगते रहेंगे. गद्दी से उतार फेंकने के लिए अब हमें आगे आना ही होगा. पहले भी मैं कह चूका हूँ कि राज्यपाल सेमिनार के बहाने हम आदिवासियों को ठग रहे हैं। चूँकि उन प्रयासों से आदिवासियों का हक और अधिकार नहीं मिल रहा है बल्कि आदिवासियों का ध्यान आंदोलनों से हटाने का मात्र काम हो रहा है। ये अब भी यही सोचते हैं कि आदिवासियों को बुला का बात कर लो और ये खुश हो जायेंगे और हमें वोट दे देंगे। क्या यही लोकतंत्र है? 10 नवम्बर 2012 को पूरे राज्य के आदिवासी राजभवन के लिए कूच करेंगे और आदिवासी एकता एवं अधिकारों को लेने के लिए क्रांति का आगाज करेंगे।

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