झारखण्ड में संविधान के पांचवी अनुसूची
क्षेत्र का उल्लंघन के मद्देनजर अखिल भारतीय आदिवासी महासभा एवं राष्ट्रिय देशज पार्टी
के नेतृत्व में 10 नवम्बर 2012 को राजभवन घेराव का एलान से झारखण्ड सरकार भी दबाव में
है और आनन फानन में कुछ दिखाने के चक्कर में असंविधानिक ही सही जनजाति सलाहकार परिषद्
का नियमावली झारखण्ड बनने के 12 साल बाद ही सही कल उसे कैबिनेट मंजूरी दे दी गई। झारखण्ड
सरकार को यह लगा की ऐसा करेंगे तो आदिवासी खुश हो जायेंगे। लेकिन जनजाति सलाहकार परिषद्
के नियमावली का कैबिनेट में पास होना भी असंविधानिक है। संविधान का अनुच्छेद 244(1) के पारा
4 के तहत जनजाति सलाहकार परिषद् का गठन करने का प्रावधान है। झारखण्ड सरकार को जनजाति
सलाहकार परिषद् का नियमावली बनाने का हक़ नहीं है। पांचवी अनुसूची के पारा 4(3क) में स्पष्ट
किया है कि राज्यपाल परिषद् के सदस्यों की संख्या को, उनकी नियुक्ति
की और परिषद् अध्यक्ष तथा उसके अधिकारीयों और सेवकों की नियुक्ति की रीति को (ख) उसके अधिवेशनों के सञ्चालन तथा साधारणतया
उसकी प्रक्रिया को,
और (ग) अन्य
सभी अनुषांगिक विषयों को, यथास्थिति, विहित या विनियमित
करने के लिए नियम बना सकेगा। इस तरह से झारखण्ड सरकार को जनजाति सलाहकार परिषद् का
नियमावली कैबिनेट में पारित करने का अधिकार ही नहीं है। हम इस असंविधानिक फैसले का
विरोध करते हैं और झारखण्ड सरकार को मनमानी नहीं करने देंगे। आश्चर्य की बात तो यह
है की संविधान में इतने अधिकार मिलने के बाद भी राज्यपाल साजिश के तहत आदिवासियों के
खिलाफ मूक दर्शक बने हुए हैं। गाँधी जी ने भी कहा था की जो सरकार भ्रष्टाचार में
लिप्त हो एवं कानून का उल्लंघन करे उसके खिलाफ आवाज बुलंद करना पुण्य काम
है वह पाप नहीं है। झारखण्ड के आदिवासी आज जाग गए हैं और अपना हक लेने के लिए उतारू
हैं जो भी रास्ते में विरोध में आयेगा वह अगली बार जायेगा।
Art 244(1) para 4 (3) The Governor
may make rules prescribing or regulating, as the case may be,—
(a) the number of members of the
Council, the mode of their appointment and the appointment of the Chairman of
the Council and of the officers and servants thereof;
(b) the conduct of its meetings and its procedure in general; and
(c) all other incidental matters.
(b) the conduct of its meetings and its procedure in general; and
(c) all other incidental matters.
Comments