आधुनिक शिक्षा गैंगरेप जैसी
कुकृत्यों के लिए
जिम्मेदार है। ये
वही शिक्षा है
जो ये समझकर
हमलोगों को दी
जा रही है
की हम गुलाम
कैसे रह सकें।
आधुनिक शिक्षा हमें आज
संस्कार एवं संस्कृति
की शिक्षा नहीं
देता। तथाकथित उच्च जाति के लोग इस शिक्षा
को पाकर भ्रूण
हत्या, दहेज प्रतारणा,
उच्च जाति निम्न
जाति का विवेध,
धर्म का विवेध,
गैंगरेप, जैसे कुकृत्यों
को सीख रहा
है एवं पालन
कर रहा है।
यही लोग आदिवासी,
दलित एवं पिछड़ों
को शोषण एवं
अत्याचार कर गरीब
बनाए रखने का
नियम बनाए रखते
हैं। इन्होंने यह व्यवस्था
वास्तव में आदिवासी,
दलित एवं पिछड़ों
को नीचा दिखाने
के लिए, शोषण
करने के लिए,
अत्याचार करने के
लिए तैयार किया
था, परन्तु जिस
कुएं को उच्च
जाति ने हमारे
लिए तैयार किया
था आज वे
उसी में गिरते
हुए नजर आ
रहे हैं। जिस
शिक्षा को वे
अपनी बादशाहत बनाए
रखने के लिए
हमारे खिलाफ खड़ा
किया था आज
वे उसी शिक्षा
के कारण नैतिक
पतन के कगार
पर पहुँच गए
हैं और कुकृत्यों
के संस्कार में
जीने के लिए
मजबूर हो गए
हैं। और हमें
अपनी भाषा में
पढ़ने नहीं दिया
जाता। आज चर्चा
चल रही है
की समाज में
बदलाव लाए बिना
इन कुकृत्यों से
नहीं बचा जा
सकता है, पर
आज के इस
विज्ञान युग में
एक उम्मीद की
किरण आधुनिक समाज
को देना चाहता
हूँ। आज पुन:
आधुनिक समाज को
आदिवासियों की संस्कृतियों
एवं प्रकृति की
तरफ वापस लौटना
होगा। आप देख
सकते हैं की
आदिवासियों में गैंगरेप,
भ्रूण हत्या, दहेज
प्रथा आदि कुकृत्य
मौजूद नहीं। आदिवासी
प्रकृति के नियम
को पालन करता
है इसीलिए देश
में पुरुष एवं
महिलाओं की जनसँख्या
का अनुपात सबसे
आदर्श आदिवासी इलाकों
में ही है।
चूँकि गाँव में
रहने वाला आदिवासी
कभी भी आने
वाले बच्चे का
लिंग जाँच नहीं
कराता, आदिवासी के पास
जो यहाँ है
वही वहां पर
भी, जो प्रकृति
का है, इसीलिए
दहेज प्रथा नहीं
है, और गैंगरेप
भी आदिवासी समाज में नहीं
होता चूँकि यह
प्रकृति के खिलाफ
है। आधुनिक समाज ने
जानवरों को बहुत
ही हीन भावना
से पुकारा जाता
है पर इस
आधुनिक समाज को
आज जानवरों से
ही सीखने की
जरुरत है। चूँकि
जानवरों में गैंगरेप
नहीं होता, मौसमी
चक्र के आधार
पर सिर्फ बच्चे
को जन्म देने
के लिए उनका
मिलन होता है,
अन्यथा नहीं। वहां भी
प्रकृति के नियम
के अनुसार भ्रूण
हत्या नहीं है,
दहेज भी नहीं
है। अब यह
भी प्रश्न उठ
सकता है की
वास्तव में जानवर
कौन है?
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