कोल्हान दिवस मनाया गया

2 दिसम्बर 2012 को ईचा डैम स्थल के पौंणि स्थल में कोल्हान दिवस मनाया गया सर्वप्रथम सात दियुरियों ने सिन्ह्वोंगा, देषाउलि को लाल सफ़ेद मुर्गे की बलि देकर खुश किया और उनसे आह्वान किया गया की हम आदिवासी अपने रहवासों में सभी जीव जन्तुओं के साथ ऐसे ही सुख और शांति के साथ रहें। हम विस्थापित होकर आप सबों से अलग नहीं होना चाहते और अपने जगहों की सुरक्षा में हमारे लड़ाई में आप हमें साथ दें। उसके बाद झारखण्ड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो एवं मझगाँव विधायक बड़ कुंवर गागराई का पुतला पहले तो तीर से भेदा गया और उसे जलाया दिया गया। लोगों का आक्रोश देखने लायक था। उसके बाद सभा का आयोजन किया गया। सभा को संबोधित करते हुए मुकेश बिरुवा कार्यकारी अध्यक्ष राष्ट्रिय देशज पार्टी ने कहा की अपने जल, जंगल और जमीन की रक्षा में हमारे पूर्वजों ने जब हथियार उठाई एवं जान की बाजी लगा कर भी हार नहीं मानी तब अंग्रेजों ने आज ही के दिन 1833 में बंगाल रेगुलेशन 13 सन 1833 अधिनियम को लागू किया था। इस अधिनियम के तहत आदिवासी इलाकों में भारत देश की शासन व्यवस्था, कोर्ट व्यवस्था, पुलिस व्यवस्था आदि लागू नहीं होते थे और पूरे आदिवासी  इलाकों को अपनी परंपरागत स्वशासन व्यवस्था के अधीन ही रहने दिया गया था। उस समय गाँव की हर जरुरत की चीज ग्राम सभा(हातु दुनुब) में तय की जाती थी। चाहे वह सड़क बनाना हो या तालाब बनाना हो, या जंगल को आग से बचाना हो या स्कूल खोलना हो, स्वस्थ्य सुविधा उपलब्ध करना हो या कोई अन्य नीति नियम बनाना हो सभी काम हातु दुनुब में तय होते थे। इसी व्यवस्था को आदिवासी समाज पारंपरिक, सामाजिक, एवं लोकतान्त्रिक व्यवस्था मानते थे। और इस व्यवस्था के अगुआ गाँव में मुंडा, मानकी , राजी पड़हा, माझी परगनैत आदि रूप में जाने एवं माने जाते हैं। आज सत्ता रांची में, दिल्ली में केन्द्रित हो गया है और वहां पर वातानुकूलित कमरों में बैठ कर हम गाँव के लोगों के लिए नीति नियम बनाए जा रहे हैं, इसीलिए हम शोषित और विस्थापित हो रहे हैं। हमें अपनी वोट की ताकत को अब समझना होगा जिस तरह ये लोग जबरन हमारी जमीन छीन रहे हैं, उसी तरह अब समय आ गया है की हम जबरन उनसे सत्ता छीन कर सत्ता का हस्तांतरण ग्राम सभा में करना होगा, तभी हम आदिवासियों का कल्याण होगा। अन्यथा हमने कांग्रेस देखा, भाजपा देखा, राजद देखा, झामुमो देखा सबका राज काज का तरीका एक सामान आदिवासी विरोधी ही रहा है। गाँव में तय होना चाहिए की हमारा प्रतिनिधि कौन होगा ना की हाई कमान तय कर हमें थोप दे। मौजूदा राजनितिक व्यवस्था को पूरा उखाड़ फेंखने के लिए आज का दिन हम कोल्हान दिवस के रूप में मना रहे हैं और यह एक संकल्प दिवस के रूप में हमें मनाना है ताकि सत्ता को जब तक हम ग्राम सभा में नहीं ला देते चैन से नहीं रहेंगे। आने वाले दिनों में यह दिवस गाँव गाँव में मनाया जायेगा। सुरेन्द्र बूड़ीउली ने कहा की जीते जी हम अपनी जमीन किसी भी सूरत में इचा डैम के लिए नहीं देंगे। और न डैम बनने देंगे। दासकन कुदादा ने कहा की आदिवासी मूलवासियों की एकता ही हमें बचा सकती है इसीलिए इस पर गंभीरता से काम होना चाहिए। मधुसुदन मरला ने कहा की विकास के नाम पर सिर्फ आदिवासियों का विनाश की रणनीति पर काम हो रहा है। इसे हम और बर्दास्त नहीं करेंगे। यह आयोजन कोल्हान पोड़ाहाट विस्थापन प्रतिरोधी आदिवासी जनसंगठन, एवं ईचा कड़कई बांध विरोधी संघ के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

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