केन्द्रीय योजना का नाम है नक्सल

जिस तरह मनरेगा एक केन्द्रीय योजना है, उसी तरह जल, जंगल और जमीन के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के लिए बनाई गई योजना है नक्सल। नक्सल समस्या बताकर सरकारें पहले तो सीधे तौर पर 6000 करोड़ रूपए तक किसी भी राज्य में बिना ऑडिट वाला जनता का पैसा भेज सकती है, और उस पैसे को सत्ता में बैठे लोग भ्रष्टाचार कर हड़पते हैं, जिसका इस्तेमाल बड़ी राजनितिक पार्टियाँ चुनाओं में वोट खरीदने में करती है। इस तरह सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता की राजनीती हो रही है। सीआरपीएफ को हम आदिवासियों के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए सरकार ने यहाँ नक्सल समस्या योजना के तहत भेजा है। चूंकि सीआरपीएफ के सभी लोगों के पैंट कमीज से लेकर बंदूक और गोली तक जनता के पैसे से खरीदे जाते हैं, इसीलिए वास्तव में जनता यानि ग्राम सभा को ही यह अधिकार होना चाहिए की सीआरपीएफ का इस्तेमाल कहाँ करना है? इसके लिए हमें पूरे आदिवासी क्षेत्र में जनान्दोलन खड़ा करना होगा और संगठित होकर मौजूदा सत्ता में बैठे हुए लोगों को सत्ता से बाहर बेदखल कर ग्राम सभा में सत्ता सौंपनी होगी तभी आदिवासियों का कल्याण होगा। यहाँ कुजू डैम बन रहा है, ताकि बड़े कल कारखाने खोले जा सकें, फिर जमीन के अन्दर का लौह अयस्क लूट कर जल्दी से जल्दी दोहन किया जा सके इसके लिए 40 फीट की सड़कें भी बन रही है, इन सब कामों में कोई दिक्कत आदिवासियों से नहीं हो इसके लिए वास्तव में सीआरपीएफ को यहाँ नक्सल समस्या रूपी केन्द्रीय योजना बनाकर लाया जा रहा है, इस जन विरोधी योजना का विरोध हम लोकतान्त्रिक तरीके से जोरदार रूप से करेंगे ताकि सरकारें तक हिल जाए।

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