आदिवासी समाज की पारम्परिक व्यवस्था विलोपित होने के कगार पर

अब तक यही सुनने एवं देखने को मिलता है कि आदिवासियों में हो समाज की सामाजिक व्यवस्था मानकी मुन्डा व्यवस्था है। उनकी धार्मिक व्यवस्था में दियुरी होता है और जड़ी बूटी एवं अन्य पूजा पाट के लिए देंवा होता है। इसके अलावे डाकुवा होता है जो गाँव के लोगों को डकरा कर एक जगह आने के लिए एवं अन्य सन्देश देता है। लेकिन आदि संस्कृति एवं अध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित सामाजिक रीति रिवाज के दैविक सिद्दांत के तहत देखते हैं तो आदिवासी 32 अलग-अलग समुदायों(पाटों) का समूह है, और इनका अपना एक विशेष सामाजिक व्यवस्था है। यह व्यवस्था अंग्रेजों के आगमन के आस-पास तक सही सलामत था। लेकिन कालान्तर में बाहरी लोगों के आगमन से आदिवासी संस्कृति एवं समाज को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और पड़ रहा है, जिसके कारण यह व्यवस्था विलोपित होने के कगार पर पहुँच गया है। यह व्यवस्था निम्न प्रकार से है -
1- देंवा                    (अध्यात्मिक)           गाँव स्तर
2- केंवा                   (अध्यात्मिक)           गाँव स्तर
3- डाकुवा                (प्रशासनिक)             गाँव स्तर
4- दियुरी                 (अध्यात्मिक)           गाँव स्तर
5- मुन्डा                  (प्रशासनिक)             गाँव स्तर
6- मणाकी                (प्रशासनिक)            इलाका स्तर/पीढ़ स्तर 
7- गोंडाई                  (अध्यात्मिक)          पीढ़ स्तर
8- सांडी   (प्रशासनिक) - बारकी (अध्यात्मिक) दिशुम स्तर (assistant)
9- एण                    (अध्यात्मिक)          दिशुम(जाति धर्म गुरु)
10- विषुई                  (प्रशासनिक)           जाति राजा
11-दान्गर               (प्रशासनिक)            राज्य स्तर
12- डूडा          (अध्यात्मिक+प्रशासनिक)   आदिवासी राजा(राष्ट्र स्तर)
इस तरह से इस आदिवासी व्यवस्था में 7 अध्यात्मिक एवं 7 प्रशासनिक पद होते हैं। वास्तव में अंग्रेजों ने इस अभेद रक्षा कवच को भेदने एवं तोड़ने की नीयत से ही इस पूरी व्यवस्था में सिर्फ मानकी एवं मुंडाओं को पहचान देकर एक तरह से हो समाज को तोड़ने का काम किया था। सिर्फ मानकी एवं मुन्डा के पद पर ध्यान होने से वही पद जिंदा रहा और बाकि विलुप्त हो गया। पहले कहा जाता था की कोल्हान में कोई भी बाहरी व्यक्ति यदि घुस जाता था तो जिन्दा वापस नहीं लौटता था। और यह बात अंग्रेजों के लिए भी लागू होता था। लेकिन अंग्रेजों ने अपने कूटनीतिक प्रयास से आदिवासियों की इस व्यवस्था में छेद कर दिया और सिर्फ मानकी और मुंडा पद को पहचान देकर बाकी व्यवस्था को समाप्त करने का काम किया। कहने के लिए मानकी मुन्डा व्यवस्था एक सामाजिक व्यवस्था है पर यह पहले अंगेजों के राजनिति/ का गुलाम बना तो आज यह मौजूदा राजनितिक व्यवस्था का एक अंग मात्र रह गया है। यही कारण रहा की अंग्रेजों के कोल्हान में घुस जाने के बाद आज तक यहाँ कोई बड़ी क्रांति या आन्दोलन जन्म नहीं ले सका है। और साथ ही आज बाहरी संस्कृति के प्रभाव से खुद आदिवासी इस व्यवस्था को भूल गए हैं। इसे दुबारा स्थापित करने की चुनौती आज हो समाज को लेने की जरुरत है।

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