इन्सान को
भगवान ने बनाया यह बात आज इस कलियुग में गलत साबित हुआ है. बल्कि आज भगवान
को इन्सान बनाते हैं. भगवान वास्तव में इन्सान की सोच की उपज है. अन्यथा कुछ नहीं है. यदि व्यवहार में देखा जाए तो भगवान को बनाने की लीला भी अजीब है. मूर्ति बनाने वाला भगवान को बनाता है. वह बनाता ही नहीं वरण उसे बेच भी डालता है. इन्सान ही वह ताकतवर प्राणी होता है जो भगवान को खरीदता है. फिर दो-चार
दिन हो-हल्ला करने के बाद पैरों तले रौंद कर नदी नालों में डूबा देता है.
यही आज धर्म कहलाता है. इस संस्कृति का पालन नहीं करने वाले आदिवासी कहे
जाते हैं. गैलिलियो वह शख्स थे जिन्होंने यह दावा किया था की पृथ्वी सूर्य
के चारों ओर घूमता है. न की सूर्य पृथ्वी के चारों ओर. किस तरह क्रूर ईसाई
धर्मान्धों ने गैलिलियो को जिन्दा जला दिया था! गैलिलियो का गुनाह क्या था?
उसने सच बोला था. जबकि धर्मग्रन्थ में झूठ लिखा था. इसलिए धर्मग्रन्थ को
ही सच मानने वाले सारे अंधे गैलिलियो के विरुद्ध हो गए. गैलिलियो को पकड़ कर
मुकदमा चलाया गया. अदालत ने सत्य को अपने फैसले का आधार नहीं बनाया. अदालत
भीड़ से डर गई. भीड़ ने कहा यह हमारे धर्म के खिलाफ बोलता है इसे जिन्दा जला
दो. अदालत ने फैसला दिया इसे जिन्दा जला दो, क्योंकि इसने लोगों की
धार्मिक आस्था के खिलाफ बोला है. सत्य हार गया आस्था जीत गई. जिन्दा जला
दिया गया गैलिलियो, सत्य बोलने के कारण. इस तरह भीड़ मर गई पर गैलिलियो नहीं
मारा. वह सत्य आज भी हमारे साथ हैं.
धर्म की जाति व्यवस्था में पूरा विश्व डूब चूका है. आदमी को आदमियों की उतनी फिक्र नहीं जितनी धर्म की है. भारत जैसे देश में आज मंदिरों, मस्जिदों एवं चर्चों की संख्या स्कूलों से कहीं ज्यादा है. इससे अंदाज लगाना आसान है की कलियुग की मंशा क्या है और यह कहाँ जा रहा है? जीते जागते जीवों को धर्म की रक्षा के लिए सर्वनाश के कगार पर ला खड़ा कर दिया गया है. धर्म वास्तव में लोगों को आपस में बैर करना सिखा रहा है फिर भी हम बच्चों को झूठी तसल्ली देने के लिए सिखाते हैं की मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, जबकि सत्य इसके उल्टा है. सबसे अच्छा उदहारण छोटे बच्चों का है जो सही में धर्म को नहीं जानते, इसीलिए सबसे ज्यादा प्यारे होते हैं. जिस दिन उस बच्चे में भगवान के नाम का डर पैदा कर दिया गया उसी दिन वह प्रकृति के अनुकूल क्रियाओं को समझने से दूर हो जाता है. प्रकृति में ज्ञान कई तरह से हासिल होता है, इसमें पढ़ने लिखने की जरुरत नहीं है, सिर्फ समझने की जरुरत होती है, सीखने के लिए. लेकिन उस दुनिया का हम क्या कहें जहाँ भगवान बिकते हैं और उस विकाऊ चीज पर हम लड़ने पर उतारू हो जाते हैं....
धर्म की जाति व्यवस्था में पूरा विश्व डूब चूका है. आदमी को आदमियों की उतनी फिक्र नहीं जितनी धर्म की है. भारत जैसे देश में आज मंदिरों, मस्जिदों एवं चर्चों की संख्या स्कूलों से कहीं ज्यादा है. इससे अंदाज लगाना आसान है की कलियुग की मंशा क्या है और यह कहाँ जा रहा है? जीते जागते जीवों को धर्म की रक्षा के लिए सर्वनाश के कगार पर ला खड़ा कर दिया गया है. धर्म वास्तव में लोगों को आपस में बैर करना सिखा रहा है फिर भी हम बच्चों को झूठी तसल्ली देने के लिए सिखाते हैं की मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, जबकि सत्य इसके उल्टा है. सबसे अच्छा उदहारण छोटे बच्चों का है जो सही में धर्म को नहीं जानते, इसीलिए सबसे ज्यादा प्यारे होते हैं. जिस दिन उस बच्चे में भगवान के नाम का डर पैदा कर दिया गया उसी दिन वह प्रकृति के अनुकूल क्रियाओं को समझने से दूर हो जाता है. प्रकृति में ज्ञान कई तरह से हासिल होता है, इसमें पढ़ने लिखने की जरुरत नहीं है, सिर्फ समझने की जरुरत होती है, सीखने के लिए. लेकिन उस दुनिया का हम क्या कहें जहाँ भगवान बिकते हैं और उस विकाऊ चीज पर हम लड़ने पर उतारू हो जाते हैं....
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